सोने के दाम थम ही नहीं रहे। सोमवार को इसमें
पांच साल की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। सबसे अधिक खपत वाले वाले देश में भी इसकी
मांग कम हुई है। क्या इसके दाम में कमी का यही एकमात्र कारण है? या फिर चीन की एक
साथ पांच टन सोने की बिकवाली से सोने के दाम टूटे हैं? क्या चीन नकदी की कमी दूर
करने के लिए और सोना बेचेगा? क्या होगा सोने का भविष्य? पढिए ऎसे ही सवालों पर
जानकारों की राय आज के स्पॉटलाइट में…
दाम के और गोता लगाने के
आसार
अश्विनी महाजन अर्थशास्त्री
पिछले कुछ समय से सोने की कीमतों में
लगातार गिरावट देखी जा रही है। इसकी कीमत वर्ष 2011 में 1702 डॉलर प्रति औंस से
घटती हुई अब 1100 डॉलर प्रति औंस से भी नीचे पहुंच गई। सोने की कीमतों में गिरावट
की यह पहली घटना नहीं है लेकिन इतने लंबे कालखंड में सोने की कीमतों में दीर्घकालीन
गिरावट दिलचस्प कही जा सकती है। ऎसा इसलिए है कि क्योंकि सोने के भंडार बहुत कम
बढ़ते हैं लेकिन इसकी मांग लगातार बढ़ती रहती है इसलिए इतिहास में सोने की कीमतों
में बढ़ने की प्रवृत्ति रही है।
लुढकते सोने के दाम
सोने की पिछली बड़ी
गिरावट तब देखने को मिली थी, जब साइप्रस ने अपने आर्थिक संकटों के चलते सोने की
भारी बिकवाली की थी। उसके बाद करीब चार साल पहले सोना काफी हद तक 28 से 29 हजार
रूपए प्रति दस ग्राम तक आकर स्थिर सा हो गया था। लेकिन अब, सोने की कीमत पिछले पांच
साल के न्यूनतम स्तर पर आ गई है। सोने की इस गिरावट को चीन की सरकार द्वारा सोने की
भारी बिक्री के साथ जोड़कर देखा जा रहा है।
बाजार विश्लेषकों का अनुमान था कि चीनी
सरकार के पास 3000 टन सोने के भंडार है लेकिन इसी माह चीन ने यह घोषणा की है कि
उसके पास केवल 1658 टन ही सोने का भंडार है। हालांकि अजीब स्थिति यह है कि चीनी
सरकार की इस घोषणा का बाजार विश्लेषक विश्वास नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि चीन की
आदत बातो को छिपाने की रही है।
फिर भी बाजार विश्लेषक कह रहे हैं कि यदि चीन की बात
में सच्चाई है तो यह देश और अधिक सोना बेच सकता है। यहां यह बात ध्यान देने योग्य
है कि पिछले कुछ महीनों से चीन का शेयर बाजार लगातार गिरता जा रहा है। ऎसा अनुमान
है कि शेयर बाजार की स्थिति को थामने के लिए चीन की सरकार को तरलता की जरूरत होगी
और इसीलिए देश का सोना बेचकर यह तरलता हासिल की जा रही होगी?
भारत में सोने की
मांग
पूर्व में जब सोने के दाम बढ़ रहे थे तब उसके मुख्य कारणों में भारत में
सोने की मांग का लगातार बढ़ना एक प्रमुख कारण बताया जा रहा था। विश्लेषकों के
मुताबिक विश्व की कुल सोने की मांग का 25 से 30 प्रतिशत भारत में खपता है। आंकड़े
बताते हैं कि 2008-09 में भारत में सोने का आयात 20.7 अरब डॉलर था जो 2009-10 में
28.6 अरब डॉलर, 2010-11 40.5 अरब डॉलर और 2011-12 में 56.3 अरब डॉलर के स्तर पर
पहुंच गया।
वर्ष 2012-13 में यह आयात 53.8 अरब डॉलर के स्तर पर आ गया। सोने के इतने
अधिक आयात के कारण देश का भुगतान संतुलन गड़बड़ा रहा था और रूपए के मुकाबले डॉलर की
कीमत में भारी इजाफा हो रहा था। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के मुताबिक वर्ष 2009 में
भारत ने कुल 579 टन सोने के आयात में से 422 टन सोना गहनों के लिए आयात किया था।
वर्ष 2011 में कुल सोना आयात में से 368 टन और 2012 में मात्र 312 टन सोना गहनों के
लिए आयात किया गया। इसका अर्थ साफ था कि भारत में गहनों के अलावा सोना कालाधन
छिपाने के लिए भारी मात्रा में आयात किया जा रहा था। इसी के परिणामस्वरूप भुगतान
संतुलन बिगड़ रहा था। हालांकि सोने के आयात को नियंत्रित करने के लिए इस पर आयात
शुल्क लगाया गया और साथ में एनडीए सरकार ने स्वर्ण मौद्रीकरण योजना भी शुरू की
जिससे बाजार में सोने की स्थिति नियंत्रित हो सकी।
क्या होगा भविष्य
हालांकि
सोने के दामों का क्या भविष्य होगा इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता लेकिन
वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं को देखें तो इसका भविष्य उजला तो नहीं लगता। एक ओर यूरोपीय
देश आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं। चीन में भी मंदी का माहौल है और अमरीका भी आने
वाले समय में ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर सकता है। इसके अलावा भारत में भी सोने की
मांग घट रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की आपूर्ति मांग के मुकाबले काफी
अधिक है इसलिए फिलहाल सोने के दामों में और गिरावट देखने को मिल सकती
है।
चीन की बिक्री से गिरा सोना
मुकेश जैन कमोडिटी
ब्रोकर
सोने के भाव में जोरदार गिरावट ने सभी चौंकाया है। यह गिरावट नियमित
कारोबार का हिस्सा नहीं हैं। सोने का अंतरराष्ट्रीय भाव 1088 डॉलर प्रति औंस के
स्तर को छू गया था। इसके बाद हालांकि बाजार सुधरा जरूर लेकिन धारणा बहुत तेजी की
नहीं रही। इसका परिणाम यह रहा कि देश में सोना स्टैंडर्ड के दाम करीब 25 हजार रूपए
10 ग्राम के स्तर पर रहे।
घटता निवेश रूझान
चीन को सोने के साथ सभी धातुओं
की बड़ी खपत वाला देश माना जाता है लेकिन चीन ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब 5 टन
सोने की बिकवाली की। एक साथ इतनी बड़ी बिकवाली के कारण सोने के दाम में तीव्र
गिरावट आई। चीन की अर्थव्यवस्था को काफी मजबूत समझा जाता रहा है लेकिन सोने की
बिकवाली से यह समझ में आया कि चीन को जल्द ही नकद धन की आवश्यकता है। ऎसा इसलिए हुआ
क्योंकि चीन ने वायदा बाजार में नहीं डिलीवरी के सौदों में सोने को बेचा। इसका अर्थ
यही था कि वह जल्द से सोने के बदले में धन हासिल करना चाहता है।
एक समय था जबकि
सोने में निवेश को बहुत अच्छा समझा जाता था लेकिन पिछले कुछ वर्षो से सोने को लाभ
कमाने के लिहाज से बहुत अच्छा निवेश नहीं समझा जा रहा है। निवेशक अब सोने की बजाय
शेयर बाजार में निवेश करने लगे हैं। शेयर बाजार अपेक्षाकृत बेहतर लाभ के साधन के
तौर पर देखा जा रहा है। इसी तरह अमेरिका के फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दरों में
सुधार के संकेत मिल रहे हैं। यह भी एक बड़ी वजह है कि निवेशक सोने में निवेश किए धन
को निकालने लगे हैं। इन परिस्थतियों ने भी सोने की बिकवाली का दबाव बढ़ाया
है।
एक महत्वपूर्ण बात यह भी है पिछले दो वर्षो से कच्चे तेल के दामों में भारी
गिरावट देखने को मिल रही है। दो साल में इसके दास 120 डॉलर प्रति बैैरल से घटकर 56
डॉलर प्रति डॉलर के स्तर को छू चुके हैं। इन पस्थितियों के कारण अरब से देशों को
लाभ कम हो रहा है और वहां से सोने में होने वाले निवेश में भी कमी दर्ज की जा रही
है। फिलहाल कच्चे तेल के दाम दबे हुए रहने की आशंका है क्योंकि अब ईरान का कच्चा
तेल भी बाजार में उपलब्ध होगा। बाजार में कच्चे तेल की उपलब्धता अधिक होने से इसके
दाम में सुधार की गुंजाइश कम है।
भारत में बिकवाली
भारत में निवेशकों ने
गोल्ड ईटीएफ फंड में बड़ी मात्रा में निवेश कर रखा था। पिछले कुछ समय से निवेशकों
ने गोल्ड ईटीएफ को भौतिक रूप में परिवर्तित करवाकर बाजार में सोना बेचा। बाजार
विश्लेश्षकों के अनुमान के मुताबिक दो वर्षो के दौरान गोल्ड ईटीएफ के जरिए भौतिक
रूप से करीब 700 टन सोना परिवर्तित करवाकर बाजार में बेचा गया। इसका असर भी सोने की
मांग पर पड़ा।
एक अन्य कारण यह भी है कि पिछले कुछ दिनों से डॉलर के मुकाबले के
रूपया कमजोर होता जा रहा है। जो निवेशक हैजिंग किया करते थे उन्होंने डॉलर की
मजबूती के कारण इस हैजिंग में कमी कर दी है। इस बात को ऎसे समझा जा सकता है कि जब
निवेशकों को डॉलर के कम दाम मिलते हैं तो अपने धन को सुरक्षित करने के लिए सोने में
निवेश करके, हैजिंग किया करते थे लेकिन डॉलर के मजबूत होने के कारण सोने में हैजिंग
के लिए निवेश कम हो गया है। इसका असर बाजार पर साफ देखने को मिल रहा है। सोने के
