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सब्जबाग

Published: Oct 05, 2015 11:36:00 pm

हमारा तो काम ही चिल्लाना है। आप तो सत्ता का लुत्फ उठाओ। हमारा
क्या, किसी गरीब बस्ती में जाकर एक नज्म पढ़ आएंगे

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रात सपना आया। सपने में हम नेताजी के संग बैठ कर शिकंजी पी रहे थे। पता नहीं हमारी और बाबू की शिकंजी में किसने चुनाव छाप गोली मिला दी सो हम बोले- दिखाओ बाबू खूब सब्जबाग दिखाओ। लेकिन किसी बाग को सर सब्ज करने और सब्जबाग दिखाने में बड़ा फर्क होता है। आप खजाने के मालिक हैं। कुछ भी बांट सकते हैं। लड़कियों को स्कूटी और लड़कों को लैपटॉप दे रहे हैं। पिछड़ों को रंगीन टीवी और अति गरीबों को धोती बांट रहे हैं। बांटो। खूब बांटो। देने वाला दाता। लेने वाला राजा। दाता राजा को दे रहा है। लेकिन मुफ्त की सीरणी से कभी किसी का पेट भरा है? आप भी क्या करें। इस देश की जनसेवक कल्याणकारी सरकारों ने आज तक किया क्या है? इन्होंने मजे से देश को दो भागों में बांट दिया। एक देने वाला और दूसरा लेने वाला। देने वाला एक नंगे को एक साल में एक जोड़ा कपड़े देकर इतराता है और लेने वाला अपना नंगा तन ढक कर संतुष्ट हो जाता है। उत्तर हो या दक्षिण। पूर्व हो या पश्चिम। इन सरकारों ने अब तक यही तो किया है। गरीब गुरबों के टोले में एक रंगीन टीवी रखवा दो। दिन भर जी तोड़ मेहनत करेगा। सांझ को ताड़ी पिएगा और रात को बख्शीश में मिले टेलीविजन पर कमर लचकाती सनी लियोनी को देखेगा और वहीं सो जाएगा।

वाह क्या दिनचर्या है? क्या जिन्दगी है? क्या सुख है? और इस स्वर्गिक सुख को मुहैया कराने वाली मुई क्या सरकार है? जियो। जियो नेताजी जुग-जुग जियो। तुम सत्ता का सुख भोगो। तुम्हारी निकम्मी औलादें भोगे। नाकाबिल औलादों की बेवकूफ संतानें भोगे। कल तक तो एक परिवार को ही वंशवादी बताते थे आज तो हरेक नेता का यही हाल है। खैर आपकी कृपा से बेचारे गरीब को रंगीन सपने मिल गए। अब हमारे जैसे फोकटिए को आप काहे को सीरियस लेते हो।

हमारा तो काम ही चिल्लाना है। आप तो सत्ता का लुत्फ उठाओ। हमारा क्या हम तो ज्यादा से ज्यादा किसी गरीब बस्ती में जाकर एक नज्म पढ़ आएंगे- सुबह होती है सांझ होती है जिन्दगी यूं तमाम होती है। गरीब तो पैदा ही जिन्दगी गुजारने के लिए होता है। कभी हमारे संग भी “जिन्दगी” के पास किसी बस्ती में चलें।

मारे सड़ांध के दो मिनट में मितली न आ जाए तो कहना। आपको जूता सुंघाने पर ही होश आ जाएगा क्योंकि आपके जूते तो कच्ची बस्ती से भी ज्यादा सड़ांध मारते हैं। लेकिन यह मत भूलो कि शायर यह भी गाता है- हम देखेंगे जब ताज उछाले जाएंगे जब तख्त गिराए जाएंगे- हम देखेंगे। तख्त और ताज किसी के बाप की बपौती तो नहीं है। सब जनता जनार्दन के हैं।

राही

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