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झांसा पट्टी

अब साहब हमारी इतनी औकात नहीं जो वरिष्ठ राजनीतिक,
अधिवक्ता, आंदोलनकारी और अपने हिसाब से

Oct 08, 2015 / 11:17 pm

मुकेश शर्मा

Swindle

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अब साहब हमारी इतनी औकात नहीं जो वरिष्ठ राजनीतिक, अधिवक्ता, आंदोलनकारी और अपने हिसाब से खरी-खरी कहने वाले रामजी की “टिप्पणी” पर नुकताचीनी कर सकें कि वे मोदी और जेटली के झांसे में आ गए। कुछ नहीं कहने का बड़ा कारण है।


क्योंकि वे तो इन दोनों के ही झांसे में आए हम तो बचपन से लेकर आज तक न जाने कितनों के झांसे में आ चुके हैं। सच कहते हैं जनाब इतने झांसे खाए हैं कि अब झांसों से ऊब गए हैं। अगर सल्लू उस्ताद की एक फिल्म के डॉयलॉग की पैरोडी बना कर कहें तो बात यूं बनेगी- “झांसों” से डर नहीं लगता नेताजी, अब तो उन कामों से लगता है जो आप पूरे करने में लगे हैं। यह बात जितनी हंसी-ठिठोली की लगती है, वैसी है नहीं। आइए जरा झांसों का इतिहास देखें।



नेहरू-शास्त्री युग तक तो हम ऎसे बच्चे थे जो झांसों व हकीकत में भेद नहीं कर पाता पर इंदिराम्मा के आते-आते समझ विकसित होने लगी थी। बुरे-भले का ज्ञान होने लगा था।

उन्होंने सिण्डीकेट की खाट खड़ी करने के लिए जोरदार नारा दिया-गरीबी हटाओ। कसम से हम तो क्या पूरा देश उन पर लट्टू हो गया पर देश की गरीबी तो नहीं हटी अलबत्ता नेताओं की गरीबी जरूर हट गई। इंदिरा गांधी के बाद उनके ज्येष्ठ पुत्र राजीव प्रधानमंत्री बने लेकिन वे राजनीति में इतने फे्रश थे कि उन्हें झांसे देना आया ही नहीं। उन्होंने देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने की बात की जिसे उनके विपक्षियों ने उस वक्त झांसा बताया लेकिन उसी की बदौलत आज प्रधानमंत्री दुनिया में भारत का सिक्का जमाते फिर रहे हैं यानी राजीव का वह झांसा नहीं बल्कि हकीकत थी।

उन्होंने जो कम्प्यूटर का पेड़ बोया था उसके फल हम आज खा रहे हैं और मजे की बात इसके लिए राजीव को याद भी नहीं करते हैं सिर्फ इस डर से उनकी तारीफ का फायदा उनका बेटा न उठा ले। बहरहाल एक झांसा हो तो उसका जिक्र करें।


यह तो हुई राजनीति की बातें। जब जवान हुए तब प्रेम में भी झांसा पट्टी में आए। एक पुराना गीत है- किसी ने कहा है कि इश्क में रकीबों को कासिद बनाते नहीं- हमने अपने प्रेम में अपने एक दोस्त को कासिद (पत्र वाहक) बनाया और बाद में पता चला कि वही झांसा देकर हमारा प्रेम ले उड़ा और हम टापते रह गए।

यानी दोस्त ही दुश्मन निकला। झांसा पट्टी के ऎसे कड़वे अनुभव आपके पास भी होंगे। कभी मौका मिला तो मिलेंगे और अपने-अपने झांसों की मेमोरी साझा करेंगे। जिसने सबसे बड़ा झांसा खाया होगा उसे हम अपनी तरफ से दावत देंगे। तो हो जाइए झांसे सुनाने सुनने को तैयार। – राही

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