दाम में जोरदार गिरावट आई है।
कच्चे तेल के दाम में गिरावट बड़ी
वजह
राजीव जैन पूर्व चेयरमैन, जेम्स एंड ज्वैलरी एक्सपोर्ट प्रमोशन
काउंसिल
सोने के भाव प्राय: अंतरराष्ट्रीय कारणों से ही गिरते-चढ़ते हैं।
इसमें दो कारकों की प्रमुख भूमिका होती है। डॉलर की तुलना में रूपये का भाव और
अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति। पर रूपये का भाव तो पिछले कुछ महीनों से अपेक्षाकृत
स्थिर ही बना हुआ है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में जो मंदी की स्थिति बनी हुई है
उसके कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने की मांग में कमी आई है। पिछले दिनों कच्चे
तेल का भाव भी गिरा है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार विशेषकर अरब देशों में सोने की
खरीद पर निवेश करने के लिए सरप्लस पैसा ही नहीं है। इसलिए सोने के दाम में
अंतरराष्ट्रीय बाजार में गिरावट आई है।
अगर कच्चे तेल के दाम बढ़ जाएं, तो
अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोने के दाम भी बढ़ जाएंगे और भारत भी उसके असर से अछूता
नहीं रहेगा। पर अगर डॉलर के मुकाबले रूपया गिर जाए तो सोने की मांग बढ़ेगी और सोना
चढ़ेगा। अमरीका के फेडरल रिजर्व बैंक के ब्याज संबंधी निर्णयों से अंतरराष्ट्रीय
बाजार की स्थिति कैसे प्रभावित होती है, इसी पर निर्भर करेगा कि इससे सोने के भाव
पर क्या असर पड़ेगा।
अगर ब्याज बढ़ने से डॉलर मजबूत होगा तो सोने के दाम भी
नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं। पर फिलहाल तो संभावना यही है कि आगे भी
सोना अपने वर्तमान भाव पर बना रहेगा। आगे अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऎसा और कोई बदलाव
फिलहाल तो नहीं होते दिखता जिससे ऎसा लगे कि सोने के दाम और भी कम हो सकते हैं।
सोने के दामों में वर्तमान गिरावट का असर घरेलू बाजार पर तो सकारत्मक ही होगा। सोने
के दाम घटने से उपभोक्ता को फायदा होगा और बाजार में मांग भी बढ़ेगी। फिलहाल तो
सोने के दाम डॉलर भाव में प्रति औंस 1100 के आसपास ही बने रहेंगे।
मांग में
कमी की आशंका से घबराहट
सुनील पचीसिया वाइस प्रेसीडेंट, प्रतिभूति
विनियोग लि., मुंबई
वर्ष 2009 के बाद चीन ने पहली बार अधिकारिक तौर पर यह
आंकड़ा जारी किया है कि इस बीच में उसने कितने सोना खरीदा है। उम्मीद की जा रही थी
चीन में सोना की खरीद 75 प्रतिशत की दर से भी अधिक हो रही है, जैसी कि 2003 से 2009
के बीच खरीद हुई थी। पर यह खरीद मात्र 57 प्रतिशत की दर से ही बढ़ी। 2009 में चीन
के पास 1054 टन सोना था जो कि रविवार को जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार 1658 टन हो
गया है।
यह खरीदी बाजार की उम्मीद से काफी कम लगभग 100 टन प्रतिवर्ष ही है। इसलिए
अब बाजार में इस बात को लेकर पैनिक हो गया है कि आखिर चीन अगर सोना नहीं खरीद रहा
है तो फिर भारत अकेला कितना सोना खरीदेगा? चीन और भारत दो बड़ी ऎसी अर्थव्यवस्थाएं
हैं जो तेजी से बढ़ रही हैं। चीन के आंकड़े बताते हैं कि उसने उतना सोना नहीं खरीदा
है जितना कि अपेक्षा थी। इसलिए अब सोने में निवेश के तौर पर पैसा लगाने वाले पीछे
हट गए हैं क्योंकि उन्हें लग रहा है कि आखिर अब सोने की खपत कहां होगी? इसलिए सोने
के दाम तेजी से गिरे हैं।
एक प्रकार से यह मांग कम और आपूर्ति ज्यादा की स्थिति
पैदा हो गई है। यद्यपि बाजार में इस बात को लेकर स्पैकुलेशन भी काफी ज्यादा है कि
चीन का यह यह सोना खरीदी का आंकड़ा सही भी है या नहीं। एक और कारक है। ग्रीस ने
सोमवार को ही यूरोपियन सेट्रल बैंक, आईएमएफ का ऋण चुकाने की प्रक्रिया शुरू की है।
इसके लिए ग्रीस अपने गोल्ड रिजर्व का इस्तेमाल करेगा। अगर ऎसा होता है तो सोने की
आपूर्ति और बढ़ जाएगी तथा उसके दाम आगे और भी गिरें तो कोई आश्चर्य नहीं। फिलहाल
कुछ दिनों तक इस अनिश्चितता के चलते बाजार में सोने के दाम गिरने की आशंका तो बनी
ही रहेगी।