मोहम्मद शाहिद, हॉकी के जादूगर ध्यानचन्द्र के बाद भारतीय हॉकी का सबसे शानदार खिलाडी । जिसके बारे में पाकिस्तान के हॉकी खिलाडी सरदार हुसैन ने कहा था कि पाकिस्तान कई मैंच भारत से नहीं बल्कि शाहिद से हार गया । मोहम्मद शाहिद बनारस के उस पान की तरह था जो मुंह में जाते ही अपने […]
मोहम्मद शाहिद, हॉकी के जादूगर ध्यानचन्द्र के बाद भारतीय हॉकी का सबसे शानदार खिलाडी । जिसके बारे में पाकिस्तान के हॉकी खिलाडी सरदार हुसैन ने कहा था कि पाकिस्तान कई मैंच भारत से नहीं बल्कि शाहिद से हार गया । मोहम्मद शाहिद बनारस के उस पान की तरह था जो मुंह में जाते ही अपने में रंग लेता है । मोह्हमद शाहिद 20 साल की उम्र में ओलम्पिक का स्वर्ण पदक जीतकर दुनिया के दिलो दिमाग पर छा जाने वाला बनारसी लड़का मैंच के दौरान उसकी ड्रिब्लिंग ऐसी की सामने वाले को जब तक कुछ समझ आये तब तक गेंद गोल पोस्ट को चूम लेती थी ।वो भारतीय हॉकी का स्वर्णिम काल था फर्क करना मुश्किल है कि खिलाडी हॉकी को लोकप्रिय बना रहे थे या हॉकी खिलाडियों को । शाहिद का कद किसी पुरस्कार या किसी सम्मान से ज्यादा था मुसलमान से ज्यादा हिन्दुस्तानी था और हिन्दुस्तानी जोने से पहले बनारसी पहले था ।
शाहिद के कद को इससे नहीं नापा जा सकता कि उन्हें 20 साल की उम्र में ओलिंपिक का गोल्ड मैडल मिला और इससे भी नहीं कि चैम्पियन्स ट्रॉफी और एशियाड में पदक जीते । शाहिद इसलिए भी याद नहीं किये जायेंगे की उन्हें अर्जुन अवॉर्ड और पद्मश्री मिला ,वो शाहिद याद रहेंगे जो बस हॉकी के लिए बना था । में ड्रिब्लिंग की बात हो, तो शाहिद याद आएंगे । रफ्तार की, डॉज की, खेल में जादूगरी की बात होगी, तो शाहिद याद आएंगे, जिंदादिली की बात होगी, तो शाहिद याद आएंगे । जब बनारस की बात होगी, तो शाहिद याद आएंगे । याद अआने कारण भी है क्योंकि शाहिद भुलाये नही बल्कि बनाये जाते हैं ।
11 साल पहले शाहिद अपने साथी खिलाड़ी विवेक सिंह के लिए हुए चैरिटी मैच में खेले थे. दिल्ली के शिवाजी स्टेडियम में मैच था । एक शख्स स्टेडियम के बाहर घेरा तोड़कर टर्फ की ओर जाना चाहता है । लोग अंदर जाने से रोकते हैं बंदा हाथ जोड़ लेता है और कहता है कि बहुत दूर से आया हूँ , अपने बेटे को शाहिद के दर्शन कराने हैं । अपने बेटे को दिखाना है कि शाहिद कौन हैं , मुझे अंदर जाने दीजिये ।आखिर में वो बंदा अंदर गया, शाहिद को अपने बच्चे से मिलवाया, शाहिद ने सिर पर हाथ रखा और गर्मजोशी से कहा था, ‘यही प्यार तो हमको ज़िन्दा रखता है ।
शाहिद का अपना अंदाज ही अलग था वो हॉकी को “हाकी” कहते थे । ऐसा इसलिए नहीं की वो हॉकी बोल नहीं सकते थे कारण बस इतना था कि लीक पे चले वो बनारसी कैसा । बनारस की इसी मोह्हबत को शाहिद हमेशा जिन्दा किये रहे । खेल से सन्यास के बाद बनारस आकर रहने लगे लेकिन उनका सपना कि उनकी मौत उनके बनारस में हो वो पूरी न हो सकी ।
‘जानते हो, लोग मैच के बाद आते थे । इन हाथों को चूमते थे । कहते थे कि इसमें भगवान और अल्लाह हैं ।उनका ही दिया हुआ हुनर था कि दुनिया का कोई भी फारवर्ड या डिफेंडर मेरा दिन होने पर मुझसे बाल नहीं छीन पाता था ।’हॉकी इंडिया के प्रोग्राम में शाहिद ने ये बातें कही थीं ।
शाहिद को ताउम्र जो चीजें पसंद नहीं आईं अंत में उन्हीं का सहारा लेना पड़ा ।फाइव स्टार कल्चर से नफरत थी, उन्हें पांच सितारा अस्पताल में भर्ती होना पड़ा ।शाहिद ने बनारस ना छोड़ना पड़े, इसलिए खेल से सन्यास के बाद तमाम बड़े ऑफर स्वीकार ही नहीं किये । बनारस में रहते हुए मरना चाहते थे लेकिन जब आखिरी सांस ली तो बनारस में नहीं थे अपने उस बनारस में जिसको शाहिद अपनी हर सांस में जीते थे ।
पार्टनर ऐसे छोड़कर नहीं जाते वो भी महज 56 साल में ।