scriptगरीबी में रिश्तेदारों की रोटी ने बनाया ‘शाहिद’ | Mohammad Shahid was best dribbling Hockey player in world | Patrika News
अन्य खेल

गरीबी में रिश्तेदारों की रोटी ने बनाया ‘शाहिद’

पदमपति बताते हैं कि 1982 के एशियाड के फाइनल में पाकिस्तान से मिली हार की भविष्यवाणी शाहिद ने पहले ही कर दी थी

Jul 20, 2016 / 11:48 pm

कमल राजपूत

Shahid

Shahid

कुलदीप पंवार
नई दिल्ली। भारतीय हॉकी में मेजर ध्यानचंद के बाद ड्रिब्लिंग के सबसे बड़े शोमैन कहे जाने वाले मोहम्मद शाहिद को यह दर्जा ऐसे ही नहीं मिला बल्कि इसके पीछे था उनका दो वक्त की रोटी खाने के लाले होने पर भी हॉकी स्टिक के साथ सोना, जागना और खाने-पीने जैसा लगाव। हॉकी मैदान पर इधर से उधर तक दौडक़र अपना राज करने के लिए जरूरत होती है अच्छी डाइट की और इस डाइट के लिए शाहिद को रिश्तेदारों का अहसान लेना पड़ा। अपने रिश्तेदारों के घर रहकर उन्होंने अच्छी डाइट ली और हॉकी में रात-दिन की मेहनत की, जिसने उन्हें महान खिलाड़ी बना दिया।

पहली टूर्नामेंट में ही दीवानी हो गई थी दुनिया
मोहम्मद शाहिद के ही शहर बनारस (वाराणसी) में उनके बचपन से हॉकी छोडऩे तक साथ रहने वाले वरिष्ठ खेल पत्रकार पदमपति शर्मा बताते हैं कि 17 साल की उम्र में शाहिद देश के लिए पहली बार जूनियर हॉकी वल्र्ड कप में खेलने फ्रांस गए। वहां पहले ही मैच से मैदान पर गेंद को इधर-उधर ड्रिब्लिंग करते हुए ले जाने की शाहिद की कलाकारी के लोग इतने दीवाने हो गए कि खासतौर पर उन्हें देखने के लिए पहुंचने लगे थे। इसी खेल ने उन्हें एक ही साल में सीनियर टीम में जगह दिलाई और 1980 के मास्को ओलंपिक में भारतीय हॉकी के अंतिम स्वर्ण पदक में शाहिद की कलाकारी की अहम भूमिका थी।

कर दी थी 1982 की एशियाड हार की भविष्यवाणी

पदमपति बताते हैं कि 1982 के एशियाड के फाइनल में पाकिस्तान से मिली हार की भविष्यवाणी शाहिद ने पहले ही कर दी थी। उन्होंने बताया कि मैच से पहले दिन जब शाहिद पत्रकारों के बीच में आए तो बेहद दुखी थे। कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि हम कल हारने वाले हैं। सभी हैरान थे। कारण पूछने पर उनका कहना था कि पाकिस्तान अटैक करता है और हमारे कोच साहब टोटल हॉकी (यूरोपियन स्टाइल) रणनीति पर खेलने को कह रहे हैं। ना तो हमारे खिलाडिय़ों में वो स्ट्रेंथ है और ना ही एंड्यूरेंस। हम फेल हो जाएंगे। बाद में यह बात सही साबित हुई।

कॉलम लिखने वाले पहले खिलाड़ी थे

भले ही आज हम अखबारों में खिलाडिय़ों की तरफ से लिखे गए कॉलम पढ़ते हों, लेकिन इसकी शुरुआत का श्रेय शाहिद को ही है। पदमपति बताते हैं कि मेरे आग्रह पर 1980 के मास्को ओलंपिक में सिर्फ 18 साल की उम्र में शाहिद ने एक हिंदी समाचार पत्र के लिए कॉलम लिखे थे। यह बात उस समय पूरे खेल जगत और मीडिया जगत में चर्चा बनी थी। उन्होंने बताया कि शाहिद गजब के गायक भी थे और 1996 में एक बड़े मीडिया हाउस के चैनल ने बनारस में बाकायदा उनके लिए प्रोग्राम आयोजित किया था।

नहीं उठा पाई लाभ भारतीय हॉकी
शाहिद भले ही पेनल्टी कॉर्नर को गोल में बदलना नहीं जानते थे, लेकिन विपक्षी टीम के ‘डीÓ में घुसकर टीम को कॉर्नर दिलाना खूब जानते थे। उनके रहते हुए शायद ही कोई मैच हुआ हो, जिसमें भारतीय टीम को 10 से 12 कॉर्नर ना मिले हों, लेकिन उस जमाने में भारतीय टीम इन्हें गोल में नहीं बदल पाती थी। वर्तमान में भी गेंद को स्टिक से चिपकाए रखने की कला भूल रही भारतीय टीम को शाहिद जैसे कोच के साथ की जरूरत थी, लेकिन भारतीय हॉकी संघ कभी उनकी इस योग्यता का लाभ नहीं उठा पाया।

Home / Sports / Other Sports / गरीबी में रिश्तेदारों की रोटी ने बनाया ‘शाहिद’

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो