जब एक भाई के कई
बहनें होती हैं तो उसकी सारी जिन्दगी बहनों के छूछक और भात भरने में ही बीत जाती
है। कभी इस भानजे का ब्याह तो कभी इस भानजी का। कभी छोटी बहन के बाल बच्चा हुआ है
तो कभी जीजा का बारहवां। क्या करे, क्या न करे। यही हाल बेचारे नमो भाई का हो रहा
है। किस-किस बहन का “बखेड़ा” निपटाए। सबसे पहले स्वराज बहन का पंगा सामने आया तो
इसके तुरंत बाद महारानी का। यह अभी सलटे नहीं थे कि छोटी बहन स्मृति की करतूत सामने
आ गई। इतने में पता चला कि बड़े भैया दिवंगत गोपीनाथ मुंडे की बिटिया पंकजा ने दो
सौ करोड़ का नया कारनामा कर दिखाया।
अब क्या करे बेचारा अकेला भाई। उसने चुनावों के
वक्त छाती ठोक-ठोक कहा था कि “न खाऊंगा न खाने दूंगा” यानी न भ्रष्टाचार करूंगा और
न होने दूंगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेन्स रखूंगा। अब जो मामले सामने आ रहे
हैं उनमें शुरू के तीन में रूपए-पैसे का सीधा लेन-देन तो नजर नहीं आया है पर एक
घोçष्ात भगोड़े की सहायता करने का बड़ा लफड़ा साफ लग रहा है। ऊपर से दिल्ली में
केजरीवाल एण्ड पार्टी ठीक कान के पास आकर चिल्ला रही है कि जब आपने तोमर की “बलि”
ले ली तो ठीक उसी मसले पर स्मृति को क्यूं बख्श रहे हो।
ये सारे ऎसे मसले हैं
जिन्हें विपक्षी जल्दी हल भी नहीं होने देना चाहेंगे। क्योंकि जब तक ये तीनों बहनें
कुर्सी पर रहेंगी, विरोधी ढोल पीटते रहेंगे जिसका सीधा असर नरेन्द्र भाई पर पडेगा।
हैरत की बात तो यह कि सत्तर चूहे खाने वाली कांग्रेस भी कह रही है कि हमने तो आरोप
लगने के बाद अपने कई मंत्रियों को घर बैठा दिया था और आप चुप हैं इसका अर्थ है कि
हमारी नैतिकता का स्तर “श्रेष्ठ” है। अब बताओ क्या करे भाई। बहनों से ज्यादा कह भी
नहीं सकता। बहनों के बगैर रह भी नहीं सकता और बहनों को निकाल भी तो नहीं सकता।
इनमें एकाध तो ऎसी जिद्दी हैं कि वे तोड़-फोड़ का माद्दा रखती हैं। भाई चाहता है कि
वह विकास की सड़क पर चले। लेकिन बहनों ने गाड़ी ही पंक्चर कर डाली। नरेन्द्र भाई ने
अपने खासमखास वकील जेटली को मोर्चे पर उतारा लेकिन लन्दन में छिपा छोटा मोदी तो उसी
पर गोले दागने को तैयार बैठा है। एक चक्कर उपनाम का भी है। क्रिकेट वाले का उपनाम
सीधे-सीधे दिल्ली वाले भाई से मिलता है तो कांग्रेसी अपने नारों में दोनों की तुक
भिड़ाने में जुटे हैं।
भाई को एक बात तो समझ में आ गई कि गुजरात और दिल्ली का राज
चलाने में दिन-रात का फर्क है। अगर वे गुजरात में होते तो सारी बहनों को तिलक लगा
अब तक विदा कर चुके होते। इधर कांग्रेसी बुक्के फाड़ रहे हैं। जो काम वे बाकी चार
बरस में नहीं कर पाते, लन्दन वाले मोदी ने चुटकियों में कर डाला।
सचमुच हमारी
सहानुभूति नमो भाई के साथ है। इनके साथ भी वही हो रहा है जो मौनजी के साथ होता रहा।
दोनों घोर “ईमानदार” हैं पर पार्टी व सरकार को चाट रही “दीमकों” का क्या करें?
राही