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उपराष्ट्रपति चुनाव: ‘उत्तर’ दक्षिण देगा! 

Published: Jul 18, 2017 10:35:00 pm

उपराष्ट्रपति पद के चुनाव पर विपक्ष एकजुट दिख रहा है। राष्ट्रपति पद के
चुनाव में कांग्रेस की जल्दबाजी ने विपक्षी एकता को तोड़ा तो इस बार
संयुक्त विपक्ष ने दक्षिणी राज्यों से लाभ उठाने के लिए उपराष्ट्रपति पद पर
गोपाल कृष्ण गांधी को उम्मीदवार बनाया

Vice Presidential election

Vice Presidential election

नीना व्यास राजनीतिक विश्लेषक

उपराष्ट्रपति पद के चुनाव पर विपक्ष एकजुट दिख रहा है। राष्ट्रपति पद के चुनाव में कांग्रेस की जल्दबाजी ने विपक्षी एकता को तोड़ा तो इस बार संयुक्त विपक्ष ने दक्षिणी राज्यों से लाभ उठाने के लिए उपराष्ट्रपति पद पर गोपाल कृष्ण गांधी को उम्मीदवार बनाया। सत्ता पक्ष ने भी वेंकैया नायडू के तौर पर दक्षिण से ताल्लुक रखने वाला नेता आगे कर दिया है।

आगामी पांच अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने एक बार फिर तमाम राजनीतिक अटकलों को खारिज करते हुए वरिष्ठ राजनेता मुप्पवरपु (एम.) वेंकैया नायडू को उपराष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित किया है। राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए भी दलित वर्ग से आने वाले रामनाथ कोविंद को उम्मीदवार बनाकर राजग ने विपक्ष को हतप्रभ कर दिया था।

भाजपा के वरिष्ठ नेता एम. वेंकैया नायडू केन्द्र सरकार में सूचना प्रसारण एवं शहरी विकास मंत्रालय संभाल रहे थे। कांग्रेसनीत विपक्ष पहले ही महात्मा गांधी के पौत्र व पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी को उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार घोषित कर चुका है। संख्या बल से देखा जाए तो वेंकैया नायडू की जीत तय मानी जा सकती है। लेकिन, महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या एम. वेंकैया नायडू की यह उम्मीदवारी उनके राजनीतिक वनवास की तैयारी तो नहीं? या फिर उन्हें किसी रणनीति के तहत उम्मीदवार बनाया गया है?

गौरतलब है कि विपक्ष महागठबंधन के उम्मीदवार गोपालकृष्ण गांधी महात्मा गांधी के पौत्र होने के साथ-साथ भारत के प्रथम व अंतिम भारतीय गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी के नाती भी हैं। राजगोपालाचारी के नाती होने के कारण उम्मीद की जा रही है कि गोपालकृष्ण गांधी को दक्षिण के प्रमुख दलों का उपराष्ट्रपति चुनाव में समर्थन प्राप्त होगा। लगता है कि राजग ने दक्षिण से ताल्लुक रखने वाले नायडू को उम्मीदवार बनाकर विपक्ष की इन उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।

छात्र राजनीति से शुरुआत करने वाले नायडू वर्ष 2002 से 2004 तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे वर्ष 1972 में ‘जय आंध्र’ आंदोलन द्वारा राजनीतिक क्षितिज पर चर्चा में आए थे और आपातकाल के बाद भाजपा के करीब आए। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी रहे नायडू हमेशा भाजपा के विश्वसनीय सिपहसालार रहे हैं।

उनकी उम्मीदवारी का एक बड़ा कारण यह भी है कि वे वर्ष 1998 से लगातार राज्यसभा के सदस्य रहे हैं। मौजूदा समय में भी वे राजस्थान से राज्यसभा के सदस्य हैं। देश की संसदीय व्यवस्था के अंतर्गतउपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं और सदन की कार्यवाही के संचालन में अहम भूमिका निभाते हैं।

ऐसे में वेंकैया का अनुभव उपयोगी होगा। संसद की कार्यप्रणाली का लम्बा अनुभव होने के चलते ही इन्हें संसदीय कार्यमंत्री भी बनाया गया था। यह भी लगता है कि लम्बे राजनीतिक अनुभव और स्वच्छ छवि वाले वेंकैया को उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर बिठाकर भाजपा दक्षिण के राज्यों में अपनी राजनीतिक संभावनाएं तलाशना चाहती है। अपने दीर्घकालिक राजनीतिक जीवन में वेंकैया ने आंध्र प्रदेश के कई राजनीतिक और जन आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इसके साथ ही दक्षिण भारत में उनकी जमीनी पकड़ भी काफी मजबूत है। दक्षिण भारत से संबंधित फैसलों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा, उनकी सलाह जरूर लेते रहे हैं। यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि प्रारंभिक दौर में जब आंध्र और दक्षिण के अन्य राज्यों में भाजपा राजनीतिक रूप से कमजोर थी तो वेंकैया ने पार्टी को मजबूत करने के लिए विशेष योगदान दिया था। यह देखना दिलचस्प होगा कि उनकी उम्मीदवारी के बहाने क्या भाजपा दक्षिण भारत में अपने राजनीतिक मंसूबों को हासिल कर पाने में सफल हो पाती हैं।

उपराष्ट्रपति का यह चुनाव यूं तो औपचारिकता ही है क्योंकि तय माना जा रहा है कि विपक्ष के उम्मीदवार गोपालकृष्ण गांधी इस चुनाव में जीत हासिल नहीं कर सकते पर इतना जरूर है कि वे नायडू के लिए चुनौतीपूर्ण उम्मीदवार साबित हो सकते हैं। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी रहे गोपालकृष्ण गांधी अपनी प्रशासनिक दक्षता और स्वच्छ राजनीतिक छवि के लिए जाने जाते हैं।

यह भी एक तथ्य है कि राष्ट्रपति के लिए चुनाव में कांग्रेस ने जब पूर्व लोकसभाध्यक्ष मीरा कुमार को उम्मीदवार घेाषित कर दिया तो विपक्ष के एक खेमे में असंतोष पनप गया था। यही वजह थी कि विपक्ष के अहम घटक जनता दल (यूनाइटेड) के नेता व बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मीरा कुमार की जगह राजग के उम्मीदवार रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन दे दिया। लेकिन, उपराष्ट्रपति चुनाव में गोपालकृष्ण गांधी के पक्ष में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वे विपक्ष महागठबंधन में शामिल सभी अठारह दलों के सर्वमान्य उम्मीदवार बनकर सामने आए हैं। नीतीश कुमार के साथ ही उड़ीसा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल के प्रमुख नवीन पटनायक ने भी गांधी को पूरा समर्थन देने की घोषणा कर दी है। बदलते राजनीतिक समीकरणों में गोपालकृष्ण गांधी अपने प्रतिद्वंद्वी वेंकैया नायडू को कितनी चुनौती दे पाएंगे यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में है। लेकिन, इस चुनाव ने विपक्ष को फिर से एकजुट होने का अवसर दिया है। इसके साथ ही सवाल यह भी है कि क्या राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पदों पर राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से परे हटकर सभी राजनीतिक दल एकमत होकर सर्वमान्य उम्मीदवार नहीं उतार सकते?
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