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हंगामा है क्यूं बरपा…!

Published: Oct 11, 2015 10:06:00 pm

पाकिस्तान ने तो नहीं सुधरने की जैसे कसम ही
खा रखी है लेकिन हम अपना बड़प्पन क्यों छोड़ रहे हैं? जब शिवसेना जैसे संगठन अपनी
सांप्रदायिक विचारधारा थोपते हैं तो क्यों हमारी सरकारें और

Ghulam Ali

Ghulam Ali

पाकिस्तान ने तो नहीं सुधरने की जैसे कसम ही खा रखी है लेकिन हम अपना बड़प्पन क्यों छोड़ रहे हैं? जब शिवसेना जैसे संगठन अपनी सांप्रदायिक विचारधारा थोपते हैं तो क्यों हमारी सरकारें और राजनीतिक दल चुप्पी साध लेते हैं? क्यों नहीं आगे बढ़कर महाराष्ट्र और केंद्र की सरकार कहतीं कि ऎसा नहीं चलेगा? गुलाम अली को कार्यक्रम देने से रोकना और वो भी जगजीत सिंह को श्रद्धांजलि देने से, कला और संगीत नहीं भारत की परंपरा का अपमान है। हमारी सरकार को ऎसे हंगामे रोकने चाहिए। इसी विषय पर विशेषज्ञों की राय स्पॉटलाइट में…

पं. विश्वमोहन भट्ट वीणा वादक
हमारे देश के सैनिक रोज सीमा पर मरते हैं। हर रोज खबरें मिलती हैं कि किसी ना किसी शहर में राजकीय सम्मान के साथ शहीद की यात्रा निकाली जा रही है। श्रद्धा से सिर झुक जाता है उनकी शहादत पर। हालांकि शीर्ष स्तर पर शांति की बाते होती हैं तो आश्वासन और वादे लिये-दिये जाते हैं लेकिन सीमा पार के लोगों को यह बात समझ में नहीं आती। आए दिन हमारे सैनिकों के सिर काटकर ले जाने की घटनाओं से हम सिहर जाते हैं। हमारा खून भी खौलता है। समझ नहीं आता कि हम लोग किस तरह से प्रतिक्रिया दें।

गलत तो नहीं शिवसेना
जब हमारी मन:स्थिति ऎसी हो तो हम औरों के बारे में क्या कहें? ऎसा लगता है कि शिवसेना को विरोध का जरिया मिला नहीं। उन्हें लगा कि सीमा पार से आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है। हर रोज शांति समझौते का उल्लंघन हो रहा है। हमारे सैनिक शहीद हो रहे हैं तो मुझे लगता है कि एक लिहाज से शिवसेना के लोग गलत नहीं है। उन्हें गुलाम अली का कार्यक्रम का विरोध करके ही अपनी बात रखने का तरीका समझ में आया। यदि पाकिस्तान की टीम के साथ क्रिकेट मैच हो रहा होता तो भी वे शायद ऎसा ही करते। उन्हें संगीत या गुलाम अली से कोई घृणा नहीं है।

मुझे लगता है कि शिव सेना गुलाम अली के कार्यक्रम के विरोध के बहाने इस मुद्दे पर देश का ध्यान आकृष्ट करना चाहती है। वह बताना चाहती है कि एक ओर को आतंक पर उसकी ओर से कोई अंकुश नहीं लगता और दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना की से जो अधिकृत रूप से आतंक फैलाया जा रहा है। इसका जवाब दिया जाना चाहिए। इसका अंत होना ही चाहिए। आखिर कब तक हम केवल भाईचारे की बाते ही करते रहेंगे। शिवसेना में तो ही बहुत से लोग हैं जिन्हें उनका गाना पसंद है। गुलामी अली के कई लोग बड़े फैन भी हैं लेकिन मुझे लगता है कि यह गुलाम अली का निजी विरोध नहीं है बल्कि उस देश के विरोध है जिसके वे रहने वाले हैं। यह दो देशों के बीच संबंधों की बात है।

