इसलिए पड़ा नाम
पारागांव के लोग बताते हैं कि पहले यह टीला छोटे रूप में था। धीरे-धीरे इसकी ऊंचाई व गोलाई बढ़ती गई। जो आज भी जारी है। शिवलिंग में प्रकृति प्रदत जललहरी भी दिखाई देती है। जो धीरे-धीरे जमीन के ऊपर आती जा रही है। यही स्थान आज भूतेश्वरनाथ, भकुर्रा महादेव के नाम से जाना जाता है। छत्तीसगढ़ी में हुकारने को भकुर्रा कहते हैं।
शिवलिंग का पौराणिक महत्व
वर्ष 1959 में गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक में उल्लेखित है। इसमें इसे विश्व का एक अनोखा महान और विशाल शिवलिंग बताया गया है। यह जमीन से लगभग 55 फीट ऊंचा है। प्रसिद्ध धार्मिक लेखक बलराम सिंह यादव के ज्ञानानुसार संत सनसतन चैतन्य भूतेश्वरनाथ के बारे में लिखते हैं कि लगातार इनका आकर बढ़ता जा रहा है। वर्षों से नापजोख हो रही है। यह भी किवदंती है कि इनकी पूजा छुरा नरेश बिंद्रानवागढ़ के पूर्वजों द्वारा की जाती रही है।