आखिर क्यों : गेहूं पिसाने नाव से केन नदी पार कर पहुंचते हैं दूसरे गांव
आज तक नहीं पहुंची सड़क, चार माह से बिजली गुल
पन्ना। जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर स्थित पन्ना जनपद की ग्राम पंचायत ललार में पांच साल में विकास के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं, इसके बावजूद यहां विकास के नाम पर कुछ भी नहीं है। पन्ना टाइगर रिजर्व से होकर गांव तक पहुंचने वाला मार्ग वन्य प्राणियों की मूवमेंट के कारण अक्सर बंद रहता है। शेष मार्गों से पंचायत तक पहुंचने के लिए लोगों को अभी तक नाव का सहारा लेना पड़ता है।
कहने को तो ग्राम पंचायत और वन विभाग की ओर से चंद्रनगर वाच टॉवर की ओर से पिछले साल एक रपटा बनाया गया, लेकिन साल के 8 माह इसके पानी में डूबे रहने से इसकी उपयोगिता पर सवाल उठ रहे हैं। गौरतलब है कि ग्राम पंचायत ललार के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के मड़ला और हिनौता गेट से मार्ग है, परंतु इन रूटों पर जाने के लिए ग्रामीणों को पार्क प्रबंधन से इजाजत लेनी होती है। इसके अलावा इन रूटों पर बाघों की अक्सर मूवमेंट होने के कारण सुरक्षा कारणों से पार्क प्रबंधन इस ओर जाने का इजाजत नहीं देता है।
गांव पहुंचने के लिए केन नदी के पाटन और दोपहरिया घाट का सहारा लेना पड़ता है, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए पहले छतरपुर जिले के चंद्रनगर और बमीठा जाना होता है। बमीठा से करीब 10 किमी. अंदर जाने के बाद छतरपुर जिले का ग्राम दोपहरिया मिलता है। इस मार्ग से ग्राम पंचायत तक पहुंचने के लिए एक नाला पार करने के साथ ही करीब 3 किमी. पैदल चलने के बाद केन नदी का दोपहरिया घाट मिलता है। नदी के उस पार से ग्राम पंचायत ललार का ग्राम टपरियन पड़ता है। नदी के दोनों ओर एक-एक नाव हैं लेकिन एक खराब है और दूसरी में कई जगह से सुराग होने से पानी भर जाता है।
नाव के लिए करते हैं घंटों इंतजार
एक नाव होने और कोई खेवनहार नहीं होने से लोगों की जिंदगी इंतजार में ही गुजर रही है। यदि नाव नदी के एक तरफ लगी है तो दूसरी तरफ के लोगों को तब तक इंतजार करना होता है जब तक कि पहले तरफ से कोई नाव लेकर न आ जाए। ऐसे हालात में कई बार लोगों को घंटों तक नाव के आने का इंतजार करना पड़ता है। गांव में आवागमन का साधन सिर्फ नाव होने के कारण यहां के अधिकांश लोगों को नाव चलाना आता है।
ललार निवासी कमलारानी का कहना है कि उसका पूरा जीवन ही नाव चलाने में बीत रहा है। गांव के ही प्रभूदयाल पटेल कहते हैं कि नदी से ललार तक पहुंच मार्ग बन जाए तो लोगों का जीवन सुधर जाए। नदी के टपरियन घाट में करीब एक घंटे से नाव का इंतजार कर रहे मतिया अहिरवार ने बताया कि यहां अधिकारी कभी नहीं आते हैं। बताया गया कि निर्माण कार्यों को लेकर जिस इंजी. की यहां ड्यूटी लगी है वह 4 माह से नहीं आया है।
आठ माह पानी में डूबा रहता है रपटा
पन्ना टाइगर रिजर्व के चंद्रावल वॉच टॉवर के पास से महज एक पुल बन जाने पर ग्राम पंचायत के लोगों का जीवन आसान हो सकता है। इसके लिए ग्राम पंचायत की ओर से करीब 15 लाख रुपए खर्च और वन विभाग की ओर से लाखों रुपए खर्च कर रिपटा भी बनाया गया, लेकिन यह इतना छोटा है कि साल के 8 माह से अधिक समय इस रपटे के ऊपर करीब 4 फीट तक पानी रहता है। ऐसे हालात में इससे आवागमन संभव नहीं हो पाता। इसको बनाने में भी गुणवत्ता का ध्यान नहीं दिया गया। इससे बारिश के दिनों में रपटा क्षतिग्रस्त भी हो गया है।
चार माह से अंधेरे में गुजार रहे जीवन
पंचायत के ग्राम ललार में बिजली तो थी, लेकिन सीजन की पहली ही बारिश में आई बाढ़ से केन नदी में सर्विस लाइन और कई खंभे बह गए। अब दूसरे दौर की बारिश भी खत्म हो चुकी है। इसके बाद भी गांव में बिजली की सप्लाई लाइन शुरू नहीं की गई है। ग्राम पंचायत के पूर्व सरपंच नवल सिंह राजगौड़ ने बताया कि बिजली आपूर्ति शुरू करने की मांग को लेकर कई बार बिजली कंपनी को लिखा गया है। इसके बाद भी अभी तक बिजली आपूर्ति शुरू नहीं हो पाई है। घरों में टीवी और पंखे होने के बाद भी वे चल नहीं पा रहे हैं। ग्राम पंचायत के टपरियन गांव में अभी तक बिजली ही नहीं पहुंची है।
युद्ध जीतने से कम नही गेहूं पिसाई
ग्राम पंचायत अंतर्गत ग्राम ललार, टपरियन, राजापुरवा और भवानीपुर आते हैं। यहां के लोगों के लिए आज भी गेहूं पिसाकर लाना किसी युद्ध जीतने से कम नहीं है। ग्राम पंचायत के अधिकांश लोग गेहूं पिसाने के लिए पाटन और दोपहरिया घाटा का उपयोग करते हैं। पहले लोग करीब 3 किमी पैदल चलकर टपरियन घाट पहुंचते हैं। इसके बाद घंटों नाव का इंतजार करना पड़ता है। दोपहरिया घाट पहुुंचने के बाद सिर पर गेहूं रखकर एक नाला पार करने के बाद करीब एक किमी. पैदल चलने पर छतरपुर जिले का ग्राम दोपहरिया मिलता है। यहां भी अक्सर बिजली गुल रहती है। गेहूं पिसाने के बाद वापस गांव लौटन के बाद फिर लोगों को इतना ही संघर्ष करना पड़ता है।