पाकिस्तान भारत के साथ दोस्ताना ताल्लुकात रखने की बात करता है लेकिन हकीकत में वह हरकतें दुश्मन जैसी ही करता है। ऎसे में गुलाम अली के माध्यम से पाकिस्तान और उसके प्रति भारत के नरम रवैया का विरोध शिवसेना कर रही है। जरा यह सोचिए कि समाचारों में गुलाम अली के कार्यक्रम के बारे में विशेष जानकारी नहीं थी लेकिन शिवसेना के विरोध के बाद उनके कार्यक्रम की बात सुर्खियों में आ गई। यह बात तभी आ पाई जब शिवसेना ने विरोध किया।

संगीत सीमाओं से परे
संगीत तो वास्तव में बिल्कुल स्वच्छ है। इसके सुर और ताल तो सभी जगह एक से होते हैं। उसकी कोई भाषा, देश, जाति या धर्म नहीं होता। हम लोग खुद गुलाम अली साहब की गायकी के प्रशंसक हैं। मेहंदी हसन रहे हों या आबिदा परवीन या गुलाम अली, इनकी लोकप्रियता पाकिस्तान से अधिक भारत में ही है। पाकिस्ता से ज्यादा भारत में इनके कार्यक्रम होते हैं। हमारा देश तो बहुत बड़ा दिल रखता है ऎसे मामलों में। लेकिन, तस्वीर का दूसरा रूख यह भी है कि जब देशभक्ति का जज्बा होता है तो वह इन सारे मामलों को दरकिनार कर देता है। देश सर्वोपरि है। जिस देश में हम रहते हैं, उसके प्रति जिम्मेदारी और वफादारी पहले आती है और बाकी बातें बाद में आती हैं।

शिवसेना या उनके समर्थक पहले भी पाकिस्तान के साथ संबंधों का विरोध करते रहे हैं। पाकिस्तान के साथ मैच के मद्देनजर वानखेड़े स्टेडियम की पिच भी खोदी गई है। लेकिन, इसके साथ भी शिवसेना के संस्थापक ने पाकिस्तानी खिलाड़ी जावेद मियांदाद से मिलने में कोई गुरेज नहीं किया। यह बात साबित करती है कि कला और खेल के विरोध में वे लोग नहीं है। जो लोग यह बात कह रहे हैं कि कला के विरोध के नाम पर राजनीति हो रही है तो यह भी कहा जा सकता है कि कला के समर्थन के नाम पर भी लोग राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं।

बेसुरी सियासत ठीक नहीं
सुर पर बेसुरी सियासत और संगीत पर सितम ठीक नहीं। हमारे यहां संगीत और सद्भाव का संदेश किसी सिरफिरी सोच का मोहताज नहीं। मुख्तार अब्बास नकवी, केन्द्रीय मंत्री

तो मुम्ब्ाई में क्यों नहीं?
अगर गुलाम अली वाराणसी के संकट मोचन मंदिर में गाना गा सकते हैं तो मुंबई में क्यों नहीं? शिवसेना भारतीय तालिबान बनना चाहती है।दिग्विजय सिंह, कांग्रेस नेता

न्योता स्वीकारा, शुक्रिया
गुलामअली सर, आपसे फोन पर बात कर अच्छा लगा। दिल से इच्छा थी कि आपकी गजलों को हम दिल्लीवासी भी सुनें। हमारा न्योता स्वीकार किया, दिल से शुक्रिया। अरविंद केजरीवाल, मुख्यमंत्री दिल्ली

म्यूजिक की कोई सरहद नहीं होती
संगीत की कभी कोई सरहद नहीं होती है। संगीत दिल से निकलने वाली आवाज होती है। गजल गायक गुलाम अली जी का कॉन्सर्ट कोलकाता में हो संकता है। हम सारे इंतजाम करेंगे। ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, प.बंगाल

