हमारे लिए ब्रिटेन का उदाहरण बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें सांस्कृतिक परिपक्वता तो है, किन्तु भविष्य कंटकों से भरा है। युवा के चुभेंगे ये कांटे। हमारे युवा वर्ग को भी जाग जाना चाहिए।
चर्चा है कि ब्रिटेन आजाद हुआ। एक परम्परावादी, संकीर्णता के लिए जाना जाने वाला देश, अनेक देशों पर शासन करने वाला ब्रिटेन आज के समय के अनुसार बदलने को तैयार नहीं है। दूसरी ओर विकासवादी युवा वैश्वीकरण के साथ जीना चाहता है। युवावर्ग में 73 प्रतिशत यूरोपीय यूनियन के साथ रहना चाहता है। इसके अलावा 18 वर्ष से कम आयु का युवा भी मतदान का अधिकार पाने को आतुर है। बुजुर्ग कहते हैं कि वैश्वीकरण में हमारी पहचान-संस्कृति-खो जाएगी। जिस तरह से बाहरी लोग ब्रिटेन में घुस गए और स्थानीय नौकरियों में घुस गए, वह तो युवावर्ग के भविष्य पर बड़ा खतरा है। जैसे हमारे देश में करोड़ों बांग्लादेशी घुस आए हैं। अपराधों की संख्या बढ़ गई है। बेरोजगारी का ग्राफ आसमान छूने लगा है। हमारे यहां तो लगभग सभी पड़ौसी देशों के नागरिक अवैध रूप से रहते मिल जाएंगे। हर सरकार इसको अपनी उपलब्धि मानती आई है। अमरीका की राजनीति में इसका असर तुरंत हुआ है। रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपति पद के संभावित उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प ने प्रतिक्रिया में जो कहा, वह चिन्तन करने लायक है। उन्होने कहा-यह महान रोमांचक और ऐतिहासिक परिणाम है। ब्रिटेनवासियों ने ईयू को छोड़कर अपना देश वापिस ले लिया। इसी तरह हम भी अमरीका को वापस लेंगे। अर्थात सभी प्रकार की सरकारों को जनता की मर्जी से चलना होगा।
ब्रिटेन का अलग होना कोई साधारण घटना नहीं है। एक ओर इसको पड़ौसी देशों से व्यापार, उद्योग एवं अन्य आदान-प्रदान में अन्तर्राष्ट्रीय मर्यादाओं का पालन करना पड़ेगा, वहीं दूसरी ओर इसे विखण्डन के लिए भी तैयार रहना पड़ेगा। स्कॉटलैण्ड जैसे देश जहां अधिकांश नागरिक यूरोपीय यूनियन में रहने के समर्थक हैं, ब्रिटेन से अलग भी हो सकते हैं। साथ रहने के पक्ष में तथा विपक्ष में बहुत अन्तर नहीं है। साथ 48.1 प्रतिशत तथा अलग 51.9 प्रतिशत में 16-17 वर्ष के युवा शामिल नहीं हैं। वरना अलग हो ही नहीं पाते। अगले 2-3 सालों में साथ रहने वालों का प्रतिशत बढ़ जाएगा। वैश्वीकरण तो हावी रहेगा ही।
विश्व का भविष्य युवा वर्ग के हाथ में है। वह अभी वैश्वीकरण की चकाचौंध में है। उसकी जीवन शैली एक प्रवाह में बह रही है। वह विदेशी जीवन के अनुभवों, प्रयोगों एवं आधुनिकीकरण के बीच जीना चाहता है। उसे कभी-कभी भारतीय परम्पराएं भी याद आती हैं, किन्तु कब तक? जिस देश में कपिल सिब्बल जैसे अवतारी पुरुष नीति निर्धारकों में बैठे हों, तब लिव-इन-रिलेशन, समलैंगिकता का जीवन, 16 साल की उम्र में कन्याओं को शारीरिक सम्बन्धों की छूट के कानून हमारी संस्कृति को तार-तार कर देंगी। माननीया स्मृति ईरानी ने घोषणा की है कि हमारे विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम सात विदेशी विश्वविद्यालयों का समूह तय करेगा। सिखा देना सनातन संस्कृति!
ब्रिटेन में भी यही द्वन्द्व चलेगा। और नई पुरानी पीढ़ी के बीच जीवन शैली का टकराव बढ़ेगा। पुरानी पीढ़ी जीत नहीं पाएगी। घटती भी जाएगी। तब क्या संस्कृति विकास की भेंट चढ़ जानी चाहिए? पैसों की खनक में इसकी आवाज खो जानी चाहिए? देश कोई भी हो, शक्ति तो संस्कृति में रहती है। ब्रिटेन के उदाहरण ने एक बहुत महत्वपूर्ण पहलू उजागर किया। युवा वर्ग का मतदान में भाग लेने का। वोट कितना कीमती या अमूल्य है, यह बात प्रत्येक युवा के जहन में बैठ जानी चाहिए। वही कर्णधार है देश का।
हमारे लिए ब्रिटेन का उदाहरण बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें सांस्कृतिक परिपक्वता तो है, किन्तु भविष्य कंटकों से भरा है। युवा के चुभेंगे ये कांटे। हमारे युवा वर्ग को भी जाग जाना चाहिए। हमारे यहां तो संस्कृति और संविधान दोनों की धज्जियां उड़ रही हैं। युवा मौन है। क्यों? आपने पढ़ा होगा कि चालीस लाख अवैध प्रवासियों के सवाल पर अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा और सर्वोच्च न्यायालय के बीच ठनी हुई है, इन दिनों। किन्तु ओबामा ने न्यायपालिका को धमकाने अथवा अपमानित करने का कोई प्रयास नहीं किया। और हमारे यहां-? चयनित सरकारों को बर्खास्त करके हड़पने के जो प्रयास होते रहे हैं, क्या वे संविधान सम्मत हैं-?
हमारे पास समय कम है। युवा वर्ग को सारे भेद भुलाकर कमर कस लेना है। इस देश की संप्रभुता और अखण्डता पर कोई खतरा न आए। हमें भी ब्रिटेन जैसा दिन न देखना पड़े। इसके लिए युवा वर्ग को गंभीर हो जाना चाहिए। हम समय के साथ भी रहें और मूल्यों की ताकत भी कम न होने पाए। हम वैश्वीकरण के अलावा हमारी ज्ञान परम्परा या विरासत को केन्द्र में रखकर दूसरों से आगे भी दिखाई पड़ें। ये विरासत अन्य किसी भी देश के पास नहीं। इसको ठेस पहुंचाने वाली प्रत्येक नीति का युवा वर्ग पुरजोर विरोध करे। पहले देश-फिर हम। वरना ब्रिटेन के युवा की तरह मुंह बांए खड़े रह जाएंगे। हमारे इरादे बहुमत के गुलाम को जाएंगे। आज भी हमने जिनको केन्द्र या प्रदेशों में बहुमत दिया, वे हमको गुलाम ही मान रहे हैं। युवा मौन है। कब तक-? क्या बचेगा पीछे वालों के लिए-उद्योगों को विदेशी खरीद लेंगे। किसान जहर उगलेगा, जमीनें रहेंगी नहीं। न रोटी, न पानी, न दवा, न हवा। युवा को जागना ही पड़ेगा, नहीं तो देश हाथ से निकल जाएगा।
अन्य आर्टिकल्स पढ़ने के लिए
यहां क्लिक करें