अगर हम दुनिया की खूबसूरती में चार चांद नहीं लगा सकते तो इसे बदरंग बनाने का हमें क्या हक है? एक अमरीकी शोध के अनुसार विश्व धरोहरों में शामिल आगरा का ताजमहल दिनोंंिंदन चमक खोता जा रहा है। इसका कारण मौसम के मिजाज का बिगडऩा नहीं बल्कि आगरा की जनता व स्थानीय प्रशासन है। शोध में सामने आया है कि आस-पास ठोस कूड़ा जलाने से ताजमहल बेनूर हो रहा है। 350 साल से भारत का नाम रोशन कर रहा ताजमहल प्रेम का ऐसा मंदिर-मस्जिद है जिसे हर कोई निहारना चाहता है। रोज 25 हजार लोग ताजमहल देखने आते हैं।
पर्यटन से आगरा के लोगों और प्रशासन को अरबों रुपए की आय होती है। हजारों परिवारों की रोजी-रोटी चलती है ताजमहल से। बावजूद इसके ताजनगरी के लोग ही यदि इसे बर्बाद करने पर तुल जाएं तो दोष किसे दिया जाए? बात अकेले ताजमहल की ही नहीं। भारत के तमाम शहरों में कई धरोहरें हैं जो इसी तरह लापरवाही का शिकार होकर दम तोड़ रही हैं। जिन लोगों की गुजर-बसर ऐसी धरोहरों से हो रही हैं, वे भी इसे बचाने के प्रति गंभीर नजर नहीं आते।
ताजमहल को लेकर शोध की रिपोर्ट पहली बार सामने नहीं आई है। कई एजेंसियां ताजमहल के पीले पडऩे की हकीकत पहले भी जता चुकी हैं, फिर भी सुध लेने वाला कोई नजर क्यों नहीं आ रहा? केंद्र-राज्य सरकारों के विभागों से जुड़े कर्मियों के साथ जनता को भी इन्हें बचाए रखने के लिए आगे आना चाहिए।
आगरा में ताजमहल, दिल्ली में लाल किला, जयपुर में हवामहल और किले, उदयपुर में झीलें, भोपाल में बड़ा तालाब और हैदराबाद में चारमीनार नहीं रहे तो वहां कौन पर्यटक आना चाहेगा? मैट्रो व मल्टीस्टोरी बिल्डिंगें तो विदेशों में हमसे अच्छी हैं। सरकारों व जनता को विचार करना चाहिए कि अगर हम कुछ जोड़ नहीं सकते तो हमें तोडऩे का भी हक नहीं रह जाता।
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