यह कौनसा स्वाभिमान है?
विरोध गुलाम अली का नही पाकिस्तान का है। पाकिस्तान को हमारी भूमि पर खून बहाना बंद करना होगा। वो हमारे जवान को शहीद करें और हम इनका गाना सुने ये कौन सा स्वाभिमान है। संजय राउत, प्रवक्ता, शिवसेना


इन कलाकारों पर भी रहा है विवाद
अदनान सामी
भाजपा-मनसे ने अक्टूबर 2013 में पाक सिंगर अदनान सामी का वीजा रद्द करने की मांग की थी। पार्टियों ने कहा कि पाक नागरिक को वीजा नहीं दिया जाना चाहिए लेकिन अगस्त 2015 में ही बीजेपी सरकार ने वीजा दे दी।

वीना मालिक
2011 में वीना मलिक बिग बॉस में शामिल होने के लिए भारत आई थीं। कार्यक्रम में उनका स्वयंवर होने वाला था, लेकिन शिव सेना के विरोध के बाद रद्द कर दिया गया। शिवसेना ने उन्हें आईएसआई का एजेंट कहा।

इमरान अब्बा
बिपाशा बसु के साथ फिल्म “क्रिएचर” में रहे इमरान ने भारत आने के लिए 2015 में तीन बार प्रयास किया, वीजा नहीं मिला। उनका आरोप है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चल रही राजनीति के कारण उनको वीजा नहीं दिया जा रहा है।

माहिरा खान
पाकिस्तानी हीरोइन माहिरा की फिल्म “बिन रोये” को 2014 में महाराष्ट्र में बैन कर दिया गया था। बाद में वीजा भी नहीं दिया गया। उल्लेखनीय है कि माहिरा शाहरूख की नई फिल्म रईस में हैं।

माइकल जुल्फिकार
जुल्फिकार की फिल्म शूट ऑन साइट 2011 में रिलीज होने वाली थी, लेकिन पाक मूल के जुल्फिकार को भारत आने पर रोक लगा दिया गया था। सरकारने 26/11 की घटना का हवाला दिया था।



मैं तो मोहब्ब्त का पैगाम बांटता हूं …
मेरी ओर से कार्यक्रम रद्द नहीं किया गया। हालात ऎसे नहीं हैं कि मैं प्रोग्राम करूं। इस तरह के विवाद से लोगों के सुर खराब होते हैं। जो विरोध करते हैं वे करें मैं तो मोहब्बत का पैगाम बांटता हूं। मैं कई बार मुम्बई में परफोर्म कर चुका हूं और लोगों ने खूब प्यार दिया है। जगजीत सिंह जी मेरे भाई थे। कॉन्सर्ट उनकी बरसी पर आयोजित किया जा रहा था इस वजह से यह मेरे लिए खास था।


ऎसी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाएं
आलोक मेहता वरिष्ठ पत्रकार
गुलाम अली हमारे देश में तब से आ रहे हैं जब से दोनों देशों में तनाव की स्थितियां थी। जमाना था जब वे दिल्ली मेे विशिष्ट लोगों के घर पर भी आयोजित कार्यक्रमों में आते रहे हैं। वे ही नहीं पाकिस्तान के अन्य बहुत से कलाकार- रेशमा, मेहंदी हसन आदि को भारत में बेहद पसंद किया जाता रहा है। इसी तरह भारतीय कलाकार अमजद अली खां हों या साबरी बंधु हों, ये सभी कलाकार पाकिस्तान जाकर कार्यक्रम करते रहे हैं। उनका बहुत ही सम्मान है पाकिस्तान में।

