पता है आजकल भाजपा
और कांग्रेस की हालत कैसी हो गई है? सूत न कपास, जुलाहों में लटमलट। एक कुर्सी पर
है और दूसरी नीचे लेकिन दोनों की सोच एकदम उल्टी है। कांग्रेस अभी तक यह नहीं मान
पाई है कि अब सत्ता उसके पंजे में नहीं है और भाजपा सत्ताधारियों जैसा बड़प्पन नहीं
दिखा पा रही है। उसे लगता है कि सरकार चलाने के लिए हमेशा आक्रामक रहो।
इस वक्त देश
में दो बांके हैं- भाजपा के मोदी तो कांग्रेस के राहुल। राहुल का एक सूत्री
कार्यक्रम प्रतिदिन मोदी पर व्यंग्य बाण छोड़ना है। उधर मोदी अपनी आदत से बजबूर
हैं। जब देखो तब कटाक्ष मारने में जुटे रहते हैं। बगैर तीखा बोले रोटी हजम नहीं
होती। आजकल वे अमरीका में हैं और उनके सिपहसालार एक दूजे पर बोली की गोली दागने में
व्यस्त हैं। कांग्रेस पूछ रही हैे कि प्रधानमंत्री विदेश यात्राओं पर दो सौ करोड़
रूपया फूक चुके पर देश को क्या मिला? भाजपा ई पूछ रहे हैं कि राहुल अचानक कहां गए
और क्यों गए? दोनों पक्ष बेबात की बात बनाने में जुटे हैं। अब आम आदमी से पूछो तो
वह यही कहेगा कि विदेश यात्रा पर जाना प्रधानमंत्री का काम है और राहुल गांधी विदेश
चले गए तो भाजपा के पेट में दर्द क्यों हो रहा है। अगर राहुल बिहार में प्रचार नहीं
कर पाएंगे तो इससे कांग्रेस को ही हानि होगी, भाजपा क्यों दुबली हुई जा रही है।
पता नहीं क्यों भाजपा के मन में एक अदृश्य डर समाया हुआ है तभी वह राहुल गांधी
पर लगातार बोलती रहती हैं। अब इन समझदारों को कौन समझाए पर हमारी तो यही सलाह है कि
भाई साहबो जब आप राहुल को राजनीति का पप्पू मानते हैं तो फिर उसे लेकर काहे को
मगजमारी करते रहते हो। चाहे आप किसी मनोवैज्ञानिक से पूछ लीजिए इस दशा में तो वह
यही कहेगा कि भाजपा चाहे अभी सिंहासन पर है उसके मन में राहुल फोबिया हावी है, तभी
वह इतनी बातें बना रही है।
रही बात कांग्रेस की तो भैया वे भी अभी तक हकीकत से
आंखें चार नहीं कर पा रहे हैं। संसद को ठप करा देने और भूमि अधिग्रहण बिल वापस
कराने का श्रेय लेकर वे सोच रहे हैं कि राजनीति के असली सारथी अब भी वही हैं चाहे
सदन में उनकी संख्या चव्वालीस ही क्यों न हो। हम तो दोनों बयानवीरों से यही कहना
चाहते हैं- हे राजनीति के धुरंधरो एक दूजे को अपने हाल पर छोड़ो और जरा सकारात्मक
राजनीति भी करके दिखाओ।
मोदी को विदेश जाकर हंसी ठटा करने में आनंद आता है तो राहुल
को जब-तब मोदी पर व्यंग्य कसने में। पता नहीं ये दोनों फेंकू और पप्पू की मानसिकता
से आखिर कब उबरेंगे? हे भाइयो! अब तो कम से कम बड़प्पन दिखाओ।
राही