कोरे भाषणों से कुछ होने वाला नहीं। अच्छा होता कि कोझिकोड से देश की मजबूती को कारगर साबित होता कोई संदेश निकलता
उरी हमले की छाया में आयोजित भाजपा राष्ट्रीय परिषद की बैठक देश और भाजपा कार्यकर्ताओं को कोई नया संदेश देने में कामयाब रही हो, ऐसा लगता नहीं। कोझिकोड की सार्वजनिक सभा अथवा परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पाकिस्तान को ललकारना परम्परा के निर्वहन के रूप में ही देखा जा सकता है।
बेशक कोई भी प्रधानमंत्री किसी भी कड़े फैसले का ऐलान सार्वजनिक सभा या पार्टी की बैठक में नहीं करता। लेकिन 18 जवानों की शहादत से उपजे माहौल को शांत करने के लिए केन्द्र सरकार से जो उम्मीदें थीं वो पूरी होती नजर नहीं आईं। परिषद की बैठक में प्रधानमंत्री ने गरीबों के कल्याण का मुद्दा भी जोर-शोर से उठाया और चुनाव सुधार तथा अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाने की बात भी की। लेकिन बड़ा सवाल वही कि सरकार का काम कुछ करके दिखाना होता है ना कि सिर्फ बातें करना।
केन्द्र में भाजपा सरकार को आए सवा दो साल हो चुके हैं लेकिन बात गरीबों के कल्याण की हो अथवा चुनाव सुधार और अल्पसंख्यकों से जुड़े मुद्दों की, धरातल पर ठोस काम नजर नहीं आ रहा।
चुनाव आयोग की तमाम बंदिशों के बावजूद बड़े-बड़े अपराधी पहले भी संसद-विधानसभाओं में पहुंचा करते थे और आज भी पहुंच रहे हैं। साम्प्रदायिक दंगों की बातों को दरकिनार कर दिया जाए तो अल्पसंख्यक अपने पैरों पर खड़े होते पहले भी नजर नहीं आ रहे थे और आज भी नजर नहीं आ रहे। राजनीति में परिवारों का बोलबाला पहले भी नजर आता था और अब भी वैसा ही नजर आ रहा है।