राजनीति से अलग प्रयास
चाहे भारत के शीर्ष नेता हों या पाकिस्तान के, सभी मानते रहे हैं कि दोनों देशों के लोगों को राजनीति से अलग सांस्कृतिक रूप से जोड़ने के लिए कला और खेल बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नेहरू से लेकर वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक इसे लेकर प्रयासरत रहे हैं। ऎसा समझा जाता है कि दोनों देशों के बीच जनता के बीच जितना जुड़ाव होगा उतना ही तनाव दोनों देशों के बीच कम रहेगा। हमारे कलाकार मोहम्मद रफी हों या जगजीत सिंह, वे भी पाकिस्तान अकसर जाया करते थे। यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि भारतीय और पाकिस्तानी कलाकार एक-दूसरे के देश में भी वैसा ही सम्मान पाते हैं जैसा कि अपने देश में पाते हैं। गुलाम अली ने इसी वजह से तो जगजीत सिंह को अपना भाई कहा है। कुल मिलाकर दोनों देशों के कलाकारों ने राजनीति से ऊपर उठकर एक दूसरे के देश में कार्यक्रम देते रहे हैं और सम्मान हासिल करते रहे हैं। केवल गायन, संगीत और खेल ही नहीं पत्रकारों के स्तर पर भी फोरम बनी जिसमें खबरों का आदान-प्रदान शुरू हुआ था और इसे राजनीति और आतंकवाद सेे दूर रखने की बात रही है।

भारत की बदनामी हुई
हमारे देश के प्रधानमंत्री दुनिया भर में इस बात का संदेश देने में लगे हैं कि भारत दुनिया का नेतृत्व करने को तैयार है। ऎसी स्थिति में गुलाम अली का मुंबई में कार्यक्रम रद्द होना न केवल उनकी बल्कि भारत की छवि को खराब करने जैसा है। हम दुनिया के देशों में आर्थिक उदारवाद की बात करते हुए निवेश को आकर्षित करने की बात कर रहे हैं और दूसरी ओर सांस्कृतिक भेदभाव जैसी घटनाएं इस पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है। इससे प्रधानमंत्री के प्रयासों को ठेस जरूर पहुंचेगी। मेरा यह मानना है कि जब भी इस तरह के मौके आते हैं तो यह कहना काफी नहीं है कि राष्ट्रपति जैसे कह रहे हैं कि उसे माना जाए। राष्ट्रपति जनता के चुने हुए प्रतिनिधि नहीं हैं, प्रधानमंत्री जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं। यह कहकर टालना कि कि मामला राज्य सरकार है, ठीक नहीं है।

केन्द्र को देना था दखल
सांस्कृतिक संबंधों को जोड़ने के लिए भारत सरकार को गुलाम अली के मामले में भी आगे बढ़कर इस कार्यक्रम को रद्द होने से रोकना चाहिए था। कितना अच्छा लगता है जब देश के प्रधानमंत्री किसी देश में जाते हैं और वहां के कलाकार भारतीय संगीत के साथ उनका स्वागत करते हैं। कितने ही मौके मुझे याद हैं जब पाक कलाकारों का भारतीय प्रधानमंत्रियों ने स्वागत किया है। खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने ऎसा किया है। लालकृष्ण आडवाणी तो पाकिस्तान में जन्म को लेकर गौरव की बात कहते रहे हैं।

ऎसी संस्कृति में यदि हम कलाकारों के कार्यक्रम रद्द होने जैसी बातों को प्रश्रय देते रहे तो हम पाकिस्तान में बैठे आतंकवादी तत्वों की परोक्ष रूप से मदद ही कर रहे होंगे।जरा सोचिए, छत्तीसगढ़ या झारखंड में ऎसा हो हो कि राजस्थान, महाराष्ट्र या गुजरात के कलाकारों को कार्यक्रम पेश नहीं करने दिया जाए। नक्सली ऎसा नहीं करने दें तो देश और राज्य की सरकार ऎसी बातों को सहन करेंगी? मुझे लगता है कि ऎसी बातों को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए और उन पर अंकुश लगना ही चाहिए।
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