सांसद भगवंत मान ने संसद की सुरक्षा से खिलवाड़ कर जो अक्षम्य अपराध किया है उसे क्या माना जाए? नादानी में उठाया कदम अथवा खबरों में बने रहने की चाहत? या मान के पास कोई और कारण था संसद परिसर की वीडियोग्राफी करके उसे सार्वजनिक करने का। ये महज राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मामला नहीं है।
एक गंभीर मामला है जिस पर बहस भी होनी चाहिए और मान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी। लोकसभाध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने 3 अगस्त तक मान के लोकसभा प्रवेश पर पाबंदी लगाने के साथ जांच समिति गठित करके अच्छा कदम उठाया है। मान के खिलाफ कार्रवाई की बात जांच समिति की रिपोर्ट के बाद ही तय होगी।
जांच समिति समूचे प्रकरण की जांच करके रिपोर्ट देगी। लेकिन मुख्य सवाल ये कि क्या मान सरीखे लोग सांसद बनने के काबिल माने जाएं? बीते कुछ सालों में संसद में ऐसे प्रसंग देखने में आए हैं जिसने लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार किया है। संसद परिसर में सांसदों के शराब पीकर आने से लेकर रिवाल्वर लाने तक की खबरें सुर्खियां बन चुकी हैं।
पंद्रह साल पहले खूनी हमले से लहूलुहान हो चुकी भारतीय संसद देश के लोकतंत्र का पवित्र मंदिर है। ऐसा मंदिर जो देश को लोकतंत्र के पथ पर आगे ले जाता है। तमाम आक्षेपों के बावजूद भारतीय लोकतंत्र कई मायनों में अब भी दुनिया में सर्वोपरि माना जाता है। लाखों मतदाताओं के मतों से चुनकर जाने वाले सांसदों पर लोकतंत्र के साथ-साथ देश को मजबूत बनाने की भी जिम्मेदारी होती है।
नादानी या फिर जान-बूझकर की गई ऐसी हरकतों से संसद की सुरक्षा से खिलवाड़ तो होता ही है, करोड़ों भारतीयों की आस्था पर भी कुठाराघात होता है। मान ने जो किया उसकी सजा तो उन्हें मिलेगी ही लेकिन बेहतर होता कि आम आदमी की बात करने वाली आम आदमी पार्टी आगे बढ़कर खुद मान के खिलाफ कोई फैसला लेती। यह दलगत राजनीति का नहीं बल्कि देश का मामला है। मान जैसे कितने ही सांसद आएंगे और चले जाएंगे लेकिन संसद अनंत काल तक लोकतंत्र को यूं ही मजबूती प्रदान करती रहेगी।