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बेकाबू नेता, मौन नेतृत्व

Published: Oct 06, 2015 11:08:00 pm

कितने शर्म की बात है कि आजादी
के 68 साल बाद भी हम भारतीय नहीं बन पाए? आज भी हम हिन्दू-मुस्लिम और सिख-इसाई के
दायरे में बंधे हुए हैं

Opinion news

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कितने शर्म की बात है कि आजादी के 68 साल बाद भी हम भारतीय नहीं बन पाए? आज भी हम हिन्दू-मुस्लिम और सिख-इसाई के दायरे में बंधे हुए हैं। जब दादरी जैसे वीभत्स कांड होते हैं तब भी हमें अपमान महसूस नहीं होता। और हमारे राजनेता। उन्हें तो जैसे लगता है कि, ये ही स्वर्ण अवसर है। वे सांप्रदायिकता की आग को भड़काते हैं और उसी में अपनी वोटों की फसल को पकाने में लग जाते हैं।

कांग्रेस हो या भाजपा, सपा हो या बसपा या फिर जद(यू) अथवा राजद जैसे कोई पीछे नहीं रहना चाहता। सब ऎसी बयानबाजी करते हैं जिससे आग ठंडी पड़ने के बजाय और भड़कती है। इस सारे खेल में सबसे ज्यादा गैर जिम्मेदाराना व्यवहार राजनीतिक दलों के नेतृत्व का नजर आता है, जो खुद तो बातें साधु-संतों जैसी करते हैं लेकिन जब उनके ही दलों के नेता राक्षसों जैसा व्यवहार करते हैं तब वे कार्रवाई करना तो दूर उन्हें रोकने के लिए भी आगे नहीं आते। क्या है इसकी वजह, क्यों मौन हो जाते हैं बड़े-बड़े नेता ऎसे माहौल में, पढिए आज के स्पॉटलाइट में …

मौतों की आंच से हाथ तापते हमारे राजनेता
प्रो. पुष्पेश पंत प्रख्यात लेखक
दादरी में अखलाक की निर्मम हत्या की घटना से यह सवाल नहीं उठता कि गोहत्या या गोमांस भक्षण की अफवाह भर से उत्तेजित भीड़ ने कानून अपने हाथ में ले इस वहशियाना हरकत को अंजाम दिया। इससे बड़ी चिंताजनक बात यह है कि लगभग सभी बड़ी राजनैतिक पार्टियों ने इस हादसे को अपने पक्ष में भुनाने का बेहद दुर्भाग्यपूर्ण प्रयास किया है। सच है कि बिहार में चुनाव आसन्न हैं पर इसका यह अर्थ नहीं कि खुद को धर्मनिरपेक्ष और जनतांत्रिक कहने वाले देश के ये नागरिक आपा खो बैठें और कानून की धज्जियां उड़ा दें।

आजम का विचित्र आचरण
सबसे विचित्र आचरण तो आजम खान का है जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र में गुहार लगाई है कि यह घटना भारत में अल्पसंख्यक मुसलमानों पर कहर ढाने की एक और वारदात है। वे यह भूल गए कि जिस सरकार का शासन इस बदकिस्मत सूबे पर चल रहा है वह उन्हीं की पार्टी का है और वह खुद उसमें ताकतवर मंत्री हैं। पूर्व में भी वे ऎसा करते रहे हैं लेकिन इस बार तो हदें पार ही कर दी है। दलगत पक्षधरता की वेदी पर वे देश की छवि की बलि देने को आतुर लगते हैं। संयुक्त राष्ट्र में उनकी अर्जी का जो हश्र होगा सो होगा पर लगता है कि इस घड़ी माहौल बिगाड़ने व सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने में वे निpय ही कामयाब हो गए। बरसों से हाशिये पर पहुंचे लालू भी एकाएक मुखर हो रहे हैं। दादरी विषयक उनके वक्तव्य खम ठोंक कर हिन्दुत्ववादी विपक्षियों को ललकारने वाले नजर आ रहे हैं। गो वध निषेध या गोमांस पर प्रतिबंध लगाने वाली मोदी सरकार नहीं।

आजम खां का मुकाबला करने में केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा पीछे नहीं रहे। उन्हें यह हादसा केवल एक दुर्घटना लगता है जिस पर किसी का वश नहीं हो सकता था। उन्होंने तो यहां तक कह डाला कि यह किसी पूर्वनियोजित साजिश का रक्त रंजित परिणाम नहीं। जब तक पुलिस की जांच पूरी नहीं हो जाती तब तक इस तरह का मत प्रकट करना जांच को नाजायज रूप से प्रभावित करने का प्रयास ही समझा जाएगा।

शीर्ष नेताओं की चुप्पी
जिस बात ने हमें सबसे अधिक खिन्न किया है, वह इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की चुप्पी है। आहत शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना प्रकट करना काफी नहीं। हत्यारों को शीघ्रातिशीघ्र हिरासत में ले दंडित कराने को सुनिश्चित किया जाना जरूरी है। इसके अलावा इससे भी बड़ी प्राथमिकता अपनी पार्टी या कट्टरपंथी सहयात्री संस्थाओं के सदस्यों के भड़काऊ बयानों पर लगाम लगाने की है।

महंत हो या साधु-संत, स्वयंभू साध्वी हों या भगवा चोला पहने मौकापरस्त अपराधी, असामाजिक तत्वों व सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने वाले सभी दलों के नेताओं पर सख्त कानूनी कार्यवाही की दरकार है। कानून का डंडा सिर्फ एक पक्ष पर नहीं बरस सकता। ऎसे मामलों में आजम खां हो या ओवैसी या फिर अवैद्यनाथ हो और तोगडिया, किसी को भी बख्शा नहीं जाना चाहिए।

यह बेहद चिंताजनक है कि जब कभी चुनाव निकट होते हैं इस तरह की घटनाओं का विस्फोट होता है। राहुल-सोनिया की हास्यास्पद मुद्रा “सूतल निंदिया जगाया हो रामा!”वाली होती है और अंग्रेजी मीडिया को नेहरू की गंगा-जमनी तहजीब की विरासत की चिंता सताने लगती है। पारंपरिक रूप से ऎसे शोक संताप के अवसर पर मौन रहने की सलाह दी जाती रही है। पर जब संवैधानिक व्यवस्था मे सेंध लगा मानवाधिकारों का जघन्य उल्लंघन हो रहा है, मौन कैसे रह सकता है आम नागरिक?

बांटो और राज करो हो गया है सत्ता का मंत्र
भारतीय राजनीति के चेहरे को सांप्रदायिकता को पूरी तरह से ढंक लिया है। राजनीतिक दलों की विचारधाराएं पूरी तरह से सांप्रदायिकता के ही इर्द-गिर्द घूम रही हैं। कोई भी पार्टी हो वह वोटों के लिए सांप्रदायिकता को ही हथियार बनाती है। हिन्दू-मुस्लिम को बांट कर पार्टियां अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकती हैं। हाल में उत्तरप्रदेश सरकार ने दादरी प्रकरण की रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी है। इसमें भी अहम बिंदुओं को शामिल ही नहीं किया गया है। ये स्पष्ट इशारा है कि उत्तरप्रदेश सरकार इस प्रकरण में अपने को पाक-साफ दिखाने की कोशिश में है।

सांप्रदायिकता को बढ़ाना देने से वोटों का ध्रुवीकरण पार्टियों के लिए मुफीद होता है। इससे वे अपने को किसी भी समुदाय विशेष का पक्षधर बता कर वोट बटोरने की कोशिश करती हैं।


सांप्रदायिकता के बारे में हाल की भारतीय राजनीति की प्रवृत्तियों पर हम यदि नजर डालें तो इसकी शुरूआत 80 के दशक से हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बाबरी मस्जिद और शाहबानो मामले में तुष्टिकरण की नीति को बढ़ावा दिया। इन दोनों मामलों ने बाद में भारतीय राजनीति की धारा को ही बदलकर रख दिया है। राजनीतिक पार्टियों में सांप्रदायिकता की होड़ सी मच गई। इसके बाद रामजन्मभूमि आंदोलन ने जोर पकड़ा और उसके बाद की घटनाएं हम सभी के सामने हैं। स्थिति ये हो गई है कि धर्मनिरपेक्षता का अवमूल्यन हो गया है। इस शब्द के मायने ही बदल गए हैं।

संचित दुष्परिणाम हैं
हाल ही घटनाओं को यदि हम समग्र रूप से देखें तो पाएंगे कि ये पिछले दशकों के दौरान सांप्रदायिकता के बीज जो राजनीतिक पार्टियों ने फैलाएं हैं वो सामने आ रहे हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो ये संचित दुष्परिणाम हैं। जो कभी मुजफ्फरनगर तो कभी दादरी के रूप में हमारे सामने आते हैं। भाजपा के केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद निश्चित रूप से सांप्रदायिक घटनाएं बढ़ी हैं। ये तथ्य किसी से छिपा हुआ नहीं है। अन्य पार्टियां भी दूसरे समुदाय को तुष्ट करने के लिए सांप्रदायिकता का ही सहारा लेती हैं। और ये सिलसिला जारी रहता है। धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत की तो हमारे नेताओं ने अपने ही तरीके से व्याख्या करनी शुरू कर दी है।

