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मतदाता से मजाक

Published: Nov 27, 2015 11:21:00 pm

पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए ऐसे बन्दोबस्त की जरूरत है ताकि मतदाता
बिना परेशानी अपने अधिकार का उपयोग कर सके। समय पर चुनाव कराने से
महत्वपूर्ण ये है कि चुनाव निष्पक्ष नजर आएं

Opinion news

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अदालत का फैसला सिर-माथे लेकिन गुजरात में महानगरपालिका चुनाव के दौरान हजारों मतदाताओं के नाम सूची से गायब होना साधारण मामला मानकर नहीं छोड़ा जाना चाहिए। राज्य में दो चरणों में हो रहे पालिका पंचायत चुनाव में हजारों लोगों के नाम मतदाता सूचियों से गायब होना राज्य चुनाव आयोग की कार्यशैली पर सवालिया निशान खड़े करता है।

गुजरात उच्च न्यायालय ने चुनाव फिर कराए जाने सम्बन्धी एक जनहित याचिका शुक्रवार को खारिज कर दी। यह कहते हुए कि चुनाव प्रक्रिया पूरी होने के बाद अलग से याचिका दायर की जा सकती है। लेकिन इन सवालों का जवाब कौन देगा कि एक बार मतदाता सूची का अंतिम प्रकाशन हो जाने के बाद उसमें से नाम कैसे हटे? किसी तकनीकी वजह से हटे या जान बूझकर हटाए गए? कहीं इसके पीछे कोई बड़ी साजिश तो नहीं?

यह सवाल इसलिए और भी गंभीर हो जाता है कि एक समुदाय आरक्षण को लेकर सड़कों पर है। यदि ज्यादातर उसी समुदाय के लोगों के नाम हटे हैं तब दाल में काला होने के आसार बढ़ जाते हैं। राज्य चुनाव आयोग को यह स्पष्टीकरण देना ही चाहिए कि अंतिम सूची के प्रकाशन के बाद नाम हटने-हटाने के पीछे क्या कारण रहे? राज्य चुनाव आयोग के इस कृत्य की जांच भारतीय चुनाव आयोग को भी करानी चाहिए। चुनाव में हारे-जीते कोई भी लेकिन निष्पक्ष चुनाव का संदेश मतदाताओं में जरूर जाना चाहिए।

चुनाव में हर मत की कीमत होती है और एक मत से हार-जीत के उदाहरण भी हमारे सामने हैं। ये पहला अवसर नहीं है जब मतदाता सूची में गड़बड़ की बात सामने आई हो। देश में होने वाले हर चुनाव के दौरान मतदाताओं को परेशानी का सामना करना पड़ता है। बीते सालों में चुनाव आयोग की कार्यशैली में गुणात्मक सुधार आया है, चुनाव शांतिपूर्वक होने लगे हैं और मतदान केन्द्रों पर कब्जे की खबरें भी इतिहास के पन्नों में दर्ज नजर आने लगी हैं। बावजूद इसके चुनाव आयोग को अब भी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करने की जरूरत है।

पुरानी गलतियों से सबक लेते हुए ऐसे बन्दोबस्त करने की शख्त आवश्यकता है ताकि मतदाता बिना परेशानी के अपने अधिकार का उपयोग कर सके। समय पर चुनाव कराने से महत्वपूर्ण ये है कि चुनाव निष्पक्ष नजर आएं। चुनाव आयोग को दुनिया के दूसरे देशों की चुनाव प्रणालियों से भी सीख लेनी चाहिए। गुजरात में मतदाता सूचियों से हजारों नाम कटने के पीछे की कहानी तो देर-सबेर सामने आ ही जाएगी लेकिन उपाय ऐसे किए जाने चाहिए ताकि ऐसी गलती भविष्य में फिर नहीं होने पाए।
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