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स्वर्ग के लिए आज भी चोरी-छिपे द्वारिका जाते है लोग, जानिए क्यों

Published: Mar 04, 2015 02:31:00 pm

द्वारिका के आस पास के इलाकों
के युवा आज भी द्वारकापुरी जाने की बात अपने परिजनों को नहीं बताते

ग्रामीण इलाकों के युवा जब द्वारकापुरी जाते हैं, तो वे आज भी अपने परिजनों को नहीं बताते और चोरी-छिपे व संगी-साथियों से पैसे उधार लेकर जाते है। उनके वापस लौटने पर जरूर उनके परिजन उनका स्वागत व अगवानी करते है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में यह परम्परा कमजोर पड़ रही है।

भगवान श्रीकृष्ण का द्वारकापुरी में पहाड़ी की ऊंचाई पर भव्य मंदिर बना है। उनके दर्शनों के लिए हर वर्ष फरवरी और मार्च माह की शुरूआत में युवा वहां जाते है। गांवों में मान्यता रही है, कि द्वारका यात्रा की जानकारी परिजनों को मिलने पर उसका पुण्य नहीं मिलता। एक मान्यता यह भी है कि भगवान कृष्ण ने भी द्वारका यात्रा चोरी-छिपे की थी।

फिर होता है स्वागत

द्वारकापुरी यात्रा पर जाने वाले युवा के वापस घर पहुंचने पर इनका परिजनों और ग्रामीणों द्वारा स्वागत किया जाता है और पूरे मोहल्ले में गुड़ बांटा जाता है। इनकी बहनें भी ससुराल से आकर द्वारका की यात्रा कर आने वाले अपने भाइयों का बधावणा गाती है।

विशेष मालाएं पहनते हैं

द्वारकापुरी यात्रा पर जाने वाले लोग विशेष आकर्षक मालाएं पहनकर लौटते हैं और घर में बधावणे से पहले इनको गले से नहीं उतारते हैं। बधावणे के बाद इन मालाओं को परिवार की महिलाओं में बांटा जाता है और इसे भगवान का प्रसाद समझा जाता है। धीरे-धीरे पुरानी परम्पराओं का चलन भी कम हो रहा है। चोरी-छिपे द्वारिका जाने की परम्परा भी कम होने लगी है।

यह है धारणा

चुपके से घरवालों को बिना बताए द्वारिका जाने के पीछे धार्मिक कारण मानते है। महाभारत व पुराणों में वर्णित कथा के मुताबिक राक्षस जरासंध ने अपने सहयोगियों के साथ मथुरा पर चौतरफा आक्रमण किया था तो अपनी प्रजा को बचाने के लिए कृष्ण ने अपनी माया से व विश्वकर्मा के सहयोग से द्वारिका नगरी का निर्माण करवाया और मथुरा की सारी प्रजा को द्वारिका ले गए। इसके चलते कृष्ण को रणछोड़ भी कहा जाता है। इसके चलते ग्रामीण भी चोरी चुपके द्वारिका जाने को शुभ मानते है।

आपस में बनते है धर्म भाई

द्वारिका जाने वाले युवा द्वारिका में ही एक-दूसरे के आपस में धर्म भाई बनते है। धर्म भाई का ये रिश्ता वे किसी दूसरे समूह से भी जोड़ सकते है और फिर धर्मभाई का यह रिश्ता जीवन भर चलता रहता है। यहां तक कि आपस में भाई बने ये लोग आजीवन एक-दूसरे के सुख-दुख और खुशी-गम के मौकों पर आपस में सहयोग करते हैं।
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