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ड्रैगन के खिलाफ हमें सख्त होना होगा

पिछले छह सप्ताह से डोकलाम सीमा विवाद को दोनों देशों की महत्वाकांक्षाओं और मजबूरियों के नजरिये से

Jul 20, 2017 / 10:26 pm

मुकेश शर्मा

Dokalam border dispute

Dokalam border dispute

पिछले छह सप्ताह से डोकलाम सीमा विवाद को दोनों देशों की महत्वाकांक्षाओं और मजबूरियों के नजरिये से आंका जा रहा है। हकीकत यह है कि 16 जून 2017 को भूटान के आमंत्रण पर भारत की सेनाओं ने चीनी सैनिकों को भूटान की भूमि में घुसने से रोक दिया था। और, तब से जबकि भारत शांति वार्ता का प्रस्ताव दोहराता आ रहा है, चीन लगातार आक्रामक रुख बनाए हुए है और इस बात की रट लगाए है कि भारत की सेनाओं का भूटान में होना उसे मंजूर नहीं।

 इसके साथ चीन इस विवाद पर तब तक बात को तैयार नहीं है जब तक कि भारत अपनी सेनाओं को वहां से पीछे नहीं हटा लेता। चीन की यह बौखलाहट उसके सैनिकों को भारत के पीछे धकेलने की वजह से है क्योंकि चीन को लगता है कि भारत का ऐसा व्यवहार चीन के अन्य पड़ोसी देशों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। बढ़ती हुई शक्ति और प्रभाव के परिप्रेक्ष्य में चीन लगातार, उन सब भूमि के टुकड़ों को हथियाने की कोशिश कर रहा है जिसको वह इतिहास में अपना मानता आया है।

 यही कारण है कि आज चीन खुद को ज्यादातर पड़ोसी देशों के साथ उलझा हुआ पाता है, चाहे वह रूस हो या जापान, ताईवान हो या फिलीपीन्स या हो इंडोनेशिया और भारत! पिछले ही सप्ताह चीन ने इंडोनेशिया के नए मानचित्र को, जिसमें दक्षिण चीन सागर के कुछ हिस्से को उत्तर नाथूना सागर बतलाया गया है, भू आक्रामण बतलाता है। याद रहे कि पिछले साल चीन ने दि हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय आर्बिटे्रशन कोर्ट के निर्णय, जिसमें कोर्ट ने चीन के ‘नाइन-लाइनÓ पर आधारित दक्षिण चीन सागर पर ऐतिहासिक संप्रभुता को अस्वीकार कर दिया, को मानने से इनकार कर दिया था। चीन दलाई लामा की अगले माह बोत्सवाना यात्रा को लेकर भी आक्रामक टिप्पणियां कर रहा है।

 दूसरी ओर, भारत की अंतरराष्ट्रीय पटल पर बदलती छवि को देखें तो भारत की अमरीका और उसके सभी मित्र राष्ट्रों के साथ बढ़ती घनिष्ठता को लेकर चीन और भी परेशान है। पिछले सप्ताह बंगाल की खाड़ी में भारत, जापान और अमरीका के मालाबार नौसेना अभ्यास को लेकर भी चीन चिंतित है। पच्चीस साल से चल रहे इस अभ्यास में इस वर्ष का ध्येय ‘एंटी सबमरीन वायरफेयरÓ था जिसका सीधा इशारा चीन की पनडुब्बियों का हिंद महासागर की ओर बढ़ती हुई उपस्थिति की ओर था। भारत के प्रधानमंत्री की यात्राओं में भारत के साथ आतंकवाद को लेकर बड़े राष्ट्रों की एकजुटता के सामने भी चीन का लगातार पाकिस्तान की ढाल बने रहना उसे परेशान करने लगा है।

 चीन की बौखलाहट अपनी जगह है लेकिन भारत को अभी उसके रवैये को लेकर और सख्ती दिखानी होगी। हालांकि हमें यह भी देखना होगा कि चीन की अंदरूनी परेशानियां भी कम नहीं हंै। धीमी आर्थिक वृद्धि दर का सामना कर रहे चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का इस साल अपना पांच वर्ष का कार्यकाल भी समाप्त हो रहा है। अक्टूबर में होने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के 19वें पंचवर्षीय सम्मेलन में वे अपने कार्यकाल का ब्यौरा देंगे और पार्टी काभावी प्रतिनिधित्व तय करेंगे जिसके साथ वे अगले पांच वर्ष के कार्यकाल की शुरुआत करेंगे।

पार्टी के प्रतिनिधित्व के बदलाव में नेताओं को हर बार बहुत ही आक्रामक प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। गत शनिवार चुंगछिंग नगरपालिका के पार्टी सचिव सुन चंग्साए को अचानक बर्खास्त कर दिया गया। वे पूर्व प्रधानमंत्री वन चियापाओ के चहेते और अब तक चीन के भविष्य के प्रधानमंत्री पद के दावेदार माने जाते रहे थे।

 ठीक ऐसे ही जब राष्ट्रपति शी जिनपिंग 2012 में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव चुने गए थे, तब भी इसी नगर पालिका के पार्टी सचिव पो शिलाए जो उनके मुकाबले में थे, को बर्खास्त किया गया था। बाद में उन पर मुकदमा चलाया गया और 2013 से वे जेल में हैं। इसलिए पार्टी के भावी प्रतिनिधित्व की प्रतिस्पर्धा में अपना दूसरा पंचवर्षीय कार्यकाल शुरू करते हुए, राष्ट्रपति शी जिनपिंग अपनी दबंग छवि के रहते भारत या भूटान से कोई समझौता करने की स्थिति में नहीं नजर आते। और, इसीलिए चीन डोकलाम के सीमा विवाद में कम से कम अक्टूबर तक पीछे नहीं हट सकता। लेकिन, भारत के बढ़ते प्रभाव और मजबूत रवैये के सामने वह बहुत ही धीरे-धीरे अपने लिए बचाव के रास्ते जरूर खोज रहा है।

 सितंबर में श्यामन में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन को लेकर भी उसको भारत के सहयोग की अत्यंत आवश्यकता है। इसी के चलते भारत के केंद्रीय मंत्रियों और अफसरों की लगातार चीन यात्राओं में उनको भारत से तालमेल बढ़ाने और सीमा विवाद को सुलझाने का मौका मिल सकता है। अगले सप्ताह अजीत डोभाल ब्रिक्स के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक में शामिल होंगे। वे भारत के चीन-सीमा विवाद के लिए विशेष प्रतिनिधि भी हैं और उनकी वार्ता चीन के सीमा के विवाद पर विशेष प्रतिनिधि यांग चिएच से होने की पूरी उम्मीद है।

 आने वाले दिनों में भारत के विदेश सचिव, विदेश मंत्री और शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री की यात्रा भी होगी। इनमें सीमा विवाद पर भारत-चीन-भूटान की त्रिपक्षीय बातचीत शुरू होने के आसार हैं। बहरहाल यह बात सकारात्मक होगी, कहा नहीं जा सकता।

प्रो. स्वर्ण सिंह अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार

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