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मीठा जहर

Published: Jul 21, 2015 11:28:00 pm

यदि लाखों जिंदगियोंके साथ बीमारी पर खर्च होने वाली भारी-भरकम राशि बचाई
जा सकती है तो क्यों नहीं बचाई जाए लेकिन इसके लिए रस्मी अभियान चलाने से कुछ नहीं
होगा।

Cold drinks

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कोल्ड ड्रिंक के रूप में नसों में घुल रहे “मीठे जहर” की खबरें आती हैं। दो-चार दिन चर्चाओं में भी रहती हैं लेकिन सब-कुछ फिर पहले की तरह सामान्य हो जाता है। एक सर्वे के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। चीनीयुक्त कोल्ड ड्रिंक के सेवन से हर साल एक लाख 84 हजार लोगों की मौत हो रही हो लेकिन कहीं हलचल नहीं। पिछले दिनों मैगी नूडल्स में घातक रसायनों की बात सामने आई तो अनेक देशों में हाहाकार मच गया। आनन-फानन में जांचें हुई और देखते-देखते मैगी की बिक्री पर प्रतिबंध लग गया। कोल्ड ड्रिंक हो या चॉकलेट अथवा डिब्बाबंद अन्य खाद्य पेय पदार्थ, क्यों नहीं इनकी नियमित जांच होती है? आम आदमी को क्यों नहीं पता होता कि वह जो खा-पी रहा है वह उसके शरीर के लिए कितना नुकसानदेह है? भारत जैसे विकासशील देश में डायबिटीज के मरीजों की संख्या हर साल बढ़ती जा रही है, इलाज पर अरबों रूपए खर्च हो रहे हैं। अनेक लोग समय से पहले मौत का शिकार भी हो रहे हैं लेकिन सावधानी बरतने को कोई तैयार ही नहीं। अमरीकन हार्ट एसोसिएशन के सर्वे पर विश्वास किया जाए तो कोल्ड ड्रिंक और शुगर ड्रिंक पीने की वजह से डायबिटीज के मरीजों की संख्या बढ़ रही है। पिछले पन्द्रह सालों में भारत में कोल्ड ड्रिंक की खपत पांच गुना बढ़ने के बावजूद यहां जांच सम्बंधी नियम तक स्पष्ट नहीं हैं। उत्पाद में प्रयोग होने वाली सामग्री का उल्लेख मानकों की सूची में शुमार नहीं है, जिसका फायदा कंपनियां उठाती हैं। इसमें मिलीभगत के खेल की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है।

आश्चर्यजनक तथ्य यही है कि कैंसर जैसी घातक बीमारी के मुकाबले डायबिटीज से होने वाली मौतों की संख्या 22 गुना तक अधिक है।केन्द्र के साथ-साथ राज्य सरकारों को आम आदमी की स्वास्थ्य चिंता को गंभीरता से लेना चाहिए। थोड़ी सावधानी बरतकर यदि लाखों जिंदगियोंके साथ बीमारी पर खर्च होने वाली भारी-भरकम राशि बचाई जा सकती है तो क्यों नहीं बचाई जाए लेकिन इसके लिए रस्मी अभियान जैसी खानापूर्ति से कुछ हासिल नहीं होगा।

डिब्बाबंद और बोतल बंद उत्पादों पर सतत निगरानी और जांच प्रक्रिया चलाने की जरूरत है। कोई भी उत्पाद यदि मापदंडों पर खरा नहीं उतरता तो उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। मिलीभगत के खेल पर अंकुश लगाने की भी जरूरत है। कंपनियों को अपने उत्पादों में प्रयोग होने वाली सामग्री का उल्लेख करना अनिवार्य हो। समय-समय पर ऎसे सर्वे भी होने चाहिए जिससे डिब्बाबंद उत्पादों के उपयोग से होने वाली बीमारियों की जानकारी मिलती रहे।

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