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यह बेटी हटाओ अभियान!

Published: Feb 02, 2016 11:05:00 pm

केद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का कहना है कि गर्भ में ही शिशु का लिंग परीक्षण किया जाना

Gender test

Gender test

केद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी का कहना है कि गर्भ में ही शिशु का लिंग परीक्षण किया जाना चाहिए और फिर इस गर्भवती के बारे में पूरी निगरानी करनी चाहिए। यह बात उन्होंने तब कही है जबकि देश में भ्रूण के लिंग परीक्षण पर रोक लगाने वाला कानून पहले ही लागू है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि कानून के विपरीत उन्होंने अपनी राय क्यों रखी? क्या देश में हर साल गर्भवती होने वाली 2.90 करोड़ महिलाओं की निगरानी कर पाना संभव हो सकेगा? क्या इससे कन्या भ्रूण हत्याओं पर सचमुच में लगाम लग सकेगी? ऐसे ही ज्वलंत सवालों के जवाब मांगती तीखी प्रतिक्रियाएं, पढि़ए स्पॉटलाइट में…

यह तो वाणिज्यिक नजरिया ही है

अधिकतर चिकित्सक अपने पेशे की गरिमा को समझते हैं लेकिन कुछ डॉक्टर ऐसे हैं जो सिर्फ पैसा ही कमाने की बात सोचते हैं और इसके लिए वे किसी भी हद से गुजर जाने के तैयार रहते हैं। मेनका गांधी उनकी इसी गलत संस्कृति को अपनी वाणी दे रही हैं।

बृंदा करात सांसद माकपा

दरअसल देश में बहुत बड़ी लॉबी है ऐसे डॉक्टरों और क्लीनिकों की जो जन्म से पहले ही भ्रूण का लिंग परीक्षण करते हैं। देश में काफी कड़ा कानून है। और, इस के कारण ही ऐसे क्लीनिक मोटा मुनाफा कमाते हैं। इन पर लगातार निगरानी की आवश्यकता है। वर्तमान में सबसे बड़ी परेशानी ही यही है कि ऐसे क्लीनिकों पर लगाम कसने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। यह लॉबी चाहती है कि कानून में ढील मिले और उन्हें खुलेआम धंधा करने का मौका मिल जाए। दुर्भाग्य से हमारी केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने ऐसे ही लोगों को वाणिज्यिक लाभ पहुंचाने के लिए अपनी राय व्यक्त की है।

सरकार की दोहरी नीति

अधिकतर चिकित्सक अपने पेशे की गरिमा को समझते हैं और उसके अनुरूप व्यवहार भी करते हैं। लेकिन, कुछ डॉक्टर ऐसे हैं जो सिर्फ पैसा ही कमाने की बात सोचते हैं और इसके लिए वे किसी भी हद से गुजर जाने के तैयार रहते हैं। मेनका गांधी उनकी इसी गलत संस्कृति को अपनी वाणी दे रही हैं। हालांकि वे कह रही हैं कि यह उनकी निजी सोच है और उन्होंने भ्रूण लिंग परीक्षण शिशु के जन्म से पहले किए जाने का प्रस्ताव केबिनेट के सामने रखने की बात कही है। लेकिन, ताज्जुब तो यह है कि उनके पास पचासों प्रस्ताव जन्म पूर्व भ्रूण लिंग परीक्षण पर रोक लगाने के लिए आए हैं, उन्होंने इन प्रस्तावों पर ध्यान क्यों नहीं दिया? ऐसा लगता है कि जिस पार्टी और सरकार का वे प्रतिनिधित्व करती हैं, उसकी भाषा और नीति बहुत ही दोहरी है। जरूरत थी, बेटी बचाओ अभियान को पूरी ताकत से आगे बढ़ाने की लेकिन ऐसा लगता है कि इन्होंने इसे तब्दील कर बेटी हटाओ अभियान शुरू कर दिया है।

कैसे होगी निगरानी

आज दुनिया कन्याओं को आगे बढ़ाने की बात कर रही है और उनकी सुरक्षा के साथ कन्या भ्रूण को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करती है। लेकिन, केंद्रीय मंत्री की सोच ने हिंदुस्तान को दुनिया में पीछे धकेलने का ही काम किया है। जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण की पैरवी करने से अधिक निंदनीय बात कुछ नहीं हो सकती। मैं तो मेनका गांधी से पूछना चाहती हूं कि क्या उन्होंने कभी अपने संसदीय क्षेत्र या अपने राज्य के लिंगानुपात की जानकारी हासिल की है? क्या उन्होंने कन्या भ्रूण हत्या को रुकवाने के लिए अपने संसदीय क्षेत्र में कुछ किया है? वे तर्क दे रही हैं कि भ्रूण का लिंग परीक्षण करके गर्भवती महिलाओं की निगरानी करनी होगी।


लेकिन, जरा सोचिए कि देश में करीब 50 हजार मशीनें है जो भ्रूण परीक्षण के काम आती हैं। यदि सरकार के पास इस बात के संसाधन नहीं है कि वह इन मशीनों से होने वाले परीक्षणों की पर्याप्त निगरानी कर सके तो यह कैसे संभव है कि हर साल गर्भवती होने वाले देश की करीब 2.90 करोड़ महिलाओं पर निगरानी की जा सकेगी? निगरानी करने की बातें बहुत ही खोखली हैं। जिन्हें जेल में होना चाहिए, उनकी पैरवी कर रही हैं हमारी मंत्री। बेहतर होगा कि वे जो कानून है उसे ही लागू करवाएं।

