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ऋण लेकर मौज करने वालों पर सख्ती जरूरी

Published: Apr 28, 2016 11:26:00 pm

पिछले कुछ समय से गैर निष्पादित आस्तियों यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स
(एनपीए) की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है और इसका सही निदान नहीं हुआ तो
भारत के बैंकों की आर्थिक स्थिति डगमगा ही सकती है

Opinion news

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अश्विनी महाजन बैंकिंग विशेषज्ञ
पिछले कुछ समय से गैर निष्पादित आस्तियों यानी नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है और इसका सही निदान नहीं हुआ तो भारत के बैंकों की आर्थिक स्थिति डगमगा ही सकती है। यही वजह रही कि पिछले कुछ समय से सरकार, न्यायालय और एनफोर्समेंट एजेंसिया दिखने में काफी सख्त दिखाई दे रही है। एक बड़े डिफॉल्टर के नाते राज्यसभा सदस्य और देश की सबसे बड़ी शराब कंपनी के मालिक विजय माल्या का नाम सुर्खियों में रहा है। लेकिन, ऋण लेकर मौज करने वाले बैंकों के कई डिफॉल्टर चर्चा में नहीं आए हैं। वित्त मंत्रालय से संबद्ध परामर्शदात्री समिति ने इन डिफॉल्टरों के नाम सार्वजनिक करने की सिफारिश की है।

बढ़ रहे हैं दबावग्रस्त ऋण

जब किसी ऋण की वापसी एक निश्चित समय, सामान्यत: तीन महीने तक बाधित रहती है तो उन्हें एनपीए की श्रेणी में डाल दिया जाता है लेकिन कई बार ऐसे कर्जों को पुनव्र्यवस्थित (रीस्ट्रक्चर) भी किया जाता है और उनकी अदायगी को टाल दिया जाता है। एनपीए ऋण और आगे टाली गई अदायगी वाले यानी रिस्ट्रक्चर ऋण वास्तव में ये दोनों प्रकार के ऋण ऐसे हैं जो दबावग्रस्त यानी शंका वाले ऋण हैं।

आज बैंकों के 2.67 लाख करोड़ के कुल ऋ ण दबावग्रस्त हैं और दबावग्रस्त ऋ णों का कुल ऋ णों में प्रतिशत भी बढ़ता जा रहा है। मार्च 2015 में 27 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के 11.1 प्रतिशत ऋ ण दबावग्रस्त थे, जो सितंबर 2015 तक 11.3 प्रतिशत हो गये। यदि स्थितियों में सुधार नहीं हुआ तो 1 लाख 14 हजार करोड़ रुपए के ये ऋ ण डूब जायेंगे।

दबावग्रस्त ऋ णों को सामान्यत: दो हिस्सों में बांटा जाता है। एक वे ऋ ण हैं, जिनकी अदायगी जानबूझकर नहीं हो रही यानी ‘विलफुल डिफॉल्टर’। ये उन लोगों द्वारा लिये गये ऋण हैं, जिनके पास पर्याप्त संपत्ति है लेकिन वे व्यवसाय में नुकसान के नाम पर ऋ ण नहीं चुका रहे। दूसरे वे ऋ ण हंै, जहां ऋ ण की अदायगी इसलिए नहीं हो पा रही क्योंकि अर्थव्यवस्था में मंदी का माहौल है। दुनिया भर में मंदी के चलते धातुओं की कीमतें लगातार गिरी है जिसके कारण उन उद्योगों को नुकसान हो रहा है। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर उनके ऋणों की अदायगी में अनिश्चितता आ गई है।

डिफॉल्टरों पर सख्ती

सामान्य तौर पर ऋ ण न चुकाने वाले व्यापार मे घाटे का बहाना लगाते हैं। ऐसे में उनकी संपत्तियों को जब्त कर उससे पैसा वसूलने में कठिनाई आती है। बैंकों की बढ़ती मुश्किलों के मद्देनजर बजट 2016-17 में सरकार ने 25,000 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। जिस बैंक पुनर्वित्तीयकरण कोष का नाम दिया गया है। सरकार ने कहा है कि बैंक अपने खराब ऋ णों को वसूलने के काम को पहले अंजाम दें, तभी वे इस कोष से पैसा पाने के अधिकारी होंगे। ऐसे में बैंकों को अपने ऋ णों को वसूलने में तेजी लाने के लिए प्रोत्साहन मिल सकता है।

हमें ध्यान रखना होगा कि पिछली सरकार के कार्यकाल में कई ऐसे ऋ ण दिये गये, जिनको बैंकिंग के पैमाने पर उचित नहीं ठहराया जा सकता। इस कारण संभव है कि सख्ती के बावजूद उन्हें वसूला न जा सके। लेकिन बड़ी मात्रा में ऐसे ‘विलफुल डिफॉल्टर’ हैं, जिनके पास पर्याप्त संसाधन हैं, उनके नाम प्रकाशित किये जाने चाहिए या उसका डर दिखाया जाना चाहिए। ऐसा करने पर संभव है कि वे अपनी संपत्ति बेचकर ऋ ण चुकाएं।

नया दिवालिया कानून
सरकार अब ‘नया दिवालिया कानून’ लेकर आ रही है। फिलहाल इस कानून के प्रारूप को संसदीय समिति की हरी झंडी भी मिल गई है। माना जा रहा है कि नया कानून बनने के बाद ऋ णी के दिवालिया होने पर विदेश में उसकी परिसंपत्तियों को भी नीलाम किया जा सकेगा। हाल ही में विदेशों में पड़ी विजय माल्या की संपत्तियों को जब्त करने में आ रही कठिनाइयों के मद्देनजर यह बिल महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। इसका अर्थ यही है कि बैंकों की कठिनाइयों के चलते, देश की अर्थव्यवस्था को बचाने और आगे बढ़ाने के लिए सख्ती से कदम उठाने होंगे।
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