पिछले बरस एक
अद्भुत फिल्म देखी थी- “द हेल्प”। यह फिल्म अमरीकी काम वाली बाइयों के जीवन पर
आधारित थी। उस तथाकथित सभ्य समाज में ज्यादातर बाइयां ब्लैक ही थीं। उस फिल्म को
देख कर हमारे मन में उन महिलाओं के प्रति सम्मान और भी बढ़ गया जो शहरों की कच्ची
बस्तियों में रहती हैं और घर-घर जाकर झाड़ू-पोंछा- बरतन में गृहिणी की मदद करती हं।
लेकिन हमारे नेताओं की मानसिकता देख हमें गहरा अफसोस हुआ।
उन्होंने देश की शिक्षा
मंत्री स्मृति ईरानी को काम वाली बाई कह कर मजाक उड़ाया। अब समृति ने अपने संघर्ष
के दिनों में पोंछा लगाया या वेटर का काम किया, यह उनकी खिल्ली उड़ाने की नहीं
बल्कि तारीफ की बात होनी चाहिए। हमारे प्रधानमंत्री ने तो अपने आपको “चाय वाला” बता
कर सहानुभूति और वोट दोनों बटोरे थे।
बचपन में जितना संघर्ष हमारे पूर्व
प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने किया उतना तो किसी ने शायद ही किया होगा। लेकिन
वे इतने सरल और शालीन थे कि उन्होंने कभी इसे राजनीति का हथियार नहीं बनाया।
कांग्रेस के प्रभारी नेता का तंज हमें भी नहीं सुहा रहा। अरे साहब। अगर यह काम वाली
बाइयां न हो तो शहरों में तलाक की दरों में बेतहाशा वृद्धि हो जाए। क्योंकि तब
कामकाजी मियां बीवी में घरेलू कामकाज को लेकर निश्चित रूप से तल्खी बढ़ जाए।
जहां
तक स्मृति बहन को शिक्षा मंत्री बनाने का सवाल है उस पर तो हमें भी हंसी आती है।
पता नहीं मोदी भाई को क्या सूझी? क्या सचमुच भाजपा के पास विद्वानों का अकाल है?
स्मृति की शिक्षा के बारे में उतनी ही समझ है जितनी हमें एक मिसाइल बनाने के बारे
में। उड़ती हुई मिसाइल टीवी पर देखना और उसे बनाने में बड़ा फर्क होता है। क्योंकि
“सास भी कभी बहू थी” की सास बन कर आभासी परिवार चलाने और देश के उच्चतम शिक्षा
संस्थान को नई दिशा देने में बड़ा फर्क है लेकिन वाह रे राजनीति।
यहां अचानक “कौवे”
मोती जीमने लग जाते हैं और बेचारे हंस दाने- तुनके पर ही संतोष्ा कर लेते हैं। अकबर
के बरक्स महाराणा प्रताप को खड़ा करने, रामायण के पुष्पक विमान को उड़न तस्तरी
बनाने, महाभारत के ब्ा्रह्मास्त्रों को परमाणु बम के समकक्ष रखने का काम तो निपट
गंवार भी कर सकता है पर इन महान ग्रंथों के सहारे हवाई जहाज का निर्माण करने और
परमाणु बम बनाने का काम असंभव है।
अगर इतना आसान होता तो बहन स्मृति हम आक्रामक
महमूद गजनवी और व्यापारी के वेष में आए अंग्रेजों के विरूद्ध ब्ा्रह्मास्त्र का
प्रयोग कर उनके छक्के छुड़ा चुके होते। लेकिन जहां तक काम वाली बाई कह कर किसी
महिला का मजाक उड़ाना या किसी को नीचा दिखाने का हक किसी को नहीं मिल जाता। कल को
तो आप हमें भी “कलम घिस्सू” कह सकते हैं। हालांकि हमें इस काम पर गर्व है कम से कम
हम भ्रष्ट नेताओं की तरह अपना जमीर तो नहीं बेच खातें हैं।
राही