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कहां गया कालाधन?

Published: Sep 05, 2015 12:41:00 am

“काला धन” हमेशा चुनावी मुद्दा ही बना रहेगा या फिर
विदेशी बैंकों से वापस देश की तिजोरी में भी आ पाएगा?

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“काला धन” हमेशा चुनावी मुद्दा ही बना रहेगा या फिर विदेशी बैंकों से वापस देश की तिजोरी में भी आ पाएगा? सवाल लाख टके का जरूर है लेकिन इसका जवाब देने के जिम्मेदार राजनेता साफगोई से कभी जवाब देते ही नहीं। लोकसभा चुनाव से पहले भ्रष्टाचार और काला धन प्रमुख चुनावी मुद्दे थे।


तब विपक्ष में बैठी भारतीय जनता पार्टी और इसके नेता ये कहते नहीं थकते थे कि वे सत्ता में आए तो विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस ले आएंगे। भाजपा को सत्ता में आए पन्द्रह महीने बीत चुके हैं और इस दौर में काले धन पर एसआईटी बनाने के अलावा उसने शायद ही कुछ खास किया हो।

किया होता तो उच्चतम न्यायालय को बार-बार सरकार को निर्देश क्यों देने पड़ते? अदालत ने काले धन पर बनी एसआईटी को जांच की चौथी रिपोर्ट 7 अक्टूबर तक पेश करने के निर्देश दिए हैं।


न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल से भी पूछा है कि एसआईटी की सिफारिशों पर अमल के लिए केन्द्र सरकार ने क्या कदम उठाए हैं? काले धन का मामला बेहद संवेदनशील है लिहाजा इस पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करना उचित नहीं लेकिन सरकार क्यों नहीं सर्वोच्च अदालत के कहे बिना उसे समस्त तथ्यों से अवगत कराती। एसआईटी की तीसरी रिपोर्ट में यदि शेयर बाजार में भी नोटिस के जरिए तीन लाख करोड़ रूपए निवेश होने की बात सच है तो ये बेहद गंभीर मामला है। सरकार को इस दिशा में भी सचेत रहने की आवश्यकता है।

मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दस साल तक चली केन्द्र सरकार ने भी कभी यह नहीं कहा कि वह काला धन लाने की इच्छुक नहीं है लेकिन उसने उतना काम किया नहीं जितना करना चाहिए था। राजनेताओं के लिए काले धन का मुद्दा बेशक चुनाव जीतने का राजनीतिक हथियार हो सकता है लेकिन भारत जैसे विकासशील देश और इसके सवा सौ करोड़ देशवासियों के लिए ये मुद्दा राजनीतिक नहीं हो सकता। अवैध तरीके से कमाए गए खरबों रूपए विदेशी बैंकों में पड़े रहें और देश की बड़ी आबादी मूलभूत सुविधाओं को तरसती रहे, क्यों? विदेशों में जमा धन पर हक तो आखिर देशवासियों का ही है। इस धन से देश में कितने स्कूल, अस्पताल बन सकते हैं। कितने कारखाने खुल सकते हैं।


केन्द्र में भारी बहुमत से चुनकर आई भाजपा सरकार का दायित्व बनता है कि वह जन आकांक्षाओं को पूरा करे। काले धन को वापस लाने के लिए दूसरे देशों के साथ जरूरी कानूनी खानापूर्ति को भी तीव्र गति से पूरा किया जाए ताकि हर देशवासी के खाते में रकम आए ना आए लेकिन देश की तिजोरी तो भर सके।

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