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ओपिनियन

जल भी बचाएं, कल भी

देश का दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि हर साल सूखे से निपटने के लिए
सरकारों को अरबों-खरबों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। हर साल नई-नई योजनाएं
बनती हैं। इनमें से कुछ कागजों पर ही सिमट कर रह जाती हैं तो कुछ जमीन पर
नजर आती हैं

Apr 12, 2016 / 10:42 pm

शंकर शर्मा

Opinion news

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दस राज्यों में सूखे की मार झेल रहे देश के लिए मौसम विभाग की भविष्यवाणी किसी सुखद संकेत से कम नहीं है। मौसम विभाग की मानें तो इस बार सामान्य से अधिक यानी 106 प्रतिशत तक बारिश होने का अनुमान है। पिछले दो सालों से मानसून के धोखा देने का असर नजर आ रहा है।

गर्मी शुरू होने से पहले ही बांध-तालाब सूखने लगे तो कई हिस्सों में पीने के पानी का गंभीर संकट शुरू हो गया है। केन्द्र से लेकर राज्य सरकारें और हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट स्थिति से निपटने के लिए अपनी-अपनी तरफ से प्रयासरत हैं। मराठवाड़ा में रेल से पानी पहुंचाया जा रहा है, तो दूसरे उपायों पर भी विचार किया जा रहा है।

इसे देश का दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि हर साल सूखे से निपटने के लिए सरकारों को अरबों-खरबों रुपए खर्च करने पड़ते हैं। हर साल नई-नई योजनाएं बनती हैं। इनमें से कुछ कागजों पर ही सिमट कर रह जाती हैं तो कुछ जमीन पर नजर आती हैं। वर्षा के जल को संरक्षित करने के लिए दशकों से अभियान चलाए जा रहे हैं लेकिन इन अभियानों का हश्र भी दूसरे सरकारी अभियानों से अलग नजर नहीं आता। मौसम विभाग ने इस बार अच्छी वर्षा के संकेत दिए हैं तो इसका अर्थ ये नहीं होना चाहिए कि इस साल का संकट तो टला।

मानसून अच्छा रहता है तो क्यों नहीं इसका उपयोग आने वाले सालों के लिए किया जाता है? सरकारी इमारतों के अलावा निजी आवासों में भी वर्षा जल के संरक्षण के लिए टांके बनाने की अनिवार्यता है। कितने सरकारी भवनों में यह व्यवस्था लागू की गई है। वर्षा जल संरक्षण के नाम पर खर्च होने वाले अरबों-खरबों रुपए आखिर जाते कहां है? कहीं ऐसा तो नहीं कि योजनाओं के नाम पर आवंटित होने वाले धन को अधिकारी-ठेकेदार ही हड़प जाते हों?

पृथ्वी पर जल सबसे अमूल्य चीज है जिसे पैदा नहीं किया जा सकता। पानी के संकट से निजात पानी है तो हमें आसमान से बरसे अमृत को सहेजना ही होगा। ये काम सिर्फ सरकार के भरोसे छोड़कर चुप बैठने से भी पूरा होने वाला नहीं। पानी सब की जरूरत है तो उसके लिए योगदान भी सबको ही देना होगा। सरकार को भी चाहिए कि जल बचाने में सक्रिय रहने वाली पंचायतों-नगर परिषदों को विशेष प्रोत्साहन दे। ऐसा करने से प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होगी जो हमें सुनहरे भविष्य की ओर ले जाने में मददगार साबित होगी।

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