फिर न बिगडे फिजा
Published: Oct 08, 2015 11:12:00 pm
आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिसाहड़ा (दादरी)
काण्ड पर अपनी चुप्पी तोड़ ही दी।
आखिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिसाहड़ा (दादरी) काण्ड पर अपनी चुप्पी तोड़ ही दी। हालांकि घटना के नौ दिन बाद यह चुप्पी भी सीधे नहीं तोड़ी है। उसमें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की आड़ है। फिर भी यह कहना स्वागत योग्य है कि देश को मिल-जुलकर रहने की अपनी गौरवशाली परम्परा का निर्वहन करना चाहिए।
मोदी ने गैर जरूरी बयानबाजी के लिए राजनेताओं को लताड़ा भी है और जनता को सलाह दी है कि वह ऎसे बयानों पर ध्यान नहीं दे। बिसाहड़ा में जो हुआ, वह देश ही नहीं मानवता पर कलंक है। जब तक सूरज चांद रहेगा… की तर्ज पर जब तक देश और इतिहास रहेगा, यह भी दर्ज रहेगा कि बिसाहड़ा में एक व्यक्ति को जिन्दा जला दिया गया था। भूल जाइए कि वह किस जाति और धर्म का था।
भूल जाइए कि उसका किसी से झगड़ा था या सबसे प्रेम था। याद हमेशा वह हादसा रहेगा। याद यह भी रहेगा कि हमारे राजनेताओं ने इस रौंगटे खड़े कर देने वाली घटना पर भी राजनीति की। वैसी ही राजनीति जो वे बलात्कार और हत्या जैसी घृणित घटनाओं पर करते हैं।
प्रधानमंत्री तकनीक प्रेमी हैं। जैसा उनका पुराना व्यवहार रहा है लोग उनसे किसी भी घटना पर घंटे नहीं सैकिण्डों में प्रतिक्रिया की उम्मीद करते हैं। ऎसे में जब वे “बिसाहड़ा” पर नौ दिन तक कुछ नहीं बोले और एक सांसद की बीमारी पर तुरंत स्वास्थ्य लाभ की कामना करने लगे तो तीखी प्रतिक्रिया आना स्वाभाविक था। परिवहन मंत्री नीतिन गडकरी ने क्या सोचकर टिप्पणी की यह तो वही जाने लेकिन “प्रधानमंत्री का हर विष्ाय पर बोलना जरूरी नहीं, मनमोहन सिंह भी कहां बोलते थे” ने स्थिति को और अटपटा बनाया।
मनमोहन सिंह कुछ नहीं बोलते थे, तभी तो जनता ने उनके प्रधानमंत्रित्व काल में जो कुछ भी हुआ, उसके लिए उन्हें जिम्मेदार माना। परिणाम देश के सामने हैं। अब प्रधानमंत्री बोले हैं और गैर जरूरी बयानों के लिए नेताओं को लताड़ रहे हैं तब जरूरत इस बात की है कि वे अपनी ख्याति के अनुरूप लौहपुरूष्ा बनें।
केवल कह कर नहीं उन्हें कुछ करके दिखाना होगा अन्यथा यह चेतावनी और लताड़ भी पहले आए बयानों की तरह मीडिया की सुर्खी बनकर रह जाएगी। लोग तो यह कहने से भी नहीं चूकेंगे कि बिसाहड़ा पर बयान कहीं बिहार चुनावों के मद्देनजर तो नहीं है। यदि सरकार वाकई चाहती है कि हिन्दू हो या मुसलमान, सिख हो या ईसाई किसी भी इंसान के साथ फिर कोई ऎसी घटना न हो तो उसे दोçष्ायों को जल्द से जल्द और सख्त से सख्त सजा दिलाने के साथ इस बात के भी पुख्ता प्रबंध करने चाहिए कि भावनाओं को भड़काने वाले राजनेताओं को भी सख्त सजा मिले।
चाहे उन्हें पार्टी से निकाला जाए या फिर सलाखों के पीछे किया जाए। इन्हें रोकने का कोई कानून बने तो फिर पक्षपात की बात भी नहीं आएगी। जब तक ऎसा नहीं होगा, हादसे होते रहेंगे और नेता कभी नहीं सुधरेंगे।