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साहब राज

समझदार लोग काम करवाने के लिए नेताओं की अपेक्षा साहब पर ज्यादा भरोसा करते हैं क्योंकि काम तो साहब को ही

Mar 24, 2015 / 06:52 am

शंकर शर्मा

अब राज्य की सबसे बड़ी पंचायत के अध्यक्ष और सदस्यगण ही रिरियाते नजर आ रहे हैं तो फिर बेचारे आम आदमी की क्या बिसात कि वह “साहब” लोगों से बातचीत कर लें। साहब तो साहब हैं। करोड़ों-अरबों का बजट इनके हाथ में है। कानून के सहारे ये कुछ भी कर सकते हैं। और अपने देश के कानून-कायदों के भी क्या कहने।

समझदार “साहब” इनकी व्याख्या अपनी तरह से कर डालते हैं। देश के पिच्चानवें फीसदी लोग सरकारी कानून-कायदों से उतने ही नावाकिफ हैं जितना एक लेखक जलेबी बनाने से। दर्जनों बार उसे हलवाई की दुकान में उतरता देखता है। कई बार पत्र-पत्रिकाओं में जलेबी बनाने के तरीके पढ़ लेता है पर वह घी से भरी “तई” में जलेबी उतार नहीं सकता।

साहब लोग गांठते किसे हैं? पुराने जमाने के नेता बड़े दबंग और ईमानदार होते थे। अब सरकारें कैसे बनती हैं? या तो जुगाड़ लगा कर या छप्पर फाड़ बहुमत से। दोनों स्थितियां साहबों के पक्ष में जाती हैं। जब बहुमत नहीं होता तो मुख्यमंत्री छोटे-छोटे दलों की सहायता से लंगड़ी सरकार बनाते हैं। ऎसे लोगों को मंत्री बनाते हैं जो महा अवसरवादी हैं।

अवसरवादी मौके का फायदा ना उठाए तो “गधा” कहलाता है। बस वह अपना कामकाज “साहब” के जिम्मे छोड़ सत्ता के मजे लूटता है और “साहब” सरताज बन जाते हैं। अब अगर छप्परफाड़ बहुमत आ गया तो मुख्यमंत्री अपने चहेतों और वफादारों को मंत्रिमंडल में शामिल करता है। चाहे योग्य विधायक खड़े-खड़े ललचायी नजरों से कुर्सी को ताकते रहे।

अब जरूरी नहीं कि सारे वफादार जानकार हों बस साहब लोगों की बन आती है। कई बार साहब लोग नेताओं को पसन्द भी नहीं करते। जब एक गैर जानकार नेता जबरदस्ती अपनी अधकचरी समझ एक योग्य साहब पर लादने लगता है तो साहब घृणा के अलावा कर भी क्या सकता है? यही खेल लोकतंत्र में चल रहा है। कई समझदार लोग अपना काम करवाने के लिए नेताओं की अपेक्षा साहब पर ज्यादा भरोसा करते हैं क्योंकि काम तो साहब को ही करना है।

अब आसन चाहे पैरों पर हों या कुर्सी पर साहबगण तो वही करेंगे जो उनके दिल में है। नौकरशाही धीरे-धीरे बेलगाम होती चली गई और इस घोड़े के स्वच्छन्द होने का बड़ा कारण बेईमान नेता और मंत्री रहे हैं। ईमानदार, समझदार और योग्य नेता के सामने नौकरशाहों की क्या हिम्मत कि वे बैठ भी जाएं। हमें एक नेता याद हैं जो फोन पर कहते थे कि मैं राजस्थान सरकार बोल रहा हूं और आवाज सुनते ही साहब कुर्सी से खड़े हो जाते थे। वे दिन हवा हो चुके हैं।

राही


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