script‘जवान मौत’ की तरफ बढ़ती समाजवादी पार्टी (गोविन्द चतुर्वेदी) | Samajwadi Party heading towards young death | Patrika News

‘जवान मौत’ की तरफ बढ़ती समाजवादी पार्टी (गोविन्द चतुर्वेदी)

Published: Oct 23, 2016 08:28:00 pm

इस ‘यादवी संघर्ष’ के ताजा शिकार रविवार को चाचा शिवपाल और मुलायम के
समर्थक तीन अन्य मंत्री बने जिन्हें अखिलेश ने मंत्रिपरिषद से बर्खास्त कर
दिया

Samajwadi Party

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उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में घमासान मचा हुआ है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने एक चाचा रामगोपाल के साथ एक तरफ है तो उनके पिता और पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव दूसरी तरफ। उनके साथ खड़े हैं उनके छोटे भाई शिवपाल यादव और बहुचर्चित अमर सिंह। साल भर से दोनों धड़ों में छिपकर घात-प्रतिघात और वार-प्रतिवार का दौर चल रहा था, जो अब सबके सामने आ गया है। इतना सामने कि, दोनों तरफ से एक-दूसरे के समर्थकों को सत्ता या संगठन से बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है।

इस ‘यादवी संघर्ष’ के ताजा शिकार रविवार को चाचा शिवपाल और मुलायम के समर्थक तीन अन्य मंत्री बने जिन्हें अखिलेश ने मंत्रिपरिषद से बर्खास्त कर दिया। इससे पहले शनिवार को शिवपाल ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की हैसियत से अखिलेश के लंगोटिया दोस्त और विधान परिषद सदस्य उदयवीर सिंह को छह साल के लिए पार्टी से निलम्बित कर दिया था। ये उदयवीर ही थे जिन्होंने लड़ाई का सारा दोष मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी और चाचा शिवपाल पर डालते हुए मुलायम को भी खूब जली-कटी सुनाई थी।

अब आगे क्या होगा? कौन किसको निकालेगा, कोई नहीं जानता। क्या पता कल की बैठक में मुलायम धड़ा अखिलेश को पद से हटाकर स्वयं ‘नेताजी’ अथवा उनके किसी अन्य पसंदीदा को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दे अथवा फिर नेताजी से सीखे राजनीति के दांव खेलते हुए अखिलेश विधानसभा भंग कर चुनावों की सिफारिश कर दें।

सब कुछ अनिश्चित है लेकिन उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है उससे एक बात निश्चित है कि समाजवादी पार्टी ‘जवान मौत’ की तरफ बढ़ रही है। ‘जवान मौत’ इसलिए कि पार्टी का गठन 4 अक्टूबर 1991 को हुआ और इस माह वह पूरे 25 साल की हुई है। पच्चीस साल की नौजवानी में जब बातें तख्त-ओ-ताज बदलने की होती है तब यह पार्टी हांफने लगी है। उस कांग्रेस से भी ज्यादा जो 131 साल की होकर भी यूपी में ताल ठोक रही है। समाजवादी पार्टी तो आज उस भाजपा से भी कमजोर दिख रही है जिसके पास उत्तर प्रदेश में घोषित करने लायक कोई दमदार मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी नहीं है। उससे कहीं ज्यादा ताकतवर तो आज बसपा दिख रही है जो मायावती के पीछे एक होकर खड़ी है।

अगले वर्ष के शुरू में संभावित उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में क्या होगा, यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना तय है कि जिस रास्ते पर समाजवादी पार्टी चल रही है, वह अपनी हार की स्क्रिप्ट पर ही हस्ताक्षर कर रही है। अफसोस की बात यह है कि यह दस्तखत उसके नेताओं से कोई जबरन नहीं करवा रहा। वे जानबूझकर और साझा तौर पर समाजवादी पार्टी को आत्महत्या की ओर धकेल रहे हैं।

अभी भी समय है। मुलायम सिंह यादव और अखिलेश, दो ही यदि चेत जाएं तो हालात बदल सकते हैं। सत्ता में वापस न भी आएं तब भी मजबूत विपक्ष तो हो ही सकते हैं। लोकतंत्र में ताकतवर विपक्ष भी उतना ही जरूरी है जितना स्थिर सत्ता पक्ष। इसके लिए जरूरी है कि दोनों मिलकर झगड़े की स्क्रिप्ट को, चाहे वह घर की चारदीवारी में लिखी गई हो अथवा दिल्ली में फाड़ फेंके। शायद यही अगले माह अपना 77वां जन्मदिन मना रहे मुलायम सिंह के लिए सबसे बढिय़ा उपहार होगा। अन्यथा तो उनके धौलों में धूल पडऩा तय ही लग रहा है।
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