सीएजी यानी कैग अगर ना हो तो देश के क्या हाल हों? सरकारी कामकाज की समीक्षा करने वाली संस्था कैग आए दिन चौंकाने वाले खुलासे करती है। बावजूद इसके सरकारें और सरकारी संस्थान सुधरने का नाम ही नहीं लेना चाहते। कैग की एक चौंकाने वाली रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि सेना के पास सिर्फ दस दिन युद्ध लायक गोला-बारूद है। ये हाल तो तब है कि दो साल पहले भी कैग गोला-बारूद के कम होते भंडार पर चेतावनी दे चुका था। पाकिस्तान -चीन के साथ तनाव के चलते ये खबर चौंकाने वाली है।
देश की सुरक्षा के मामले में इस तरह खिलवाड़ हरेक देशवासी के लिए चिंता की बात है। कैग की ही एक और रिपोर्ट भी सामने आई है जिसमें ट्रेनों में मिलने वाले भोजन को इंसानों के खाने लायक नहीं माना गया है। हर सरकार, हर बजट में रेलवे को सुविधायुक्त बनाने के सपने दिखाती है।
यात्रियों की सुरक्षा के दावे करती है तो यात्रा के दौरान घर जैसा खाना उपलब्ध कराने की बात करती है। लेकिन हकीकत सबके सामने है। राजधानी और शताब्दी जैसी ट्रेनों में यात्रियों को कम गुणवत्ता का खाना परोसा जाता है। ट्रेनों के रसोईयान में गंदगी और चूहों के होने की समस्या का खुलासा भी हालिया कैग रिपोर्ट में किया गया है। कैग की तीसरी रिपोर्ट कहती है कि बच्चों की पढ़ाई के 87 हजार करोड़ रुपए राज्यों के खजाने में ही पड़े रह गए। एक तरफ सरकार शिक्षा को बढ़ावा देने की बात करती है।
शिक्षा के अधिकार का कानून भी बना चुकी है। दूसरी तरफ राज्य सरकारों की लापरवाही के चलते बच्चों का ‘शिक्षा का अधिकार’ मिल ही नहीं पा रहा। बात चाहें गोला-बारूद के भंडार की हो, रेलों में मिलने वाले घटिया भोजन की हो या शिक्षा के अधिकार की, अधिकांश सरकारें अपनी जिम्मेदारी के निर्वहन में नाकाम रहती हैं।
ऐसी रिपोर्टें सरकार को चौकन्ना करती है। विपक्ष को संसद में मुद्दे उठाने के हथियार थमाती हैं। ये संस्थाएं ना हों तो क्या हो? शिक्षा, सुरक्षा और भोजन आम जन से जुड़े मुद्दे हैं। इन मुद्दों पर सरकारें काम नहीं करती तो दूसरे मुद्दों के क्या हाल होंगे? कोई भी सरकार हो, ऐसी रिपोर्ट को अपने लिए किसी आफत से कम नहीं समझती। ये रिपोर्ट ऐसे समय पर आई है, जब संसद सत्र चल रहा है। उम्मीद है इन मुद्दों पर सार्थक चर्चा होगी। साथ ही ऐसा रास्ता भी निकलेगा ताकि ये गलती फिर ना हो।