स्पोंसर्स और आर्थिक मदद के कारण खिलाडियों को नहीं मिल पा रहा प्रोत्साहन, प्रदर्शन हो रहा प्रभावित।
नई दिल्ली। हाल ही में संपन्न एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में 27 वर्षींय मनप्रीत कौर भारत के 12 स्वर्णं पदक जीते और वैश्विक स्तर पर भारत का नाम चमकाया।
खुद उठा रही अपने प्रशिक्षण का खर्च
ओडिशा में स्वर्ण पदक जीतने के बाद, पांच साल की बेटी की मां मनप्रीत ने निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिए मीडिया के माध्यम से एक याचिका दायर की। मनप्रीत ने कहा कि पिछले साल रियो ओलंपिक के लिए उनके पास दो प्रायोजक थे, लेकिन उसके बाद कोई नहीं। ओलंपिक के बाद, मेरे पास कोई प्रायोजक नहीं है और किसी भी निजी क्षेत्र की कंपनी से कोई सपोर्ट नहीं है। मनप्रीत ने बताया कि हम अब केवल अपने खर्च पर ही प्रशिक्षण ले रहे हैं, जो बहुत कठिन है। उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण के अलावा अपने घर की भी देखभाल करनी होती है।
मदद मिले तो कर सकते हैं बेहतर
उन्होंने कहा कि किसी भी तरह की आर्थिक मदद या स्पोन्सर का मिलना किसी भी एथलीट के लिए अच्छा होता है। कई बार हम अच्छा करना चाहते हैं, लेकिन आर्थिक समस्याओं की वजह से कामयाब नहीं हो पाते और असफलताओं का सामना करना पड़ता है। यदि हमारे सामने किसी भी तरह की कोई आर्थिक समस्या न हो तो हम काफी बेहतर कर सकते हैं।
एथलीटों के प्रति उदासीनता
गैर-ओलिंपिक वर्षों के दौरान भारत में ट्रैक और फील्ड एथलीटों के प्रति दिखाए गई उदासीनता को मनप्रीत की याचिका में चौंकाने जैसी कोई बात नहीं है। एक ओर जहां इंडिया क्रिकेट टीम के कोच की नियुक्ति को लेकर पूरे देश में एक माहौल बना हुआ है, वहीं कितने लोगों को मनप्रीत के कोच के बारे में कोई जानकारी है।
प्राइवेट सेक्टर चुरा रहा नजर
यदि देखा जाए तो भारत में निजी कंपनियां आसानी से मनप्रीत जैसे एथलीटों की सहायता के लिए आगे आ सकती हैं, जबकि यह कोई परोपकार नहीं बल्कि वे इसे अपने कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) गतिविधियों के भाग के रूप में कर सकते हैं। तीन साल पहले, भारत सरकार कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत यह प्रावधान किया गया था कि कंपनियां करोड़ 1,000 करोड़ के राजस्व या 5 करोड़ रुपये, के प्रोफिट के साथ उसका दो प्रतिशत सामाजिक कार्यों में या संबंधित गतिविधियों में खर्च करेंगी।
प्राथमिकता नहीं
जब अधिनियम पहले पारित किया गया था, तो कंपनियां कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के तहत केवल ग्रामीण खेल, राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त खेल, पैरालम्पिक स्पोट्र्स और ओलिंपिक खेलों को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण को सपोर्ट कर सकती थीं। 2015 में अनुमोदित सीएसआर गतिविधियों के तहत निर्माण, नवीकरण, स्टेडियमों के रखरखाव, जिमनेजियम और पुनर्वास केन्द्रों आदि को शामिल किया गया। बावजूद इसके सीएसआर की लिस्ट में स्पोर्ट्स काफी पिछड़ा हुआ है। भारतीय उद्योग परिसंघ की एक रिपोर्ट के अनुसार 2015-16 के वित्तीय वर्ष में 1,270 कंपनियों ने सीएसआर गतिविधियों पर 8,185 करोड़ रुपये खर्च किए गए। जिसमें 8185 आय का केवल 0.69 प्रतिशत ही स्पोर्ट्स डेवलपमेंट के लिए खर्च किया गया।