पूरी दुनिया में सुनहरी-काली धारियों वाले बाघ की संख्या 2010 में 3200 थी जो कि 2015 में बढ़कर 3890 हो गई
– राजीव तिवाड़ी
देश के जंगलों में फिर मरघटी खामोशी है। जंगली जानवर भयभीत और सरकारी तंत्र से बेखौफ शिकारी मालामाल हो रहे हैं। पिछले साल विश्व को जो खुशखबरी मिली थी वह ज्यादा दिन तक रहने वाली नहीं लगती। विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गए जंगल के राजा (बाघ) की जनसंख्या में लगातार बढ़ोतरी ने ना सिर्फ वन्यजीव प्रेमियों को खुश किया था, बल्कि भारत में स्थित 48 टाइगर प्रोजेक्ट (रिजर्व) में पर्यटन की अपार संभावनाएं दिखने लगी थीं।
पूरी दुनिया में सुनहरी-काली धारियों वाले बाघ की संख्या 2010 में 3200 थी जो कि 2015 में बढ़कर 3890 हो गई। 1973 के बाद यह पहला मौका था जबकि बाघों की संख्या में बढ़ोतरी हुई। भारत में भी इस दौरान इनकी संख्या में 520 की वृद्धि हुई। विश्व में कुल बाघों की 70 फीसदी आबादी भारत में है। इसे राष्ट्रीय पशु का दर्जा भी प्राप्त है। लेकिन कहते हैं कि ‘बस्ती बढ़ती है तो लुटेरे पहले आ जाते हैं। यही हाल टाइगर रिजर्व का हुआ। 2016 के पहले चार महीनों में ही शिकारियों ने इतने बाघ (25) मार दिए जितने कि पूरे 2015 में (21) नहीं मारे गए थे।
सवाल यह उठता है कि जब देश के टाइगर रिजर्व में हर साल अरबों रुपए सुरक्षा, कर्मचारियों, वाटर बॉडीज और वनों के रखरखाव पर खर्च होते है। फिर बाघ शिकारियों के शिकंजे में कैसे आ जाते हैं। स्पष्ट है। भ्रष्टाचार और मिलीभगत हमारे तंत्र में इस कदर घुलमिल गया है कि चाहे वह राष्ट्रीय विरासत हो या राष्ट्रीय पशु उसकी कीमत सिर्फ नोटों के कुछ बंडलों तक सीमित रह जाती है।
बाघों के लिए सबसे अहम पांच खतरे हैं। पहला- बाघ परियोजना के नजदीक औद्योगिकरण, दूसरा- सड़क परियोजनाएं, तीसरा- नदी सम्पर्क, चौथा- बांधों का निर्माण और पांचवा और सबसे अहम पर्यटन के नाम पर बाघों के विचरण क्षेत्र (टेरेटरी) में अतिक्रमण, वनों का घटना और होटलों का अंधाधुंध निर्माण। देश के सबसे बड़े टाइगर रिजर्व जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में पहले सिर्फ रामपुर से ही प्रवेश था। पार्क में प्रवेश के लिए 15 दरवाजे (रूट) थे। लेकिन होटल लॉबी के दबाव में पिछले साल कोर एरिया में सोलहवां दरवाजा (नैनी डांडा) खोल दिया गया। यहां फैंसिंग के अभाव और निर्जन क्षेत्र के कारण अवैध रूप से प्रवेश और बाघ का शिकार आसान हो गया। यही वजह है कि 2015 में यहां 3 बाघों का शिकार हुआ था जबकि इस वर्ष चार माह में ही पांच टाइगर मार दिए गए।
मध्य प्रदेश के टाइगर रिजर्व में हाल ही जहर के असर से तीन बाघ मारे गए। राजस्थान की खुशकिस्मती है कि पिछले दो सालों में यहां बाघ शिकारियों से बचे हुए हैं। सरिस्का में फिलहाल 13 और रणथम्भौर (सवाईमाधोपुर) में 40 से ज्यादा बाघ हैं। लेकिन जिस तरह से यहां सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद अतिक्रमण और होटल/रिसॉर्ट की बाढ़ आ रही है, उससे बाघों के लिए अपना ही घर (वन) छोटा पड़ने लगा है। आबादी क्षेत्र में उनकी आवाजाही बढ़ गई है। खमियाजा भी इन्हीं को उठाना पड़ रहा है।
रणथम्भौर का सबसे जवान और सुन्दर टी-24 बाघ आज उदयपुर में छोटे से एन्क्लोजर (पिंजरे) में कैद है। वजह! उसका अपने घर में घुसपैठ करने वाले मानवों पर हमला कर बैठना। सरकार और वन विभाग कब सबक लेंगे? कोर्ट के आदेशों की सख्त पालना कब होगी? मानव के वनों पर अतिक्रमण कब रुकेंगे? इस पर गंभीर निर्णय जरूरी है। आखिर बाघ की अम्मा कब तक खैर मनाएगी!