अगर इस दुनिया में बेवफाई नहीं होती तो ज्यादा दिक्कत सिनेमा वालों को होती। वे हिन्दी फिल्में तो बना ही नहीं पाते
क्या यह दुनिया ‘ऑक्सीजन’ से चल रही है? अगर आप ऐसा सोचते तो माफ करना, आप गलत सोचते हैं। इस दुनिया को दो लफ्ज चला रहे हैं और वे हंैं- ‘वफा-बेवफा’। वफाई और बेवफाई दोनों इंसानी फितरत से ऐसे जुड़े हैं जैसे दूध और पानी व ज्ञान और ज्ञानी। पति पत्नी के बीच के रिश्ते की बुनियाद भी वफाई और बेवफाई है।
शादियों के टूटने में लगभग नब्बे प्रतिशत कारण यही होते हैं। दरअसल पिछले दिनों एक खबर पढ़ कर हमारा मन बुक्का फाड़कर हंसने को कर रहा है। पहले आप खबर देखिए- आजकल सोशल मीडिया पर एक इन्ट्रेस्टिंग चलन चल पड़ा है। मर्द, औरत के नाम से और औरतें, मर्द के नाम से फर्जी आईडी बना लेते हैं और आपस में चैट करते हैं। यही हुआ एक शादीशुदा जोड़े ने अपनी फर्जी आईडी बनाई और वे अनजाने में एक दूजे से कुंआरा कुंआरी की तरह बातें करने लगे।
धीरे-धीरे इस ‘फेसबुकी प्रेम’ का रंग गहरा गया और एक दिन दोनों ने किसी होटल में मिलना तय किया और जब वे वहां पहुंचे तो उन के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। अब पति पत्नी को और पत्नी पति को बेवफा कह रहे हैं। फैसला आप करें कि असली दोषी कौन हैं- बीवी या धणी? हमारी नजर में तो दोनों ही बेवफा हैं।
अगर आप एक दिन के लिए दुनिया के सभी शादीशुदा जोड़ों को खुली छूट दे दें तो पता चलेगा कि नब्बे प्रतिशत जोड़ों ने जमकर बेवफाई की है। हो सकता है कुछ शुचितावादियों को हमारी बात नागवार गुजरे लेकिन आप एक गुप्त मतदान करवा लीजिए सारा सच सामने आ पड़ेगा। बेवफाई पति-पत्नी से ज्यादा नेता-नांगले करते हैं। खाते इस दल की हैंं और बजाते दूसरे की हैं। दल बदलना अपने नेताओं का प्रिय शगल है।
आज मोदी मंत्रिमण्डल में आपको एक दो नहीं कई मंत्री मिल जाएंगे जिन्होंने अपने मूल दल से सरासर बेवफाई की है। सच तो यह है कि जैसे-जैसे आधुनिक तकनीक का विकास हुआ है वैसे-वैसे ही आदमी की बेवफाई की में भी इजाफा हुआ है। लेकिन इस दुनिया में ऐसे इंसानों की भी कमी नहीं जो वफादार रहते हैं। ईमानदारी को जकड़े रहते हैं। जो अपने ऊपर अहसान करने वाले के प्रति सदा कृतज्ञ रहते हैं लेकिन ऐसे लोगों की संख्या गिनती की रह गई है।
हमारा तो कहना है कि वफादार, ईमानदार, कृतज्ञ लोगों के लिए एक अभयारण्य बना देना चाहिए जिससे हम आने वाली पीढ़ी को बता सके कि ये हैं वे लोग जिनके पीछे यह बेवफा दुनिया ठीक ठाक ढंग से चलती रही है। वैसे अगर इस दुनिया में बेवफाई नहीं होती तो सबसे ज्यादा दिक्कत सिनेमा वालों को होती। कम से कम वे हिन्दी फिल्में तो बना ही नहीं पाते क्योंकि यहां निन्यानवे फीसदी फिल्मों में वफा और बेवफा के बीचका किस्सा दिखाया जाता है। तब न कालिदास अभिज्ञान शाकुन्तल लिख पाते और न शेक्सपीयर ओथैलो। हमारी जिन्दगी भी बेमजा ही रह जाती।
राही