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विद्युत तंत्र बेलगाम

बिजली कम्पनियों का हाल-बेहाल है। अकेले राजस्थान
ही नहीं देश भर की हालत खराब है।

Aug 27, 2015 / 05:49 am

मुकेश शर्मा

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बिजली कम्पनियों का हाल-बेहाल है। अकेले राजस्थान ही नहीं देश भर की हालत खराब है। किसी राज्य में बिजली नहीं है तो किसी राज्य में बिजली खूब है लेकिन उसके खरीददार नहीं हैं।


बिजली महंगी दिन-ब-दिन इतनी होती जा रही है कि वह दिन दूर नहीं लगता जब गरीब तो गरीब मध्यम वर्ग भी घर में रोशनी शायद ही कर पाएगा। जब-जब बिजली की बात आती है, सरकारें आंकड़े दे-देकर खूब उपलब्घि का दावा करती हैं। कोई रिकार्ड बिजली सप्लाई का दावा करती है तो कोई रिकार्ड उत्पादन का। “देश में सबसे ज्यादा” या राज्य के इतिहास में अब तक के सबसे ज्यादा कृçष्ा या घरेलू कनेक्शन देने का दावा तो हर राज्य सरकार करती ही है।


फिर चाहे वह राजस्थान हो या मध्य प्रदेश, दिल्ली हो या कर्नाटक। इन तमाम तरह के दावों के बीच एक संकट जिसकी ये सारी सरकारें बातें तो खूब करती हैं लेकिन गंभीरता से उसे दूर करने का उपाय एक भी सरकार करती नहीं दिखती वह है इन बिजली कम्पनियों का सुरसा के मुंह की तरह लगातार बढ़ता जा रहा घाटा।


ताजा जिक्र राजस्थान का है। यहां पांच बिजली कम्पनियां हैं और उनका कुल घाटा करीब 90 हजार करोड़ का है। उन पर 80 हजार करोड़ का कर्ज है। आज से पन्द्रह साल पहले राजस्थान में एक बिजली बोर्ड था और उसका घाटा महज कोई 2300 करोड़ रूपए था।


यहां यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि हमने एक की पांच बिजली कम्पनियां क्यों बनाई और यह घाटा इतना क्यों पहुंच गया? क्या सरकार की ओर से किसानों सहित विभिन्न क्षेत्रों को दी जाने वाली अनुदानित बिजली के अन्तर राशि इन कम्पनियों को दी जा रही है? क्या सरकार दावा कर सकती है कि उसके अफसर महंगी बिजली खरीद के सौदे नहीं कर रहे? क्या वह दावा कर सकती है कि उनमें कहीं कोई भ्रष्टाचार अथवा गबन-घोटाले नहीं हैं।


और इन सबसे बड़ा सवाल है बिजली की चोरी का, जिसे ये कम्पनियां “छीजत” के नाम पर ढकने का प्रयास करती हैं। इन सारी कमियों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है।


पांच कम्पनियां बनाकर भी यदि राज्य की 25 प्रतिशत बिजली चोरी में चली जाए तो फिर उन कम्पनियों और उनके कर्ता-धर्ताओं को अपने-अपने पदों पर रहने का क्या हक है?

राजस्थान सरकार और अन्य सभी राज्य सरकारों को अपने साधारण उपभोक्ताओं पर कीमत वृद्धि का भार डालने के पहले इस चोरी को रोकना चाहिए। अन्यथा मौका आने पर जनता वोटों की जो चोरी करेगी तो कोई भी सरकार उसे सहन नहीं कर पाएगी। धड़ाम हो जाएगी।

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