देेश में किसी के अच्छे दिन आए हों या नहीं लेकिन लगता है गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल के बेटे-बेटी के अच्छे दिन तो आ ही गए हैं। बेटे की कम्पनी के शेयरों में आया उछाल यह बताने के लिए पर्याप्त है कि अच्छे दिन बहुत अच्छे से आ रहे हैं। दुनिया के शेयर बाजार जब गोते पे गोते लगा रहे हों, आनंदी बेन पटेल के पुत्र की कम्पनी के शेयर उछाल पे उछाल मार रहे हैं। वह भी तब जब कम्पनी लगातार घाटे में चल रही हो।
आनंदी बेन ने 22 मई 2014 को गुजरात का मुख्यमंत्री पद संभाला था। उस समय कम्पनी के एक शेयर की कीमत साढ़े सात रुपए के आस-पास थी। वही शेयर अब छह गुना उछलकर 45 रुपए के करीब पहुंच चुका है। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या होगा कि जब नामी कम्पनियों के शेयर डूब रहे हों ऐसे में भला निवेशक किसी घाटे वाली कम्पनी में निवेश करने को फायदे का सौदा मान रहे हैं। बड़ा सवाल यही कि आनंदी बेन के मुख्यमंत्री बनने के तुरंत बाद से ही कम्पनी की तकदीर बदलनी क्यों शुरू हो गई? इसका जवाब आनंदी बेन को तो देना ही होगा, भाजपा आला कमान भी अपनी जवाबदेही से बच नहीं सकता।
विपक्ष में रहते हुए ऐसे घोटालों पर भाजपा जमकर चुटकियां लेती थीं। भाजपा नेताओं को दूसरे उद्योगपतियों को भी वे गुर बताने चाहिए ताकि उनकी कम्पनियों के शेयर भी मुनाफा दे सकें। विपक्ष के हर आरोप को हवा में उड़ाकर बेशक भाजपा नेता अपनी जवाबदेही से बच सकते हैं लेकिन कब तक? गुजरात ही नहीं देश की जनता भी ऐसे ‘खेलों’ को बखूबी समझती है और समय आने पर उनका जवाब भी देती है वैसे ही जैसे संप्रग सरकार को दिया। बात गुजरात तक ही सीमित नहीं है।
जिन राज्यों में भाजपा सरकारें हैं, उन राज्यों से भी मंत्रियों के घोटालों की खबरें रह रहकर सुर्खियां बनती रहती हैं। दीनदयाल उपाध्याय के आदर्शों पर चलने का दावा करने वाली भाजपा को समूचे मामले पर सफाई देनी चाहिए। विस्तार से देश को ये भी बताना चाहिए कि आखिर घाटे वाली कम्पनी के शेयरों में निवेशक दिलचस्पी क्यों दिखा रहे हैं? या फिर इसके पीछे माजरा कुछ और है?
कागजों में चलने वाली किसी भी कम्पनी के शेयरों में इतना उछाल आने के कारणों की जांच दूसरी वित्तीय संस्थाओं को भी करनी चाहिए। कम्पनी की सालाना रिपोर्ट में दिखाए काम कम्पनी कर भी रही है अथवा नहीं, खुलासा इसका भी होना चाहिए। किसी मुख्यमंत्री के पुत्र-पुत्रियों के अच्छे दिन आएं, देश को इससे तकलीफ नहीं है।
तकलीफ इस बात से है कि लोकतंत्र में सरकारें अच्छा काम कर रही हों तो थोड़े बहुत दिन तो सबके फिरने चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि एक मुख्यमंत्री के पुत्र-पुत्री के दिन तो महज पांच महीने में ही बदल जाएं और आम जनता को इसके लिए पूरे पांच साल तक इंतजार करना पड़े फिर भी गारंटी नहीं कि दिन फिर ही जाएंगे।
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