अलगाववाद और आतंकी घटनाओं से जूझ रहे जम्मू-कश्मीर के उरी में सैन्य शिविर पर हुए आतंकी हमले में हमारे 17 जवानों की शहादत ने फिर यह सोचने को मजबूर कर दिया है कि आखिर आतंकियों और इनको प्रश्रय देने वाले पाकिस्तान को हम उसकी भाषा में ही जवाब देने का काम कब करेंगे? यद्यपि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दोषियों को नहीं बख्शने की बात कही है लेकिन जनवरी में जब पठानकोट एयरबेस हमले में हमारे जवान शहीद हुए तब भी सरकार की ओर से ऐसे ही बयान आए थे। पठानकोट हमला तो उस वक्त हुआ जब नरेन्द्र मोदी पाकिस्तान जाकर नवाज शरीफ से दोस्ती का हाथ बढ़ाकर आए थे। जब से कश्मीर में आतंकी बुरहान वानी की सैन्य मुठभेड़ में मौत हुई, घाटी सुलग रही है।
हम पाकिस्तान के साथ साड़ी-शॉल की कूटनीति में ही व्यस्त रहते दिखते हैं और बदले में पाकिस्तान आतंकी भेज हमारे यहां माहौल खराब करने में जुटा है। उरी के सैन्य शिविर का आतंकी हमला पठानकोट एयरबेस हमले से मिलता-जुलता है। यहां भी आतंकियों ने अंधेरे का फायदा उठाकर सैन्य शिविर को निशाना बनाया।
यानी हमने ‘पठानकोट’ से कोई सबक नहीं सीखा। यह हमारे सुरक्षा बंदोबस्त पर भी सवाल खड़ा करता है। नरेन्द्र मोदी ने जब से बलूचिस्तान में मानव अधिकारों के हनन और आजाद कश्मीर का मुद्दा उठाया है पाकिस्तान बौखलाया हुआ है।
पाकिस्तान में पल रहे आतंकियों और भारत में सक्रिय अलगाववादियों को उसकी नापाक शह जगजाहिर है। ऐसे में सैन्य शिविरों में घुसने का आतंकियों का दु:साहस घर के भेदियों के बिना संभव नहीं। ये आतंकी घटनाएं सैन्यबलों के साथ देश की जनता का मनोबल भी कमजोर करती है। वक्त आ गया है जब केवल चेतावनी भरे शब्दों के बजाय आतंकियों और इनको पोषित करने वाले पाकिस्तान को करारा जवाब दें। केवल अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाक की हरकतों को बेनकाब करने से काम नहीं चलने वाला।