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बुद्धि और शक्ति

जरा हिम्मत दिखाएं और अपने मनसबदारों-सूबेदारों से
कहें कि दे दो त्यागपत्र। आरोप सिद्ध न हो तो फिर से बैठ जाना कुर्सी पर

Jul 30, 2015 / 09:52 pm

शंकर शर्मा

pm modi

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अगर संयोग से ईश्वर आपके सम्मुख आ खड़ा हो और कहे कि मांग ले वत्स! बुद्धि और शक्ति में से एक वरदान मांग ले तो आप क्या मांगेंगे? बुद्धि या शक्ति। सोचेंगे कि बुद्धि मांग लेंगे। अगर बुद्धि है तो शक्ति आ ही जाएगी। शर्त है कि सिर्फ एक ही चीज मिलेगी। फिर सोचेंगे कि अगर बुद्धि मिल गई और शक्ति न मिली तो बुद्धि किस काम की।

आजकल जमाना उसे ही समझदार मानता है जिसके पास शक्ति होती है। दूसरा विचार आएगा कि हम तो शक्ति मांगेंगे। शक्ति के बल पर सब कुछ “जय” किया जा सकता है। आज के समय में जिसके पास लाठी है भैंस भी उसी की है। लाठी के दम पर भैंस को कब्जे में कर लेंगे और भैंस का गाढ़ा दूध पिएंगे तो बुद्धि भी विकसित हो जाएगी। अजी कहां बुद्धि और शक्ति के झंझट में फंस गए। आप भी औरों की तरह इस देश के आम आदमी हैं और आम आदमी की किस्मत में तमाशा देखना ही लिखा है। त्रेतायुग का तमाशा देखा। द्वापर का घमासान देखा और अब कलियुग का खेल देख रहे हैं। ले देकर हजारों साल राजशाही, तानाशाही के बाद लोकशाही मिली और उसमें भी ससुर तमाशबीन ही बने हैं।

अलबत्ता एक काम बड़े ही पुरसुकून अंदाज में कर सकते हैं- सलाह देने का। इसमें कौन सी जुबान घिसती है। मानो तो मानो ना तो हम भले और खाट भली। दाल-रोटी खाएंगे और लंबी तान कर सोएंगे। लेकिन आज मन हो रहा कि अपने प्रधानमंत्री नमो भाई को कुछ सलाह दे ही दें- आप तो राजनीति के खेले-खाए आदमी हैं।

आपको सलाह देने का मतलब है सूरज को टार्च की लाइट दिखाना। लेकिन कई बार जब सूरज भी घने काले बादलों के पीछे चला जाता है तो हो सकता है उसे भी चश्मे की जरूरत पड़ जाती हो। जरा इतिहास में गोता लगा आओ। अपने पहले प्रधानमंत्री नेहरू ने बुद्धि का भरपूर इस्तेमाल किया लेकिन शक्ति के मामले में पिछड़े रहे। चीन से मात खा गए। छोटे कद के शास्त्री ने शक्ति खूब दिखाई पर किस्मत ने उन्हें बुद्धि दिखाने का मौका नहीं दिया।

शक्ति और बुद्धि का इस्तेमाल प्रियदर्शिनी ने बखूबी किया। उनके बाद सिर्फ अटल महाराज ने राज भी बढिया चलाया और शत्रु को मार भगाया। मन जी बुद्धि खपाते रहे शक्ति उनके हाथ में थी ही नहीं। अब अगर बुद्धि और शक्ति दोनों का उपयोग नहीं किया तो फिर प्रधानमंत्रियों के बोर्ड पर नाम ही लिखा रह जाएगा।

अपनी शक्ति भ्रष्टाचार, के खिलाफ भी लगाएं। जरा हिम्मत दिखाएं और अपने मनसबदारों-सूबेदारों से कहें कि दे दो त्यागपत्र। आरोप सिद्ध न हो तो फिर से बैठ जाना उसी कुर्सी पर। कार्यकाल तो दो और कांग्रेसी प्रधानमंत्रियों ने भी पूरा किया था। राव साब की तरह मनजी भी ईमानदार थे। लेकिन शक्ति कहां दिखा पाए। बार-बार गुजराती होने पर गर्व करते हैं तो जरा उन दो महान गुजरातियों “गांधी” और “पटेल” से ही सीख लें। बुद्धि और शक्ति का क्या जोरदार संयुक्त इस्तेमाल किया था उन्होंने।
राही

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