नेवी के लिए बहुप्रतीक्षित पनडुब्बी ‘स्कॉर्पीनÓ की जानकारियां लीक हो जाना एक झटके की तरह है। चू्ंकि हमारी पनडुब्बियां पुरानी पड़ चुकी हैं और आधुनिक पनडुब्बियों की सख्त दरकार है। ऐसे में यह घटनाक्रम सामने आना नेवी के मनोबल पर चोट की तरह है। वैसे जब तक हमारी सेनाएं विदेशी हथियार-उपकरण विक्रेता कंपनियों से रक्षा खरीद करती रहेंगी तो स्कॉर्पीन जैसी लीक का खतरा हमेशा मंडरता रहा है और मंडराता रहेगा। जिस विदेशी कंपनी से हमारी सेनाएं डील फाइनल करती हैं और जो कंपनी इस डील में पिछड़ जाती है तो इन कंपनियों की आपसी स्पर्धा के कारण जानकारी बाहर आने की आशंका मंडराती रहती है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी स्थिति से बचने के लिए एक मजबूत निर्णय लेना होगा। जब तक हम स्वदेशी तकनीक विकसित किए बिना बाहर से हथियार-उपकरण खरीदते रहेंगे तो खामियाजा भुगतते रहेंगे।
स्कॉर्पीन की जानकारी लीक होना नि:संदेह हमारे लिए नुकसानदायक है। हालांकि हम कहते हैं कि हमारे डिजाइन पैरामीटर अलग हैं पर इस लीक के बाद पनडुब्बी की डिजाइन और तकनीक में परिवर्तन करने ही पड़ेंगे। ताकि भविष्य में नुकसान न उठाना पड़े। पनडुब्बी समुद्र में किसी भी देश के लिए बड़ा हथियार है।
ऐसे में जब तक कोई भी देश बाहरी डिजाइन पर निर्भर रहता है, जैसे हम स्कॉर्पीन के लिए फ्रेंच कंपनी पर निर्भर थे, तो ऐसे लीक से कैसे बचा जा सकता है? अभी चुनौती यह है कि जिस तरह की आधुनिक तकनीक हमें चाहिए वह पश्चिमी देशों के पास ही है। इसलिए डिजाइन और जानकारी लीक होने के बावजूद कोई रास्ता नहीं है। अभी तकनीकी समाधान ही है। स्कॉर्पीन की लीक हुई जानकारियों के विपरीत डिजाइन में तब्दीली की जाएगी। पर उतनी ही ज्यादा कीमत हमें चुकानी पड़ेगी। पहले से ही इस पनडुब्बी के वक्त पर तैनात न होने के कारण खर्चा बढ़ चुका है।
नुकसान तो देश का ही हुआ है। दरअसल, हमारे रक्षा उपकरण बहुत पुराने हो जाते हैं, हमें जो आधुनिकीकरण चाहिए वो हम वक्त पर नहीं करते हैं। पनडुब्बी नेवी का सबसे महत्वपूर्ण हथियार होता है। मौजूदा पनडुब्बियां पुरानी पड़ चुकी हैं। इसलिए जो आधुनिकीकरण अभी चल रहा है, उसकी गति तेज होनी चाहिए।
रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर कह रहे हैं कि जानकारी की हैकिंग हुई है। हालांकि वे पुख्ता तौर पर यह सुनिश्चित होना चाहते हैं कि क्या-क्या जानकारी बाहर आई है। इसलिए हमें अभी डिटेल्स का इंतजार करना चाहिए। जिस फ्रेंच कंपनी से हमने डील की, सिर्फ यही नहीं जितनी भी पश्चिम हथियार निर्माता कंपनियां हैं उन पर पूरा भरोसा कतई नहीं किया जा सकता है क्योंकि इनमें प्रतिस्पर्धा बहुत गहरी होती है। वे सौदेबाजी के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
इससे बचने के लिए एक इंटरनेशनल कंवेंशन होना चाहिए। पर चूंकि ये पश्चिमी देशों की कंपनियां हैं, वे बड़ी हथियार निर्माता हैं तो कोई उनके खिलाफ आवाज उठाता नहीं है। इसलिए मेरा जोर इसी बात पर है कि स्वदेशी निर्माण ही एकमात्र रास्ता है। इसके बिना हम पूरी तरह रक्षा उपकरणों के बारे में आश्वस्त नहीं हो सकते। अभी पनडुब्बियां हों या एयरक्राफ्ट हमें विदेश से ही खरीदने होते हैं।
एक तर्क दिया जाता है कि किसी भी कंपनी द्वारा डील को तोडऩे या जानकारी लीक हो जाने की स्थिति में कंपनी को ब्लैकलिस्ट कर देना चाहिए। या सौदा रद्द कर देना चाहिए जो कि अरसे से हम करते रहे हैं। पर इससे भी नुकसान हमारा ही हुआ है क्योंकि हमारा रक्षा आधुनिकीकरण पिछड़ गया। इसलिए कोई न कोई रास्ता तो अख्तियार करना ही पड़ेगा और मौजूदा समझौते के साथ रहना पड़ेगा।
इस तरह के समझौतों को इस स्थिति में, जब पनडुब्बी समुद्र में उतारी जानी थी, रद्द करना व्यावहारिक नहीं है। भले ही यह जानबूझकर अंजाम दिया गया घटनाक्रम लग रहा है। लेकिन अब डील रद्द करना कोई समाधान नहीं है। अभी हमें पनडुब्बी की सख्त जरूरत है और वे हासिल करनी ही होंगी। अभी रास्ता यही है कि हम डिजाइन और नए तकनीकी सुधार कराएं ताकि हम हमारी रक्षा सुनिश्चित कर सकें। अमरीका और इजरायल जैसे देशों ने बहुत पहले ही हथियार निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। वहां आज निजी कंपनियां काफी आधुनिक और दक्ष हथियार बना रही हैं, दुनिया उनसे खरीद रही है। ऐसा निर्माण कार्य हमें पहले शुरू कर देना चाहिए था।
नेवी एक ऐसी सेवा है, जहां तकनीकी पहलू बहुत ज्यादा होते हैं। आज समुद्र में काफी गहमागहमी है। हिंद महासागर को सुरक्षित रखने के लिए हमें एक विश्वासी, मजबूत नेवी चाहिए। क्योंकि पाकिस्तान और चीन की तरफ से बढ़ रही आक्रामकता के कारण हमें दक्ष और आधुनिकी हथियारों से सुसज्जित नेवी तैयार रखनी होगी। चीन हिंद महासागर में घुसने की फिराक में लगा हुआ है। इसलिए इस वक्त हमें पुख्ता तैयारी रखने की जरूरत है। मौजूदा स्थिति का सामना करने के लिए हमें नेवी को दक्ष बनाना जरूरी है।