बचपन का लंगोटिया यार राधे जब हमारी टांगखिंचाई के मूड में
हो होता तब किसी भी बात की तारीफ में कहता- आप तो आप हैं, गधे के बाप हैं। यानी वह
हमें सीधे-सीधे गधा तो नहीं कहता पर गधे का बाप शेर तो हो नहीं सकता। चलिए ये तो
हुए यारी-दोस्ती के किस्से। यारी में तो आप किसी को बंदर, लंगूर, उल्लू, ऊंट कुछ भी
कह सकते हैं लेकिन जब बात बिगड़ जाती है तो कोई आपको आपके नाम से भी पुकारे तो भी
बुरा लगने लगता है।
जैसे प्रशान्त भूषण ने कहा कि आप अब “खाप” बन गई है। वाह रे वाह
आप वालो कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ रहे हैं और मुलम्मा चढ़ा रखा है सिद्धान्तों का।
प्रशान्त भूषण ने आशीष खेतान को पेड न्यूज राइटर (खबरों का सौदागर) करार दिया तो
आशीष बता रहे हैं कि भूषण पिता-पुत्र अरबपति कैसे बने इस बात का पर्दाफाश करेंगे।
आप वालों के इतनी जल्दी माथे फूटेंगे इसकी कल्पना न दिल्ली वालों ने की होगी न देश
वालों ने। ऎसा लग रहा है “अध भर गगरी छलकत जाए।” इनसे बातें करो और इनकी बातें सुनो
तो ऎसा लगता है कि पूरी दुनिया की ईमानदारी, शालीनता, उच्च आदर्शवादिता का सारा
ठेका केजरीवाल एण्ड कम्पनी ने छुड़ा रखा है। मजे की बात कि केजरीवाल गुट ने पार्टी
बनाने वालों के ही लात मार दी। प्रशान्त ने “आप” को “खाप” कहा। क्या यह बात हमारे
दोस्त राधे की चिढ़ाने वाली तुकबंदी की तरह है या फिर इस उपमा के पीछे कुछ सच भी
है।
“खाप” करती क्या है? एक विवाहिता के दो बच्चे थे। उसका निकम्मा पति अपने पड़ोसी
की बीवी को ले उड़ा। मामला खाप पंचायत में पहुंचा। “खाप” ने फैसला सुनाया कि चंूकि
बीवी के भागने के बाद बेचारा पति अकेला रह गया है इसलिए भगाने वाले की पत्नी को उस
बेचारे पति की पत्नी बन कर रहना पड़ेगा जिसका पति पड़ोसी की बीवी को भगा ले गया।
वाह क्या फैसला है । इसी तरह के फैसले “आप” कर रही है। जो नैतिकता की बातें कर रहे
हैं तो इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। केजरी के सुर भी बदल गए।
“अम्बानी-अडानी” उनके लक्ष्य से बाहर हो चुके हैं।
दिल्ली में भ्रष्टाचार मानो खत्म
हो गया। भ्रष्टाचार के रूप में अभी तक “दो गार्ड और दो स्कूल मास्टर” ही दिखाई दिए
हैं। जो कल तक उन्हें सदाचार का “अवतार” बता रहे थे अचानक उन्हें वह “हिटलर” नजर
आने लगा है। आप के प्रवक्ता जो हमेशा “सत्य का ताबीज” बांध कर बाकी सभी को झूठा
करार देते थे अब वे ही कुतर्को से केजरीवाल एण्ड कम्पनी का बचाव कर रहे हैं। क्या
सचमुच ये लोग जनता को बेवकूफ समझते हैं।
क्या आप ईमानदारों की “खाप” है जो हर किसी
पर कीचड़ उछाल कर खुद मजे लेने लगे। आप का गुब्बारा इतनी जल्दी फुस्स होगा किसी ने
सोचा भी नहीं था। अभी तो लड़ाई शुरू भी नहीं हुई है,शस्त्र संभाले जा रहे हैं?
लड़ेंगे तब तो कैसा खून-खच्चर मचेगा। हम तो सोचते ही सिहर उठते हैं।
राही