सिंधु के कोच गोपीचंद ने शेयर किए अपने जीवन के कुछ अनछुए पहलू
Published: Aug 31, 2016 06:15:00 pm
बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद ने मंगलवार को एक कार्यक्रम के दौरान अपने जीवन के कुछ यादगार लम्हों को शेयर किया।
नई दिल्ली। साइना नेहवाल और पीवी सिंधु जैसी ओलिंपिक मेडलिस्ट खिलाडिय़ों के कोच पुलेला गोपीचंद ने मंगलवार को एक कार्यक्रम के दौरान अपने जीवन के कुछ यादगार लम्हों को शेयर किया। गोपीचंद ने कहा कि वह खुद को लकी मानते हैं कि वह पढ़ाई में बहुत अच्छे नहीं थे। गोपीचंद ने बताया कि स्कूल टाईम के दौरान आईआईटी की एक्जाम में फेल होने के कारण उन्होंने अपने करियर की राह बदल ली और वे एक स्पोर्ट्सपर्सन बन गए।
42 वर्षीय बैडमिंटन कोच ने कहा कि मेरा और मेरे भाई का खेल में काफी इंटरेस्ट था। मेरा भाई अच्छा बैडमिंटन खेलता था, वह स्टेट चैंपियन भी बना था लेकिन आईआईटी की परीक्षा में पास होने के चलते उसने (भाई ने) उसी में अपना करियर बनाने का फैसला किया। गोपीचंद ने कहा कि अब मैं यह महसूस करता हूं कि मैं लकी था, जो पढ़ाई में बहुत अच्छा नहीं था। मैंने उस समय इंजीनियरिंग का एग्जाम दिया था और फेल हो गया था लेकिन इसके बाद में मैंने खेलना जारी रखा और आज यहां हूं।
बैडमिंटन कोच का मानना है कि व्यक्ति को अपने काम पर फोकस करना चाहिए, कई बार किस्मत भी ऐसे व्यक्ति को साथ दे देती है। 2001 में ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन टाइटल जीतने वाले गोपीचंद दूसरे भारतीय थे। इसके बाद उन्होंने खेल से संन्यास का फैसला लिया और हैदराबाद में अपनी अकैडमी शुरू की। हालांकि अकैडमी की शुरू करने का सफर भी उनके लिए आसान नहीं था। इसके लिए गोपीचंद को काफी भटकना पड़ा।
ऐसी ही एक घटना का जिक्र करते हुए गोपीचंद ने बताया कि कुछ साल पहले मैं कुछ पीएसयूज के पास गया था। मुझे लगातार तीन दिन तक ऑफिस के बाहर इंतजार करना पड़ा। बैडमिंटन के लिए उन्होंने कुछ मदद करने को कहा, लेकिन सुबह 9 बजे से शाम 5:30 बजे तक इंतजार करने के बाद मुझे सीनियर अफसर ने आकर कहा कि बैडमिंटन वर्ल्ड स्पोर्ट्स में बहुत बड़ी भूमिका नहीं रखता है। कोच ने बताया कि वो मेरी जिदंगी आखिरी दिन था जब मैं किसी के पास स्पॉन्सरशिप के लिए मदद मांगने गया था।
उन्होंने बताया कि उसी रात घर लौटने के बाद मैंने अपने परिवार वालों से सलाह लेकर अपना घर गिरवी रखने का फैसला किया। इस बात के लिए मैं अपनी पत्नी और माता-पिता का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेर े इस फैसले में मेरा साथ दिया। इस तरह मैंने बेंगलूरु में अपनी बैडमिंटन अकेडमी की शुरुआत की।