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देवों के भरोसे देवभूमि!

उत्तराखण्ड के जंगलों की आग हिमाचल के बाद अब जम्मू-कश्मीर तक पहुंच रही है। पिछले 70-80 दिन से सुलग रही है

May 02, 2016 / 06:18 pm

विकास गुप्ता

uttarakhand fire

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-राजीव तिवारी
देवभूमि उत्तराखण्ड फिलहाल तो देवों के भरोसे ही है। आगामी 9 मई से चार धाम यात्रा शुरू होने वाली है। सबसे पहले यमुना के उद्गम स्थल यमुनोत्री के पट खुलेंगे। इसी के साथ पूरे देश से लाखों यात्री छह माह के लिए खुलने वाली धार्मिक यात्रा पर निकल पड़ेंंगे। किसके भरोसे? शायद भगवान के ही। क्योंकि सरकार तो वहां अधरझूल में है। वास्तव में है ही नहीं। सुप्रीम कोर्ट 3 मई को सुुनवाई करेगा कि केन्द्र की ओर से लगाया गया राष्ट्रपति शासन सही है या हरीश रावत को विधानसभा में बहुमत साबित करने का मौका देना चाहिए। राजनीतिक तिकड़मबाजियों में उलझा है पूरा राज्य। पहाड़ जल रहे हैं।

उत्तराखण्ड के जंगलों की आग हिमाचल के बाद अब जम्मू-कश्मीर तक पहुंच रही है। पिछले 70-80 दिन से सुलग रही आग में करोड़ों की जड़ी-बूटी, इमारती लकड़ी, जानवरों के आश्रय साल और चीड़ के जंगल नष्ट हो चुके हैं। सात लोगों की जान जा चुकी है। आग बुझाने में वायुसेना भी हथियार डाल चुकी है। अब इस आपदा से जूझ रहे लोगों को इन्द्र देव के भरोसे छोड़ दिया गया है। सरकारी तौर पर कहा गया है कि दो-एक दिन में बारिश की संभावना है। इससे राहत मिलेगी। यानी बारिश नहीं हुई तो जंगल यूं ही सुलगते रहेंगे, आग बस्तियों की ओर बढ़ती रहेगी।

तीन साल पहले की केदारनाथ त्रासदी से अब तक उबर नहीं पाए लोगों की दुश्वारियां कम नहीं होने वाली। क्योंकि सरकार निष्क्रिय है। राज्य की अर्थव्यवस्था में सबसे अहम चार धाम यात्रा की तैयारियां भी आधी-अधूरी ही हैं। सड़कें बदहाल हैं। पदमार्ग टूटे हुए ऊबड़-खाबड़ हैं। हजारों की संख्या में होटल, ढाबे, खच्चर वाले यात्रियों के इंतजार में है। लेकिन जंगल की आग और राजनीतिक अस्थिरता उनको आशंकाओं में घेरे हैं। फिर कैसे तीर्थयात्री वहां तक पहुंचेंगे। किसी को फिक्र नहीं। इस बार यदि यात्रा में आग या बारिश से बड़ा व्यवधान पड़ता है तो उत्तराखण्ड अगले कई वर्षों तक आर्थिक तंगी से नहीं संभल पाएगा। पहाड़ से पहले ही बहुत पलायन हो चुका है। यदि हालात जल्दी नहीं सुधरे तो देवभूमि पर छाई धुंए की धुंध इसका भविष्य स्याह ना कर दे।

उम्मीद तो यही है कि राजनीतिक और प्राकृतिक हालात जल्दी सुधरेंगे। लेकिन तब तक केन्द्र सरकार को राष्ट्रपति शासन के तहत वहां व्यवस्थाएं अपने हाथ में लेनी चाहिए। ताकि राज्यवासी और यात्रियों में निश्चिंतता का माहौल बने। नहीं तो सुप्रीम कोर्ट दखल करे। और घाटी जय गंगे, जय भोले के उद्घोषों से गुंजायमान हो जाए।

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