हमारे एक मित्र जब अपने
पैसे, पद और प्रसिद्धि के जोश में होते हैं तो हमसे पूछते हैं कि तू क्या है? वे तो
यह सवाल दो घूंट लगा हमारे सामने उछालते हैं लेकिन हम ससपंज की रस्सी में उलझ जाते
हैं ठीक उसी तरह जैसे रस्सी कूदते वक्त वह आपके पैर में लिपट जाए और आपके पास भू
लुंठित होने के सिवाय कोई चारा ही न बचे। बड़ा विचित्र सवाल है- तू क्या है? भारतीय
मनीषा में बड़े-बड़े ज्ञानी ध्यानियों को अपने आप से यह सवाल करते तो सुना है कि
मैं क्या हूं पर तू क्या है सवाल को शालीनता के हिसाब से ठीक नहीं माना जाता।
हमारा
मत है कि यह पूछने का हक किसी को नहीं है।लेकिन जब हमसे कोई सवाल करता है, चाहे वह
नशे में ही क्यों न हो, तो जवाब देना हमारा फर्ज बन जता है। क्योंकि जब हम तरह-तरह
के सवाल आपके सामने उठाते रहते हैं तो एक सवाल से बचना क्या शोभा देता है? बहुत
सोचने के बाद हमें इस प्रश्न का एक ही उत्तर मिला है और कि हम “शब्दों के गुलाम”
हैं क्योंकि हमारे लिए तो शब्द ही सब कुछ है।
हम शब्द ही बोते हैं, शब्द ही काटते
हैं, शब्दों की ही खाते हैं और शब्दों से ही नहाते हैं। बकलम दुष्यन्त के मैं जिसे
ओढ़ता बिछाता हूं, वो गजल आपको सुनाता हूं। लेकिन जरूरी नहीं कि हमारी तरह सब
शब्दों के गुलाम हों। इस दुनिया में ज्यादातर लोग “पैसे के गुलाम” होते हैं। पैसा
ही उनका माई बाप होता है। चलिए शब्दों और पैसों के गुलाम तो आपको बहुतेरे मिल
जाएंगे लेकिन शब्दों और पैसों के मालिक कौन है? दीजिए जनाब इस सवाल का जवाब दे तो
हम आपकी टांगों के नीचे से निकल जाऎ। नहीं बता पाए ना।
अजी शब्दों और पैसों के
मालिक हैं हमारे नेता। जो नेता इनके मालिक बन गए वह तर गए। जैसे पंडित नेहरू कहा
करते थे कि वामपंथी और समाजवादी शब्दों के गुलाम हैं। यहां शब्दों से उनका मतलब
नारों से था। ये लोग कर्म से ज्यादा नारों में विश्वास करते रहे और आज इनके क्या
हाल हो गए? कभी इन्होंने शब्दों का मालिक बनने की कोशिश ही नहीं की। अपने डैडी की
तरह इंदिराजी भी शब्दों की महारानी बनी रही।
शब्दों के राजकुमार अटल जी थे और वे
देखते-देखते तीन बार प्रधानमंत्री रह लिए। आजकल अपने नरेन्द्रभाई मोदी ने शब्दों को
अपना गुलाम बना रखा है। चाहे देश हो या विदेश जो मरजी आए बोल आते हैं और तालियां
लूट लेते हैं। लेकिन जो शब्दों के गुलाम हैं वे शब्द से ही डरते भी हैं।
शब्द बड़ा
करामाती होता है। एक शब्द छोटी- सी बात को बड़ी-सी करामात बनाने की हैसियत रखता है।
हमारे लिए तो शब्द ईश्वर का अमूर्त रूप है- तुम ही हो शब्द ब्ा्रह्म! अर्थो के परम
अर्थ। तेरी कृपा पाकर, वाणी न होती व्यर्थ। बाबा तुलसी ने कहा था- “हम चाकर रघुवीर
के पटौ लिखो दरबार। अब तुलसी का होयेंगे नर के मनसबदार”। जी हां सरकार। जिसने
शब्दों की गुलामी कर ली वो सारी गुलामियों से पार उतर गया समझो।
राही