scriptकभी जूते खरीदने के भी पैसे नहीं थे, आज बनी वर्ल्ड चैम्पियन | Mandeep Sandhu clinches gold in AIBA Women's Junior World Championship | Patrika News

कभी जूते खरीदने के भी पैसे नहीं थे, आज बनी वर्ल्ड चैम्पियन

Published: May 25, 2015 09:07:00 am

विश्व
चैम्पियन का संघर्ष, भारत की 15 वर्षीय मनदीप संधू ने विश्व जूनियर मुक्केबाजी में
जीता स्वर्ण पदक

Mandeep Sandhu

Mandeep Sandhu

चंडीगढ़। भारत की 15 वर्षीय मुक्केबाज मनदीप संधू ने एआईबीए विश्व जूनियर मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहली सफलता हासिल कर ली।

भारतीय मुक्केबाज ने ताइपे में आयोजित चैम्पियनिशप के 52 किग्रा भार वर्ग के फाइनल में आयरलैंड की नियाम आर्ले को 3-0 से हराया। चैम्पियनशिप में भारतीय मुक्केबाजों ने तीन स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य पदक जीते। सबसे ज्यादा सुर्खियां बटोरी हैं मनदीप ने। उन्होंने जब मुक्केबाजी सीखने का फैसला किया तब वह सिर्फ 7 साल की थीं और उनके माता-पिता के पास अपनी बेटी के लिए जूते खरीदने के पैसे भी नहीं थे। गांव की पंचायत और एक एकेडमी ने उनकी मदद की और आज आठ सालों बाद मनदीप विश्व जूनियर चैम्पियन (52 किग्रा) हैं।


दूर से देखती थीं अभ्यास करते

मनदीप की मां ने कहा कि जब मनदीप को पहला राष्ट्रीय पदक मिला तो पंचायत ने 1100 रूपए का इनाम दिया। यह हमारे लिए लॉटरी की तरह था। उनका मानना है कि शेर-ए-पंजाब मुक्केबाजी एकेडमी ने मनदीप की किस्मत संवारी। मनदीप को बलवंत सिंह संधू ने कोचिंग दी। कोच संधू ने बताया कि मनदीप बाकी ट्रेनियों को दूर से अभ्यास करते देखती थीं। धीरे-धीरे उनका लगाव बढ़ता गया और एक दिन वह अपने माता-पिता के साथ यहां आई। कोच ने कहा, राष्ट्रीय स्तर पर जीत दर्ज करने के बाद उसका आत्मविश्वास काफी बढ़ा और आज कड़ी मेहनत के दम पर वो यहां तक पहुंच पाई है।

पिता को नहीं थी उम्मीद

मनदीप की मां दलजीत कौर ने कहा, लोग घर आ रहे हैं। वे कह रहे हैं कि मनदीप ने बड़ा पदक जीता है। मनदीप के पिता इस मौके पर कुछ भावुक नजर आए। कहने लगे, मैं वह दिन जीवन में नहीं भूल सकता जब मेरी बेटी ने बताया कि वह मुक्केबाजी सीखना चाहती है। उस समय मेरे पास सिर्फ एक एकड़ खेत और एक भैंस थी। मेरी साल भर की कमाई करीब 20,000 रूपए थी। मेरे पास उसके जूतों तक के लिए पैसे नहीं थे। जब उसने मुक्केबाजी सीखना शुरू किया तो पहली बार एकेडमी वालों ने ही उसे जूते दिलाए। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वह एक दिन इस मुकाम तक पहुंचेगी।
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