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‘आप’ के संकट का दौर

चुनाव आयोग ने पहले से संकट में फंसी आम आदमी पार्टी की मुश्किलों को बढ़ा
दिया है। पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता समाप्त करने सम्बंधी याचिका पर
सुनवाई जारी रखने का आयोग का फैसला अरविंद केजरीवाल सरकार के लिए खतरे का

Jun 25, 2017 / 10:34 pm

शंकर शर्मा

Aam Aadmi Party

Aam Aadmi Party

चुनाव आयोग ने पहले से संकट में फंसी आम आदमी पार्टी की मुश्किलों को बढ़ा दिया है। पार्टी के 21 विधायकों की सदस्यता समाप्त करने सम्बंधी याचिका पर सुनवाई जारी रखने का आयोग का फैसला अरविंद केजरीवाल सरकार के लिए खतरे का सबब बन सकता है।

दिल्ली में प्रचंड बहुमत मिलने के बाद केजरीवाल सरकार ने अपने 21 विधायकों को संसदीय सचिव मनोनीत किया था। बिना कानून की पड़ताल किए कि ये पद ‘लाभ के पद’ में शामिल होता है या नहीं। मामला राष्ट्रपति के पास गया तो सरकार ने इसे ‘लाभ के पद’ से हटा लिया। लेकिन जिस दिन विधायकों को संसदीय सचिव बनाया गया उस दिन वो ‘लाभ के पद’ में आता था। पिछले दो साल से मामला चुनाव आयोग में है।

सभी पक्ष चुनाव आयोग के समक्ष दलीलें पेश कर चुके हैं और मामले पर फैसला कभी भी आ सकता है। दिल्ली उच्च न्यायालय संसदीय सचिव के पद को पहले ही गैर कानूनी करार दे चुका है। ऐसे में आयोग का फैसला भी विधायकों के खिलाफ आया तो सरकार पर संकट के बादल और गहरे हो जाएंगे। केजरीवाल के करीबी रहे पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने पिछले दिनों आप सरकार पर भ्रष्टाचार के जो गंभीर आरोप लगाए, उसका बचाव सरकार नहीं कर पाई। हर मुद्दे पर मीडिया के सामने बोलने वाले केजरीवाल इन दिनों मौन हैं।

शुंगलू कमेटी की रिपोर्ट में भी केजरीवाल सरकार पर मनमाने ढंग से काम करने के आरोप लगाए गए हैं। उप राज्यपाल के साथ टकराव के चलते दिल्ली में अनेक योजनाएं अटकी पड़ी हैं। पंजाब और गोवा विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी की करारी पराजय से कार्यकर्ता हताश हैं।

पार्टी को समझ नहीं आ रहा कि संकटों के इस दौर से वह कैसे बच निकले। पार्टी के विस्तार की बात तो दूर दिल्ली में भी वह सिमटती जा रही है। ऐसे दौर में 21 विधायकों की सदस्यता पर कोई आंच आई तो दिल्ली में राजनीतिक संकट का बढऩा तय है। यहां सवाल ये नहीं कि आम आदमी पार्टी सरकार का भविष्य क्या होगा?

सवाल ये कि दिल्ली सरकार के अस्थिर होने से तीसरे मोर्चे की संभावनाएं जन्म लेने से पहले ही धराशायी हो जाएंगी। आम आदमी पार्टी की शुरुआत के समय लगा था कि देश दो मोर्चों की राजनीति से अलग हट सकता है। आम आदमी पार्टी के कमजोर पडऩे से वह विश्वास भी कमजोर होगा।

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