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छोटी उड़ान : बन पाएगी हकीकत? (प्रो. गौरव वल्लभ)

Published: Oct 19, 2016 09:24:00 pm

सरकार चाहती है कि वर्ष 2022 तक भारत का एयर ट्रैफिक 30 करोड़ हो जाए।
जाहिर तौर पर यह बड़ा लक्ष्य है जो कि रीजऩल कनेक्टिविटी स्कीम से ही संभव
होगा। पर अभी कुछ बाधाएं हैं, जिन्हेें दूर करना होगा ताकि छोटे शहरों तक
जल्द पहुंच बढ़े

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केंद्र सरकार द्वारा जो रीजऩल कनेक्टिविटी स्कीम पेश की गई है, वह हवाई कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने का अच्छा प्रयास है। इसमें कुछ प्रमुख बातें हैं। पहली, सरकार ने एक घंटे की उड़ान के लिए 2500 रुपए प्रति यात्री एक कैप लगाई है, जो अच्छी बात है। दूसरी बात, पिछले कुछ वर्षों से भारत ‘इ•ा ऑफ डूइंग बिजनेस’ रैंकिंग में पिछड़ रहा था, उसके पीछे एक वजह भारत में छोटे शहरों में एयर कनेक्टिविटी न होना भी थी। दरअसल, जब तक भारत के टीयर-3 शहरों की टीयर -2 और टीयर-1 शहरों से कनेक्टिविटी नहीं बढ़ेगी तब तक समस्या जस की तस रहेगी।

चूंकि हमारे देश में जो भी बाहरी निवेशक आते हैं, वे अपने बिजनेस के लिए अच्छी कनेक्टिविटी चाहते हैं। इसलिए उन्हें बिजनेस की गतिविधियां करने में आसानी रहे, इसके लिए सरकार की यह नीति सकारात्मक पहल है। पर इसमें कुछ बाधाएं आ सकती हैं। पहली बाधा, सीएएसके (कॉस्ट पर एवेलेबल सीट किलोमीटर) के रूप में ही होगी। यानी एक व्यक्ति को हवाई जहाज से एक किमी. ले जाने में कितनी लागत आती है।

अभी भारत में यह 3-4 रुपए है, जो कि वैश्विक स्तर पर काफी कम है। पर सरकार ने अपनी नीति में एक घंटे की फ्लाइट के लिए 2500 रु. कैपिंग की है, जो अभी कच्चे तेल के कम दामों के हिसाब से तो ठीक है लेकिन तेल की कीमत बढऩा शुरू हो गई हैं और अगर यह पहले की तरह 70 डॉलर प्रति बैरल या 100 डॉलर प्रति बैरेल तक पहुंच गई तो सीएएसके 5-6 रुपए हो जाएगा। तब 2500 रु. में इन फ्लाइट्स का संचालन कैसे संभव होगा?

मौजूदा सीएएसके 3-4 रुपए भी तब होता है जब फ्लाइट की 80 फीसदी सीटें भरी हुई हों। पर छोटे शहरों के हवाई मार्गों पर शुरुआत में सीटें भरना बड़ी चुनौती होती है। तीसरा मुद्दा यह है कि सरकार की मंशा है कि टीयर-3 शहरों को टीयर-2 शहरों से जोड़ेंगे।

मसलन, जैसे सीकर को दिल्ली से या पाली को अहमदाबाद से, गंगानगर को जयपुर से, सागर से इंदौर, जबलपुर या सतना से भोपाल की कनेक्टिविटी बनानी होगी। पर सवाल है कि क्या अभी टीयर-2 शहरों में मौजूद एयरपोट्र्स की हैंडलिंग क्षमता पर्याप्त है? क्या जयपुर, भोपाल या रायपुर के एयरपोट्र्स इस नीति के लिए व्यावहारिक रहेंगे? एक अड़चन फ्लाइट ऑपरेटर को मुआवजे के स्तर पर भी आ सकती है।

इस नीति के तहत भारत सरकार और राज्य सरकार दोनों शामिल रहेंगी। पर जब तक यह साफ नहीं होगा कि कौन-सी जगह संचालक को कितना मुआवजा मिलेगा, तब तक कोई इस बिजनेस में नहीं आना चाहेगा। खासतौर पर छोटे निवेशक ही इस स्कीम के तहत काम करना चाहेंगे और वे जोखिम नहीं उठाना चाहेंगे।

इसलिए हमें यूरोप का मॉडल अपनाना चाहिए। वहां छोटे शहरों के लिए जो कनेक्टिविटी फ्लाइट होती हैं, वहां सरकार फ्लाइट संचालक को प्रति यात्री सीधी सब्सिडी देती है। यानी यह एक स्पष्ट मॉडल है। पर हमारे मॉडल में कई एजेंसियां शामिल रहेंगी। इसलिए सरकार एक स्थाई मुआवजा तय कर दे और यह संचालक को एक ही एजेंसी से मिले।

मल्टी स्टेक होल्डर नहीं होने चाहिए। इस नीति में 500 करोड़ रु. का फंड निर्धारित किया है, जिससे विश्व युद्ध के जमाने की एयर स्ट्रिप और हवाई अड्डों को पुनर्जीवित किया जाएगा। पर जो उस जमाने की एयरस्ट्रिप पर आज संचालन व्यावहारिक है? क्या सुरक्षा दृष्टिकोण से यह संचालन पुख्ता रहेगा, इसके जवाब दिए जाने चाहिए। दरअसल, सरकार की मौजूदा गाइडलाइंस एक ड्रीम है। सरकार चाहती है कि 2022 तक एयर ट्रैफिक को 30 करोड़ करना है।

जाहिर तौर पर यह बड़ा लक्ष्य है जो कि रीजऩल कनेक्टिविटी से ही संभव होगा। हालांकि इससे देश में हवाई सेवाओं का विस्तार तो होगा पर अभी विद्यमान चुनौतियों का जवाब जब तक नहीं मिल जाता तब तक कोई भी बड़ा फ्लाइट ऑपरेटर इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाएगा। सबसे पहले तो सरकार संशोधन कर फ्लाइट संचालक को गैस सब्सिडी की तरह यात्री भार के हिसाब से सीधी सब्सिडी दे। सरकार और संचालक जल्द ही यह मालूम लगा लें कि किन रूट्स पर संचालन मुफीद है।

एक तर्क यह दिया जाता है कि सरकार अमीरों या बिजनेसमैन की हवाई सुविधाओं के लिए सब्सिडी या मुआवजा क्यों दे? पर इसका जवाब यह है कि सरकार इस नीति के जरिए निवेशकों को खींचना चाह रही है ताकि वे अच्छी कनेक्टिविटी के जरिए टीयर-2 और टीयर-3 शहरों में बिजनेस स्थापित कर सकें।

इससे स्थानीय स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर भी मुहैया होगा और लोगों को रोजगार भी मिल जाए। वैसे भी अभी भारत की एयर डेनसिटी प्रति लाख संख्या में ब्रिक्स देशों में सबसे कम है। इसे भी बढ़ाना है। हवाई सुविधा का मतलब मेट्रो शहर ही क्यों होना चाहिए। छोटे शहरों के नागरिकों को भी यह सुविधा मिलनी चाहिए। ऐसी हवाई कनेक्टिविटी का राजधानी और शताब्दी जैसी टे्रनों में बढ़ी दरों पर यात्रा करने वाले लोग इस्तेमाल करेंगे। पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए यह सुविधा काम आएगी। मेक इन इंडिया के प्रोजेक्ट्स को यह नीति काफी लाभ पहुंचाएगी।

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