मर्ज के उपचार की यह दवा नहीं


एक तरफ केन्द्र व राज्य सरकारें और सभी राजनीतिक दलों की यह कोशिश है कि वे भू्रण परीक्षण और कन्या भ्रूण को गर्भ में ही समाप्त करने के प्रयासों को सख्ती से रोकें। दूसरी तरफ मंत्री के ऐसे बयान कम होती बेटियों को बचाने के प्रयासों को धक्का पहुंचाने वाला है।

ममता शर्मा पूर्व अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग

बी ते कुछ सालों में देश भर में कन्या भू्रण हत्या के खिलाफ जबर्दस्त माहौल बना है। इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि बेटियों को इस संसार में आने का हक है और उनकी गर्भ में ही हत्या करने से बड़ा कोई पाप नहीं है। मुझे समझ नहीं आता कि मेनका गांधी ने भ्रूण परीक्षण को जायज ठहराने की बात क्यों की है। मैं इस बयान के सख्त खिलाफ हूं। एक तरफ केन्द्र व राज्य सरकारें और सभी राजनीतिक दलों की यह कोशिश है कि वे भू्रण परीक्षण और कन्या भ्रूण को गर्भ में ही समाप्त करने के प्रयासों को सख्ती से रोकें। दूसरी तरफ मंत्री के ऐसे बयानबेटियों को बचाने के प्रयासों को धक्का पहुंचाने वाला है।

मानसिकता में फर्क

हो सकता है कि मेनका गांधी ने भ्रूण परीक्षण की नित नई तकनीकों पर अंकुश लगाने के लिहाज से यह बात कही हो लेकिन मर्ज के उपचार का यह तो कोई तरीका नहीं है। यह तो एक तरह से लोगों की मानसिकता सी बन गई है कि शहरी क्षेत्रों में भू्रण परीक्षण कम होते हैं और ग्रामीण इलाकों में ज्यादा। मेरा तो यह मानना है कि गांव के लोग तो सदा से ही भोले हैं। उनको इस बात से कतई मतलब नहीं होता कि महिला के पेट में पल रहे शिशु का लिंग क्या है। कन्या के जन्म में भी वह उतना ही उत्साहित होता है जितना बालक के जन्म से। लिंग परीक्षण की मानसिकता तो पढ़े-लिखे वर्ग की ज्यादा है। बेटा ही वंश चलाएगा की सोच ने बेटियों को गर्भ में ही मार देने की दुष्प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है। कानून बनने के बावजूद लोगों ने चोरी-छिपे परीक्षण कराने का रास्ता निकाल रखा है। इस दुष्कृत्य में चिकित्सकों का पवित्र पेशा भी बदनाम होता है। लेकिन सिर्फ यही बहाना कर लिंग परीक्षण को जायज ठहराने की बात कहीं से भी समझदारी भरी नहीं लगती।

महिलाएं ही प्रताडि़त

 मेनका जी की यह राजनीतिक सोच हो सकती है लेकिन हमारे देश में अभी तकनीकी तरक्की इतनी नहीं हुई है कि एक-एक गर्भवती महिला की ट्रेकिंग की जा सके। मसलन अमुक का लिंग परीक्षण हो गया अथवा नहीं और अमुक ने बेटी को जन्म दिया अथवा बेटे को। इस देश में हम गांव-ढाणी तक सस्ती व सुलभ चिकित्सा सुविधा तो दे नहीं पा रहे। ऐसे में सरकार कैसे ट्रेकिंग की व्यवस्था कर पाएगी? हमारी सबसे बड़ी परेशानी भी यही है कि कानून तो हम बड़े जोर-शोर से बनाते हैं। दंड प्रावधान भी सख्त करते हैं पर इनका पालन हो पा रहा है अथवा नहीं इसकी तहकीकात कोई नहीं करता। महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए भी कई कानून बने हुए हैं लेकिन ज्यादातर मामलों में महिलाओं को ही दोषी ठहराया जाता है। हां, मैं यह मानती हूं कि दहेज के मामलों में एकाध प्रतिशता ऐसे हो सकते हैं जिनमें महिलाएं इसका दुरुपयोग करती हों। लेकिन कोई महिला तब ही कोर्ट-कचहरी तक पहुंचने को मजबूर होती है जब वास्तव में वह अत्याचार की शिकार हुई हो। लिंग परीक्षण की छूट तो सचमुच इस उत्पीडऩ को और बढ़ाने वाली होगी।

भ्रूण हत्या के चौंकाते आंकड़े

01
करोड़ के करीब कन्या भ्रूण हत्याएं हो चुकी हैं देश में 1990 से अब तक।

05
लाख औसतन प्रति वर्ष कन्या भ्रूण हत्या हो रही हैं देश में।

1971 में गर्भपात के संबंध में पहला कानून बना जिसमें बच्चे की मां को जान का खतरा होने या दुष्कर्म पर ही गर्भपात की अनुमति थी।

0-1 वर्ष तक के शिशुओं का लिंगानुपात

(100 लड़कियों पर लड़के , 2011 की जनगणना के अनुसार)

भारत 109

शीर्ष पांच राज्य
जम्मू-कश्मीर 128.4
हरियाणा 119.7
पंजाब 117.6
उत्तराखंड 114.2
दिल्ली 114.2

सबसे कम अनुपात
मिजोरम 101.1
पोडुचेरी 102.1
केरल 102.2
अंडमान निकोबार 102.9
अरुणाचल प्रदेश 103.2
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