राजनीति तो अपना धर्म निभाएगी लेकिन राजनेता जयललिता से जनता के दिलों पर राज करने का सबक सीख सकते हैं
हर व्यक्ति की जीवन यात्रा कभी ना कभी पूर्ण होती है। इस नाते तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता की जीवन यात्रा के पूर्ण होने में भी नया कुछ नहीं। सृष्टि का नियम ही पूरा हुआ है। राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और कांग्रेस उपाध्यक्ष से लेकर राज्यों के मुख्यमंत्रियों का उनकी अंत्येष्टि में शामिल होना लौकिक परम्परा का निर्वहन हैं, पर जो अलौकिक है, वह है लाखों नर-नारियों का इस यात्रा में शामिल होना।
उनकी अंतिम यात्रा में शामिल राजनेताओं के अपने स्वार्थ होंगे या रहे होंगे लेकिन ये लाखों लोग वे थे जिनका उनसे सीधा स्वार्थ इतना ही था कि जयललिता ने उनकी जिन्दगी की बेहतरी की योजनाएं बनाईं। कभी गैस के चूल्हे दिए तो कभी बिजली के पंखे और मिक्सर ग्राइण्डर। चार दशक लम्बे राजनीतिक जीवन में दाग भी कम नहीं लगे। कभी मन भर सोना इकट्ठा करने का तो कभी पास में 12 हजार साड़ी और एक हजार जोड़ी सैण्डिल होने का।
उन्हें अपमानित करने की कोशिश भी कम नहीं हुई लेकिन आम महिलाओं से इतर उन्होंने हर अपमान को अवसर में बदलने में कामयाबी हासिल की। आजादी भारत के राजनीतिक इतिहास की वे उन विरली शख्सियतों में हैं जिनका द्रमुक और करुणानिधि के सिवाय किसी से कोई वैर नहीं था। कांग्रेस और भाजपा दोनों के साथ राष्ट्रीय राजनीति में शिरकत की। बेशक, जयललिता के नहीं रहने से आज तो तमिलनाडु में ऐसा खालीपन आ गया है जिसे भरना आसान नहीं है। तरह-तरह के आरोपों से घिरीं शशिकला की क्षमताएं अभी साबित होनी हैं।
पन्नीरसेल्वम पहले भी भावुकता में सरकार चलाते रहे हैं। ऐसे में अन्नाद्रमुक पर करुणानिधि से लेकर भाजपा-कांग्रेस सबकी निगाहें रहेंगी। राजनीति तो अपना धर्म निभाएगी लेकिन राजनेता चाहें तो इससे जनता के दिलों पर राज करने का सबक सीख सकते हैं। वे देश की महिलाओं के लिए भी कम सीख नहीं हैं। तमाम आरोपों के बावजूद वे कभी न रोईं न कमजोर पड़ीं। लड़ीं और ऐसी जगह बनाई कि अपने आदर्श ‘एम.जी. रामचन्द्रन’ को भी पीछे छोड़ दिया।