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रस्म अदायगी क्यों?

Published: Dec 01, 2016 11:09:00 pm

चुनाव के समय आसमान से चांद-तारे तोड़ लाने का वादा करने वाले
सांसद जीतने के बाद  बदल जाते हैं। न उन्हें मतदाता याद रहते हैं और न ही
कोई योजना

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ऐसी रस्म अदायगी का क्या फायदा जो जगहंसाई का पात्र बनकर रह जाए। प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना भी रस्म अदायगी का जीवंत उदाहरण बनकर रह गई है। दो साल पहले प्रधानमंत्री की पहल पर शुरू की गई इस योजना में अगर कुछ हुआ है तो बस दिखावा। योजना अच्छी थी और शुरुआत में सराही भी गई लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र के एक-एक गांव गोद लेकर सांसदों ने खानापूृर्ति तो कर दी लेकिन गांवों को आदर्श बनाने की मंशा पूरी होती नजर नहीं आई।

दो साल में 107 सांसद तो ऐसे रहे जिन्होंने गांव गोद लेने की खानापूर्ति पूरी करना भी उचित नहीं समझा। बड़ी बात ये कि इसमें सत्तारूढ़ दल के सांसद भी शामिल हैं। दूसरे चरण में एक अन्य गांव को गोद लेकर 2019 तक उसे आदर्श बनाना था। दूसरे चरण में अधिकांश सांसदों ने इसमें रुचि नहीं दिखाई है। बावजूद इसके प्रधानमंत्री कार्यालय ने सांसदों से गोद लिए गांवों को ‘कैशलैस’ बनाने की सलाह दे डाली है।

प्रधानमंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में दो गांवों को कैशलैस बनाने की दिशा में काम शुरू किया जा रहा है। चुनाव के समय आसमान से चांद-तारे तोड़कर लाने का वादा करने वाले सांसद चुनाव जीतने के बाद एकदम बदल जाते हैं। न उन्हें मतदाता याद रहते हैं और न उनके निमित्त कोई योजना। सांसद जब अपने-अपने आलाकमानों के सख्त आदेशों को हवा में उड़ाने से नहीं चूकते हों तो भले उनसे दूसरों के आदेश अथवा सलाह को मानने की क्या उम्मीद की जाए?

यही कारण है कि 30 से 40 फीसदी सांसद-विधायक अगले चुनाव में दोबारा नहीं जीत पाते। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि जल्दबाजी में कोई भी योजना शुरू नहीं की जाए। योजना भले कम हो लेकिन उनकी क्रियान्विति को सुनिश्चित पहले किया जाना चाहिए। राजनीतिक शोशेबाजी के लिए योजनाओं का ऐलान करके उनके विज्ञापन छापने से देश का भला होने वाला नहीं है। इसके लिए सख्त मॉनिटरिंग सिस्टम बनाना होगा। तभी योजनाओं से भला होगा और देश प्रगति के पथ पर वाकई चलता दिखेगा।

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