बोझ-धौंस-खौफ (राजेंद्र शेखर व्यास)
Published: Jul 23, 2016 11:18:00 am
कर्नाटक में ये क्या हो रहा है…! प्रदेश में ये कैसा काम का दबाव, बोझ,
प्रताडऩा, बार-बार तबादले का खौफ, अपमान, बेरुखी, झिड़कियां, फटकार हैं…
राजेंद्र शेखर व्यास
कर्नाटक में ये क्या हो रहा है…! प्रदेश में ये कैसा काम का दबाव, बोझ, प्रताडऩा, बार-बार तबादले का खौफ, अपमान, बेरुखी, झिड़कियां, फटकार हैं…, कि अधिकारी-कर्मचारी खुदकुशी जैसे कदम उठाने को विवश हो रहे हैं। मुलाजिमों द्वारा आत्महत्या जैसे कदम उठाने की आग बढ़ती जा रही है। कहां है सरकार और पारदर्शी प्रशासन? क्या प्रदेश में कर्मचारियों की पीड़ा सुनने वाला कोई है? सरकार और प्रशासन पर इसका कोई असर हो भी रहा है या नहीं? शायद सरकार समझ ही नहीं पा रही कि क्या करे? वह तो संभवतया इसी उलझन में है कि कर्मचारियों-अधिकारियों की बढ़ती इस अवांछित प्रवृत्ति पर अंकुश कैसे लगाया जाए? यह भी समझ से परे है कि वह इस पर विचार भी कर रही है या नहीं। एक मामले की गर्मी थमती नहीं कि दूसरी घटना हो जाती है।…और, सिलसिला जारी है…!
सबसे ज्यादा दबाव-प्रताडऩा संभवतया पुलिस महकमे में है। अब तक दो पुलिस अधिकारी और एक कर्मचारी खुदकुशी कर चुके हैं। दो प्रशासनिक व पुलिस अधिकारी आत्महत्या का प्रयास कर चुके हैं। खुदकुशी करने वालों में डीएसपी रैंक के दो अधिकारी कलप्पा हंडीबाग और एम.के.गणपति शामिल हैं। इसके अलावा आज सुबह ही एक और पुलिसकर्मी राज्य रिजर्व पुलिस बल के कांस्टेबल अन्नाराव साईबन्ना ने तबादले के खौफ के चलते कलबुर्गी पुलिस क्वार्टर में पंखे पर फंदा लगाकर खुदकुशी कर ली। आज ही एक महिला होमगार्ड ने भी तनवाह के मुद्दे को लेकर खुदकुशी का प्रयास किया। यही नहीं इससे पहले पूर्व महिला डीएसपी अनुपमा शेनॉय को जिला प्रभारी मंत्री के उत्पीडऩ से तंग आकर इस्तीफा देना पड़ा था और यह प्रकरण काफी चर्चा में रहा था।
पुलिस ही नहीं अन्य प्रशासनिक महकमे के अधिकारी और कर्मचारियों पर भी महकमों के उच्चाधिकारियों का उत्पीडऩ और धौंस का दबाव बताया जा रहा है। ऐसे ही दबाव के चलते गुरुवार को हासन में तैनात राज्य प्रशासनिक सेवा की अधिकारी सहायक आयुक्त ई.विजया ने अपने आवास में आत्महत्या का प्रयास किया था। यह तो शुक्र है कि पड़ोसियों की सतर्कता से उनकी जान बच गई। गौरतलब यह भी है कि पिछले साल ही मैसूरु में महिला आईएएस अधिकारी रश्मि पर हमला हुआ था तो मैसूरु की मौजूदा जिला अधिकारी सी.शिखा को भी राजनीतिक पहुंच वाले के दबाव पर अपने अपमान के चलते थाने में शिकायत दर्ज करवानी पड़ी थी।
ये घटनाएं कर्मचारियों की मनोदशा समझने के लिए काफी हैं। अधिकारी, कर्मचारी उत्पीडऩ का शिकार होकर जान गंवाने जैसे कदम उठाते जा रहे हैं और सरकार तह तक पहुंचने और विभागों की सुध लेने के बजाय जांच, बयान और तहकीकात जैसी प्रक्रियाओं में ही उलझी है। कुछ प्रकरणों में तो उच्चाधिकारियों ही नहीं मंत्री तक भी पर आरोप लगे हैं, लेकिन मामले जांच पर जांच में उलझते जा रहे हैं। एम.के.गणपति आत्महत्या प्रकरण में तो ऐसी ही उलझन के चलते सीआईडी को जांच ही स्थगित करनी पड़ गई। इन हालात में सवाल यही उठ रहे हैं कि सरकार और प्रशासन का अधिकारियों व कर्मचारियों से काम लेने का यह कैसा रवैया है कि वे जिंदगी से हारने जैसा कदम उठाने को मजबूर हो रहे हैं।
एकबारगी ये घटनाएं तो यही साबित कर रही हैं कि सरकार और प्रशासन में सब कुछ ठीक नहीं। सरकार का पुलिस और प्रशासन के उच्चाधिकारियों पर कहीं कोई अंकुश नजर नहीं आता। वे अपने पद और पहुंच के चलते दबाव बनाते जा रहे हैं और खमियाजा मातहतों को भुगतना पड़ रहा है। सरकार को चाहिए कि वह प्रत्येक विभाग में कर्मचारियों के प्रति ऐसे उच्चाधिकारियों के रवैये की समीक्षा करे और उनकी पहचान करे, जो अपने पद और पहुंच की धौंस दर्शाकर मातहतों का उत्पीडऩ करने पर आमादा हैं। हालात बिगड़ते-बिगड़ते बदतर होते जा रहे हैं। यदि अब भी सरकार नहीं चेती तो स्थितियां विस्फोटक हो सकती हैं।