भारत ही नहीं दुनिया भर में टाटा समूह के चेयरमैन साइरस मिस्त्री को अचानक बर्खास्त कर देना आश्चर्य का विषय बन गया है। भारत का यह कॉरपोरेट घराना अंबानी बंधुओं के रिलायंस घराने के बाद दूसरे पायदान पर गिना जाता है। ऐसे में उसके मुखिया को इस तरह हटाए जाने से जाहिर तौर पर अचंभा हुआ है। टाटा बड़ा समूह है। अमरीकी डॉलर में आंकें तो इसका टर्नओवर 100 अरब डॉलर से भी ज्यादा है।
वित्तीय वर्ष 2015-16 में समूह का टर्नओवर 103 अरब डॉलर रहा। यानी यह करीब 7 लाख करोड़ रु. के टर्नओवर वाली कंपनी है। हालांकि, कंपनी पर ऋण भी बहुत है। खैर, इतिहास में जाएं तो बात यह है कि रत्न टाटा 21 साल तक इस समूह के चेयरमैन रहे। जब रतन टाटा को चेयरमैनशिप मिली तो कुछ विवाद हुआ था।
रतन कंपनी में वरिष्ठ लोगों के आजीवन पद पर बने रहने के खिलाफ थे। रतन टाटा आने के बाद नानी पालकीवाला, दरबारी सेठ जैसे करीबी लोगों को एक के बाद एक इस्तीफा देना पड़ा। इसलिए जब चार साल पहले जब रतन टाटा 74 साल के थे तब भी बात उठी कि रिटायरमेंट की एक उम्र होनी चाहिए।
आखिरकार रत्न ने रिटायरमेंट ले लिया। वर्ष 2012 में उन्होंने साइरस मिस्त्री को चेयरमैन बनाया। इस वक्त रतन टाटा की उम्र 78 साल है और मिस्त्री की 48 साल। जब मिस्त्री को चेयरमैन बनाया तो उनकी तारीफें हुईं। मिस्त्री को पद के काबिल बताया गया। रतन ने अपना उत्तराधिकारी मिस्त्री में ढूंढा। पर महज चार साल के भीतर ही मिस्त्री को हटाया जाना बड़े सवाल खड़े करता है। जाहिर तौर पर कोई अंदरूनी विवाद ही बढ़ गए होंगे तभी साइरस को अचानक इस्तीफा देना पड़ा। टाटा समूह में 100 से ज्यादा कंपनियां हैं। टाटा स्टील, टाटा मोटर्स, टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, टाटा टेलीकॉम जैसे बड़ी कंपनियां हैं। इन सारी कंपनियों की होल्डिंग कंपनी है, टाटा संस।
इसका 66 फीसदी मालिकाना हक टाटा ट्रस्ट के पास है और इसके मुखिया हैं रतन टाटा। दूसरा बड़ा मालिकाना हक मिस्त्री परिवार के पास है। साइरस को हटा देने से यह कहानी खत्म नहीं होने वाली। मामला आगे कोर्ट में जाएगा। हालांकि, साइरस ने कोर्ट जाने की अटकलों को बेबुनियाद बताया है। मिस्त्री ने कहा है कि पिछले 24 घंटे में जो घटनाक्रम हुआ, वह संवदेनशील है और जब जरूरत पड़ेगी, वे स्पष्टीकरण देंगे।
यानी उनका कहना है कि मीडिया में जो अटकलें लगाई जा रही हैं, उनमें बहुत सच्चाई नहीं है, लेकिन मेरा मानना है कि मिस्त्री परिवार देर-सबेर अदालत में जा सकता है। साइरस को हटाने के पीछे कारण बहुत हो सकते हैं, लेकिन कुछ अहम वजहों पर इस वक्त फोकस किया जा रहा है। पहला यह कि पिछले चार साल में टाटा समूह जिस रफ्तार से बढऩा चाहिए था, उस रफ्तार से नहीं बढ़ पाया। पिछले दो साल में पूरे समूह का टर्नओवर कम हो गया। 108 अरब डॉलर से घटकर पिछले वित्तीय वर्ष यह 103 अरब डॉलर पर आ गया।
साइरस मिस्त्री ने बहुत सारी संपत्तियां बेच दी। यूरोप में एक स्टील बनाने का कारखाना उन्होंने बेच दिया, उन्होंने बताया कि इसके रहने से टाटा का नुकसान बढ़ेगा। हालांकि, ऐसा नहीं है कि मिस्त्री ने कुछ छिपाकर किया। यह सब सार्वजनिक था। जाहिर तौर पर ऐसे कारोबार में नुकसान वाली संपत्तियों को बेचा जाता है।
इसी तरह टाटा ने जापान की डोकोमो के साथ टेलीकॉम जगत में टाटा डोकोमो नामक एक वेंचर स्थापित किया था, पर डोकोमो के साथ टाटा का बड़ा संघर्ष चल रहा है। यह मसला कोर्ट में चल रहा है। कहा जा रहा है कि मिस्त्री ने इस मामले को ठीक तरह से हैंडल नहीं किया। एक और बात यह है कि टाटा में इतनी सारी कंपनियां है पर एक ही कंपनी अच्छा प्रदर्शन कर रही है और वह है टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज। बाकी कंपनियों का प्रदर्शन खास नहीं है। वैसे, साइरस का समर्थन करने वाले लोग भी हैं।
पर प्रदर्शन देखें तो उनके मुख्य बिजनेस टाटा स्टील ही नुकसान में चल रहा है। यह सही है कि अलग-अलग निदेशक और प्रबंधक की राय अलग-अलग रहती है। खुद रतन ने कहा है कि चार महीने के बाद और कोई चेयरमैन भी आ सकता है। एक समिति बनाई गई है, जो चेयरमैन तलाशेगी। विश्व में कहीं से भी टाटा का चेयरमैन बनाया जा सकता है। पर सवाल है कि जिसे रतन टाटा ने खुद चेयरमैन बनाया, जो उनसे उम्र में 30 साल छोटा था, उससे इतनी जल्दी नाता तोडऩे की क्या मजबूरी आ पड़ी? हालांकि, किसी भी संस्था, सरकार या कॉरपोरेट में एक व्यक्ति का नेतृत्व महत्वपूर्ण होता है।
वह व्यक्ति ही उस संस्था में ताकत पैदा करता है। फिर चाहे वे रतन टाटा हों या नारायण मूर्ति या स्टीव जॉब्स। लेकिन जब रत्न टाटा कहते आए हैं कि हम कंपनी प्रबंधन को पेशेवर करेंगे तो फिर कैसे एक व्यक्ति या परिवार पर निर्भर रहा जा सकता है? भारत में कंपनियां परिवार या व्यक्ति द्वारा संचालित होती हैं। यह वैश्विक कॉरपोरेट संस्कृति की दृष्टि से ठीक नहीं है। पेशेवर रवैये का हॉलमार्क यही है कि कंपनी लोकतांत्रिक ढांचे से चले।