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मेज के नोट

Published: Aug 27, 2015 05:52:00 am

भारत उर्फ मनोज कुमार की फिल्म “उपकार” में एक गाना था- मेरे
देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती… ।

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भारत उर्फ मनोज कुमार की फिल्म “उपकार” में एक गाना था- मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती… । यह गाना सुन कर दिल खुशियों से उमड़ने लगता लेकिन यह ख्यालों की बातें थीं। आजाद भारत में देश की धरती ने जो भी सोना उगला उसके मालिक नेता, अफसर और सरमाएदार बने।


हमारे सरीखे लोग तो भुक्खड़ के भुक्खड़ रहे। अलबत्ता व्यापमं की पुरानी टेबल लाखों रूपए उगल रही है। मध्य प्रदेश में सबसे तगड़े भर्ती घोटाले में इतनी रहस्यमय मौते हुई कि यमराज भी चक्कर में पड़ गए। लेकिन देश के शातिर इसको भी आसानी से हजम कर गए।


पहले तो सोचते थे कि नेताओं, मंत्रियों और अधिकारियों का पाचनतंत्र ही जबरदस्त है। वे आसानी से सीमेन्ट, खान, रूपए, पैसे, पुल, बांध, चारा आदि इस तरह से हजम करते हैं कि डकार तक नहीं मारते लेकिन अब लगता है कि जनता का हाजमा भी कम नहीं।


वह भी बड़े-बड़े घोटाले, जोरदार कांड और काले कारनामे हजम कर जाती है। हिचकी तक नहीं लेती। आजादी से पहले और कुछ साल बाद तक जनता की यह आदत तो थी कि वह रोती थी, कलपती थी, गुस्सा होती थी, रोष में नारे लगाती थी। अब तो वह सब बंद हो गया। हां धरने-प्रदर्शन तो आज भी होते हैं लेकिन सिर्फ अपनी तनखा या पेंशन बढ़ाने के लिए। जो आंदोलन कर रहे हैं उनसे पूछा जाए कि भाई आपकी पगार कितनी है तो कहेंगे यही कोई आध-पौन लाख, पेंशन भी हजारों में मिलती है पर पेट ही नहीं भरता।


उनकी नजर कभी देश के करोड़ों गरीबोंं पर पड़ती ही नहीं। दूसरी तरफ सरकारें हैं जो शेयर बाजार के ऊंचे-नीचे होने पर सिंहर जाती हैं जिनमें सिर्फ दो प्रतिशत लोग सक्रिय हैं जबकि प्याज और दालों के भावों पर कोई मुंह तक नहीं खोलता। अरे प्यारे देश वासियो।


जरा अपने से आगे भी देखना शुरू करो। घोटालेबाजों, भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कुछ तो बोलो। क्या सचमुच अपने स्वार्थ में इतने डूब चुके हो कि कुछ भी हो जाए हम तो मौन नहीं तोड़ेंगे। देश के होनहारों का हाल तो कुछ यूं हो चला है- इस शहर में चाहे अब बारात हो या वारदात अब किसी भी बात पर खुलती नहीं हंै खिड़कियां।


व्यापमं की मेज से दस लाख रूपए निकले पर कहीं कोई हलचल नहीं। अरबों के घोटाले हुए पर कोई शिकन नहीं। कसम से ऎसी “वीतरागी” जनता का तो भगवान भी मालिक नहीं। सब भगवान भरोसे बैठे हैं लेकिन माउन्टेनमैन दशरथ मांझी ने सही कहा था कि हम भगवान भरोसे बैठे हैं। कहीं ऎसा तो नहीं कि भगवान भी आदमी के भरोसे बैठा हो।


अजी सरकार कुछ तो हूं हां करो। कुछ तो प्रतिक्रिया दो अपनी। तटस्थ रहना बहुत खतरनाक है। किसी ्रकवि ने कहा था-जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध। तटस्थ रहना कायरता की निशानी भी है। – राही

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