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नाम की महिमा

Published: Sep 05, 2015 12:38:00 am

चाहे जो भी हो लेकिन हुजूर हम भी इस हक में नहीं कि दिल्ली
की एक पुरानी सड़क को मरहूम राष्ट्रपति

aurangzeb road

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चाहे जो भी हो लेकिन हुजूर हम भी इस हक में नहीं कि दिल्ली की एक पुरानी सड़क को मरहूम राष्ट्रपति डॉ. कलाम साहब के नाम पर जाना जाए। हम काहे को खामखां इतिहास के पीछे पड़े हैं? माना कि औरंगजेब कट्टर शासक था लेकिन उसने पूरे अड़तालीस बरस तक देश पर शासन किया था।


जो अपने आपको आलमगीर भी कहता था, वह जितना बेरहम था उतना ही गुणी भी था। माना कि उसने अपने भाइयों को मार कर और वालिद को बंदी बनाकर सत्ता हथियाई थी लेकिन साब एक नहीं पचासों ऎसे राजा-महाराजाओं के नाम गिनाए जा सकते हैं जिन्होंने सिंहासन के लिए अपने बाप, भाई, यहां तक कि पुत्रों तक को मरवा दिया था।


औरंगजेब ने पूर्वजों की तरह सरकारी खजाने को अपनी जागीर तो नहीं समझा। उसने अपनी जिन्दगी टोपियां सीकर और कुरान शरीफ की प्रतियां लिख-लिख कर जो रकम बनी, उससे ही बशर की। न उसने कभी दारू चखी और न दूसरा नशा किया। न ही वह अपने बाप की तरह एय्याश था। उसके जमाने में चीजें पड़दादा अकबर के जमाने से भी सस्ती थी। उसके राज में शराब बनाने पर पाबन्दी थी और चोरी छिपे बनाने या पीने वालों को कड़ा दण्ड दिया जाता था।

औरंगजेब ने तवायफों को भी शादी करके घर बसाने का हुक्म दिया। लीजिए साहब। आप तो हम पर गुस्सा हो रहे हैं। शायद ऎसा लग रहा है जैसे हम औरंगजेब के वकील हैं। इतिहास प्रेमी हैं बस । इतिहास बदलना आम इंसान के बस की नहीं है। वैसे भी ज्ञानी ध्यानी लोग कह गए हैं कि जो लोग अपने इतिहास को भूल जाते हैं वे उसे दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं। अपने जमाने में औरंगजेब ने कट्टरता दिखलाई और वह बदनाम बादशाह साबित हुआ।


इस कट्टरता का ही नतीजा था कि उसके बाद मुगलिया सल्तनत गेहूं में लगे घुन की तरह खोखली होती गई। क्या किसी को आलमगीर के बाद वाले बादशाहों के नाम मालूम हैं। ले देकर लोग बहादुरशाह जफर का नाम लेंगे। लेकिन जफर से पहले कई गुमनाम दिल्ली के बादशाह बने थे। अब एक सड़क का नाम औरंगजेब के नाम पर है तो क्या मुसीबत आ गई।

कल को तो आप कहेंगे कि रावण, कंस और दुर्योधन के नामों पर भी काली स्याही फेरो। दुष्ट का नाम याद रखना इसलिए भी जरूरी है ताकि इंसान दुष्टता से दूर रहे। मरते बखत औरंगजेब ने लिखा था- हमने जो भी दुख लोगों को दिए उनके पापों की गठरी हम साथ लिए जा रहे हैं। हमारे मरने के बाद खजाने में से जितना चाहो गरीबों को बांट देना। पर मेरी लाश पर मकबरा कभी न बनाना। उसके वालिद ने तो अपनी बेगम के लिए शाही खजाने से करोड़ों का लाजवाब ताजमहल बनवा दिया या था। – राही



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