उबलती रहेगी कढ़ाई
वर्तमान हालात को देखकर लगता है कि सांप्रदायिकता की कढ़ाई अभी उबलती ही रहेगी। वैसे मैं दादरी प्रकरण के पीछे की साजिश को बिहार चुनाव में वोटों के ध्रुवीकरण से जोड़कर नहीं देखता हूं। लेकिन ये तय है कि केंद्र में वर्तमान भाजपा सरकार को अगले दो वर्ष में यदि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कामयाबी नहीं मिली तो सांप्रदायिकता की सियासत बढेगी। ये लो इंटेंसिटी की हो सकती है। यानी मुद्दा गर्म ही रहेगा। आने वाले समय में वोटों को बटोरने के लिए इसे गरमाए रखना राजनीतिक दलों के लिए उनके हित में होगा। हमें ये भी देखना होगा कि समाज में असहिष्णुता के रक्तबीज क्यों पनप रहे हैं।

महज दुर्घटना है यह
महज दुर्घटना पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। यह नियोजित साजिश का परिणाम नहीं है। मृतक के शरीर के घाव यह नहीं दर्शाते कि उत्तेजित भीड़ ने बलवे जैसे हालात में अखलाक को मारा। डॉ. महेश शर्मा, केंद्रीय पर्यटन मंत्री

यह मजहब पर हमला
इस तरह के वाकये होते हैं तो सिर्फ बातें नहीं होनी चाहिए। यह हादसा नहीं सुनियोजित हत्या है। यह मांस पर नहीं मजहब के नाम पर हमला है। असदुद्दीन ओवैसी, आईआईएमआईएम प्रमुख

ओवैसी को तो नहीं रोका
केन्द्रीय मंत्री महेश शर्मा और असदुद्दीन ओवैसी को तो नहीं रोका गया जबकि मैं शुचिता की राजनीति का पक्षधर हूं। हां मैं राजनीति कर रहा हूं लेकिन एकता और प्यार की।अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री दिल्ली

देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश
अगर भक्तों में दम हैं तो बाबरी की तरह पांच सितारा होटलों को गिरा कर देखें जहां गोमांस परोसा जाता है। देश को हिन्दू राष्ट्र बनाया जा रहा है , हम संयुक्त राष्ट्र जाएंगे।आजम खान, सपा नेता

गाय माता का अपमान सहन नहीं
गाय हमारी माता है। हम मां का अपमान सहन नहीं करेंगे। यदि अपमान हुआ तो मार देंगे या मर जाएंगे। हां, राज्य में बहुत से ऎसे लोग हैं जो हिंसा से प्रभावित हुए हैं लेकिन उनको मुआवजा नहीं मिला। साक्षी महाराज, सांसद , भाजपा

गोमांस हिंदू भी खाते हैं
सभ्य लोग गोमांस नहीं खाते और मैं तो कहता हूं कि किसी को भी मांस नहीं खाना चाहिए। मांस खाने वाला गाय और बकरी में भेद नहीं करता है। वैसे, गोमांस तो हिन्दू भी खाते हंै। लालू यादव, राजद प्रमुख

बौरा गए हैं लालू
लालू यादव बौरा गए हैं। हिंदू लोग कभी गाय नहीं खाते। लालू यादव अपने शब्द वापस लें वरना आंदोलन शुरू करूंगा। गोमांस खाने वालों को देश में कभी बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। गिरिराज सिंह, केन्द्रीय मंत्री

लालू ने किया है अपमान
लालू प्रसाद यादव ऎसे नेता हैं जो कि वोट के लिए गोमांस भी खा सकते हैं। लालू यादव ने गोमांस पर बयान देकर करोड़ों लोगों का अपमान किया है।सुशील मोदी, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री, भाजपा नेता

दादरी की घटना आजम ने कराई
अखलाक की हत्या हिंदू ने नहीं कराई। मुसलमान हिंदुओं के घरों से गाय चुराकर उसे काटते हैं। उ.प्र. में जहां कहीं भी दंगा हुआ, उसे आजम खां ने कराया। दादरी की घटना भी आजम खां ने कराई। साध्वी प्राची, भाजपा नेता

गोहत्या के आरोपियों मिल रही शरण
अखिलेश सरकार गोहत्या करने वालों को शरण दे रही है। मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपियों की तरह गोवध वालों को भी विमान से ले गए हैं। कानून को काम करने दें वरना हम जवाब देने में सक्षम हैं संगीत सोम, भाजपा नेता

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